डॉ. गौरीशंकर राजहंस
इसमें कोई संदेह नहीं कि आजादी के बाद विदेश नीति में भारत का कोई भी प्रधानमंत्री इतना सशक्त साबित नहीं हुआ जितना नरेंद्र मोदी हुए। पीछे मुड़कर देखने से लगता है कि नरेंद्र मोदी ने इतिहास की दिशा ही बदल दी है। भारत की आजादी के बाद अमेरिका शुरू से ही भारत का कट्टर दुश्मन रहा है-केवल जॉन एफ. कैनेडी के समय को छोड़कर। भारत के लाख मना करने पर भी वह पाकिस्तान को भरपूर सैन्य और आर्थिक सहायता देता रहा है। राष्ट्रपति आइजन हावर के समय से ही भारत अमेरिका को कहता रहा है कि यह पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता चीन के खिलाफ नहीं, बल्कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ इस्तेमाल करेगा। हुआ भी यही। बाद में पाकिस्तान के साथ जितने भी युद्ध हुए उसमें पाकिस्तान ने इन्हीं अमेरिकी हथियारों का खुलकर भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया। बाद के वर्षो में भी भारत बार-बार अमेरिका को समझाता रहा कि पाकिस्तान को सैन्य सहायता और आर्थिक सहायता देने का सीधा मतलब है आतंकवादियों को बढ़ावा देना और ये आतंकवादी एक दिन भारत ही नहीं अमेरिका के लिए भी सिरदर्दी पैदा करेंगे। मोदी ने राष्ट्रपति बराक ओबामा से सशक्त दोस्ती गांठ ली है जिसका परिणाम यह हुआ कि अमेरिका अब भारत को हर तरह की तकनीकी, सैन्य और आर्थिक सहायता देने को तैयार हो गया है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओबामा के मेहमान होकर व्हाइट हाउस पहुंचे तब राष्ट्रपति ओबामा ने अत्यंत ही गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। एक घंटे तक चली वार्ता के बाद ओबामा ने कहा कि संवेदनशील तकनीक हस्तांतरण के लिए अमेरिका ‘एनएसजी’ और ‘एमटीसीआर’ में भारत के शामिल होने का पुरजोर समर्थन करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दोनों देश असैन्य परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में और अधिक सहयोग बढ़ाएंगे तथा उम्मीद जताई कि भारत को स्वच्छ ऊर्जा के लिए जरूरी तकनीक और निवेश अमेरिका से हासिल हो सकेगा। प्रधानमंत्री ने परमाणु सुरक्षा, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन क्षेत्र में अमेरिका से बढ़ते सहयोग पर खुशी जताई। कहा कि भारत की 80 करोड़ युवा शक्ति अमेरिका के साथ मिलकर मानवता के कल्याण के लिए काम करेगी। राष्ट्रपति ओबामा से मुलाकात के दौरान अमेरिका ने हजारों वर्ष पुरानी कलाकृतियों को भारत को लौटाया। कुल कलाकृतियां हजार वर्ष से भी ज्यादा पुरानी हैं, जो चोरी से तस्करी द्वारा अमेरिका लाई गई हैं। इनका मूल्य 10 करोड़ डालर है, जो करीब-करीब 660 करोड़ रुपये के बराबर है। प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में इन कलाकृतियों की कीमत पैसे के रूप में नहीं आंकी जा सकती है। यह हमारी संस्कृति और विरासत का हिस्सा है। राष्ट्रपति ओबामा से बात करने के बाद अमेरिका ने यह स्पष्ट किया कि वह भारत में छह परमाणु उर्जा संयंत्र लगाएगा, जिससे स्वच्छ उर्जा के निर्माण में मदद मिलेगी। प्रधानमंत्री ने अमेरिका और भारत में रहने वाले भारतवासियों का दिल जीत लिया जब उन्होंने वाशिंगटन पहुंचने के बाद अपने पहले कार्यक्रम में भारतीय मूल की दिवंगत अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला को श्रद्धांजलि दी। भारतीय मूल की दूसरी महिला सुनीता विलियम्स भी अंतरिक्ष में गई थीं। उनसे और उनके पिता से मोदी ने मुलाकात की और उनसे गुजराती में बात की, जिससे वहां इकट्ठे हुए सभी भारतीय मूल के लोग गद्गद हो गए। