भले ही देश 21वीं सदी में पहुंच गया हो लेकिन अभी भी देश का भूमि रिकॉर्ड या खसरा-खतौनी बाबा आदम के जमाने का है और यह बड़े भ्रष्टाचार की जड़ है। मोदी सरकार खसरा-खतौनी को डिजिटल कर रही है जिससे भूमि विवाद की समस्या जड़ से खत्म हो जाएगी।
देश का भूमि प्रबंधन घटिया नक्शों, हस्त लिखित भूमि रिकॉर्ड व खसरा–खतौनी में फैला है और यही कानूनी विवादों और भ्रष्टाचार की जड़ है। न्यायालयों में सिविल के जितने भी मामले हैं उनमें 66 प्रतिशत भूमि या संपत्ति के विवाद से जुड़े हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भूमि विवादों को हल करने में औसतन 20 साल लगते हैं। भूमि विवादों से न केवल अदालतों पर बोझ बढ़ता है बल्कि मुकदमेबाजी में बहुमूल्य जमीन लॉक हो जाती है। इससे उद्योगों व परियोजनाओं के लिए जमीन की उपलब्धता प्रभावित होती है।
जमीन को लेकर बढ़ते विवाद, भ्रष्टाचार और मुकदमेबाजी की समस्या के स्थायी समाधान के लिए मोदी सरकार ने 2016 में डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआइएलआरएमपी) शुरू किया। इस प्रोग्राम के तीन घटक हैं- भूमि अभिलेखों का कंप्यूटरीकरण, रजिस्ट्री का कंप्यूटरीकरण और भूमि अभिलेखों के साथ इसका एकीकरण। इसके तहत भूमि के प्रत्येक टुकड़े या भूखंड को 14 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या दी जा रही है।
विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या एक प्रकार से भूखंड के आधार नंबर की तरह है। इसकी शुरुआत कंप्यूटरीकृत डिजिटल भूमि रिकार्ड तैयार करने और प्रत्येक भूखंड को एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करने की एक समान प्रणाली के लिए की गई है। एक वर्ष में 9 करोड़ भूखंडों को भू आधार नंबर प्रदान किया गया। इस भू आधार नंबर को बैंकों और न्यायालयों से भी जोड़ा जा रहा है।
भू-आधार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि जब भी किसी जमीन की खरीद-बिक्री होगी तब खरीदने और बेचने वाले का पूरा विवरण सामने होगा। इससे उस भूमि से संबंधित कोई विवाद या देनदारी होगी तो उसका पता चल जाएग। इससे पहले दस्तावेजों का पंजीकरण मैनुअल होता था लेकिन अब यह ई पंजीकरण के रूप में होने लगा है।
यदि उस जमीन का आगे चलकर बंटवारा भी होता है तो उस जमीन का आधार नंबर अलग-अलग हो जाएगा। डिजिटल रिकॉर्ड होने के कारण सबसे पहले जमीन की वास्तविक स्थिति का पता चल जाएगा क्योंकि जमीन की पैमाइश ड्रोन कैमरे से होगी जिससे गलती की संभावना न के बराबर होगी।
भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण भूमि के स्वामित्व का मुख्य दस्तावेज होगा जिससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकेगी। भूमि रिकॉर्डस की विश्वसनीयता बढ़ने से लोग अधिक भरोसे के साथ क्रय-विक्रय की प्रक्रिया में भाग ले सकेंगे। अगस्त 2023 तक देश के 6,57,434 गांवों में से 6,22,722 गांवों अर्थात 94.72 प्रतिशत गांवों की कृषि भूमि की खसरा-खतौनियों का रिकार्ड डिजिटल किया जा चुका है। इसी तरह राजस्व भूमि के 76.68 प्रतिशत नक्शों का भी डिजिटलीकरण हो चुका है।
मोदी सरकार ने मार्च 2024 तक देश के सभी गांवों का भूमि रिकॉर्ड डिजिटल करने का लक्ष्य रखा है। भूमि रिकॉर्ड तक पहुंच में एक बड़ी बाधा भाषा की रही है क्योंकि सभी रिकॉर्ड या तो हिंदी में होते हैं या अंग्रेजी में। इस समस्या को दूर करने के लिए मोदी सरकार ने सभी 22 भारतीय अनुसूचित भाषाओं में भूमि अभिलेखों को लिप्यंतरण की योजना बनाई है।
देश भर में अब तक 5300 भूमि रिकॉर्ड कार्यालयों का कंप्यूटरीकरण किया जा चुका है। जल्दी ही सरकार डिजिटल भूमि रिकॉर्ड को अदालतों से जोड़ देगी। इससे भूमि के स्वामित्व और उपयोग से संबंधित विवादों को सुलझाने में मदद मिलेगी। भूमि विवाद कम होंगे। अदालतों में भूमि विवाद के मामलों का शीघ्र निस्तारण होगा।
इतना ही नहीं, इससे रुकी हुई परियोजनाओं के कारण देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले सकल घरेलू उत्पाद के नुकसान में भी कमी आएगी। भू अभिलेखों के डिजिटलीकरण और विभिन्न सरकारी विभागों के साथ इसके जुड़ाव से कल्याणकारी योजनाओं के उचित क्रियान्वयन में सहायता मिलती है। बाढ़, आग जैसी आपदाओं के कारण दस्तावेजों के नुकसान की स्थिति में भी यह बहुत सहायक होगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)