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि उनका वह भाषण रहा जो उन्होंने वाशिंगटन यात्र के आखिरी दिन अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र में दिया। यह हर दृष्टिकोण से एक ऐतिहासिक भाषण था। अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर करारा हमला किया। उनका कहना था कि यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि भारत के पड़ोस में ही आतंकवाद को पाला-पोसा जा रहा है। समय आ गया है कि भारत और अमेरिका के साथ सारा संसार आतंकवाद पर प्रहार करे। प्रधानमंत्री ने आतंकवाद को सबसे बड़ा खतरा बताया। इसका अलग-अलग नाम है। कहीं इसे लश्कर, कहीं तालिबान और कहीं आइएसआइएस कहा जाता है। लेकिन इसका मूल उद्देश्य घृणा, हत्या और हिंसा फैलाना है। आतंकवाद पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रहा है। अत: समय का तकाजा है कि आतंकवाद का पाठ पढ़ाने वालों को सबक सिखाया जाए। अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र में मोदी ने दोनों देशों के उन महापुरुषों का जिक्र किया जिनकी विचारधारा ने विश्व को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि मार्टिन लूथर किंग ने महात्मा गांधी से ही प्रेरणा ली थी। उन्होंने स्वामी विवेकानंद का भी उल्लेख किया जिन्होंने शिकागो में भारतीय संस्कृति को आम अमेरिकनों को समझाने का प्रयास किया था। उन्होंने कहा कि आज 30 लाख भारतीय अमेरिका में रह रहे हैं। वे डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक तथा विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ हैं। यह दोनों देशों के समाज के सर्वश्रेष्ठ प्रतीक हैं। भारत अपने इन नागरिकों पर पूरा गर्व करता है। प्रधानमंत्री के इस भाषण को भारत ही नहीं अन्य देशों में भी लोगों ने बड़ी उत्सुकता से देखा है। प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान कई बार खड़े होकर सांसदों ने मोदी का अभिवादन किया और लगातार तालियां बजाते रहे। रक्षा सहयोग के बारे में भी प्रधानमंत्री का कहना था कि वक्त का तकाजा है कि सुरक्षा के मामले में भारत और अमेरिका एक दूसरे के साथ सहयोग करें। चीन का दबदबा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जिस तरह बढ़ रहा है उसे देखते हुए अमेरिका के लिए भी यह आवश्यक है कि वह अपने मित्र देशों के हितों की रक्षा के लिए भारत जैसे देश के साथ सहयोग करे। अमेरिका के लाख कहने के बावजूद भी चीन ‘साउथ चाइना सी’ में अपनी दादागीरी से बाज नहीं आ रहा है। मोदी ने पहले भी कहा था और इस बार भी अमेरिकी संसद में कहा कि कोई भी देश किसी क्षेत्र पर जबरन अपना हक नहीं जता सकता है। इशारा स्पष्ट था। खबर है कि प्रधानमंत्री के अमेरिका दौरे से चीन बुरी तरह जल-भुन गया है। पाकिस्तान में भी इसकी आलोचना हो रही है, परंतु एक बात साफ हो गई है कि मोदी के नेतृत्व में भारत का सिर सारे संसार में ऊंचा उठ गया है। अमेरिकी संसद में भाषण के अंत में हजारों लोगों ने बाहर खड़े होकर मोदी की जय जयकार के नारे लगाए। एक समय था जब अमेरिका में रहने वाला प्राय: हर भारतीय अपने को हीन भावना से ग्रस्त समझता था। आज मोदी के कारण वह अपना सिर गर्व से ऊंचा कर रहा है और महसूस कर रहा है कि वह दुनिया के एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण देश का नागरिक है।
(लेखक पूर्व सांसद हैं और कई देशों में भारत के राजदूत रह चुके हैं,यह लेख १० जून को दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ था)