शिवमहापुराणम् में हिमालय को पर्वतों का अधिपति, समृद्धि-भाजन, तेजयुक्त एवं महान बताया गया है तो विष्णु पुराण में हिमालय को स्थावरों का राजा माना गया है। कूर्म पुराण में हिमालय को सिद्ध मुनियों और देवर्षि द्वारा सेवित पर्वत बताया गया है। इसी देवप्रिय हिमालय में एक अभिनव प्रयोग हो रहा है।
हिमालय युगों-युगों से सम्पूर्ण मानव जाति की ऊर्जा और प्रेरणा का स्त्रोत रहा है। पौराणिक काल से ही ये हमारे ऋषि मुनियों से लेकर देवी-देवताओं तक की हृदय स्थली रहा है।
हिमालय मानव जाति के लिए सदियों से निरंतर ऊर्जा और चमत्कारी सिद्धियों का मंगल स्त्रोत है इसीलिए वेद, पुराण, उपनिषद, योग और आयुर्वेद से लेकर हमारे प्राचीन ग्रंथों में समाहित ज्ञान-विज्ञान, धर्म और आध्यात्म की उत्पत्ति यहीं पर हुई। अगर उदाहरण से समझाने का प्रयास करूँ तो हिमालय की प्राचीनता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि विश्व की सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद में हिमालय का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद में बताया गया है, कि –
“यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहु”
अथर्ववेद में कहा गया है, कि –
“गिरयस्ते पर्वता हिमवन्तोरवं ते पृथिवि स्योनमस्तु।”
शिवमहापुराणम् में हिमालय को पर्वतों का अधिपति, समृद्धि-भाजन, तेजयुक्त एवं महान बताया गया है तो विष्णु पुराण में हिमालय को स्थावरों का राजा माना गया है। कूर्म पुराण में हिमालय को सिद्ध मुनियों और देवर्षि द्वारा सेवित पर्वत बताया गया है।
इसी देवप्रिय हिमालय में एक अभिनव प्रयोग हो रहा है। हिमालय के उच्च मौलिक चिंतन, जीवन दर्शन, अमूल्य संपदाओं के संरक्षण और हिमालयीय सरोकारों को संजोता एक अनूठा अभियान ‘स्पर्श हिमालय’ प्रगति पर है। इस अभियान के विभिन्न चरण हैं, लेकिन जिस एक चरण ने मेरा सर्वाधिक ध्यान आकृष्ट किया वो ‘लेखक गाँव’ की स्थापना है।
जीवन के सफर में कई बार ऐसा भी समय आता है जब आर्थिक विपन्नता के कारण रचनाधर्मिता के उपासक और उनकी लेखनी समाज के हाशिए में कष्टप्रद जीवन व्यतीत करती है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, श्याम नारायण पाण्डेय और नागार्जुन जैसे कई महान रचनाकारों ने अपना अंतिम समय अत्यंत कष्टप्रद तरीके से व्यतीत किया।
हाल में ही ‘एक प्यार का नगमा है’ जैसे कालजयी गीत लिखने वाले संतोष आनंद जी भी ऐसे आर्थिक विपन्नता के जीवन को जी रहे थे। वो तो भला हो उस संवेदनशील व्यक्ति का जिसने उनके जीवन को सामाजिक पटल पर लाकर उनके लिए सहायता उत्पन्न करवा दी। ‘लेखक गांव’ की परिकल्पना ऐसे ही विद्वान, चिंतकों, दार्शनिकों, मनीषियों के निहितार्थ की गई है, जो भटकाव भरे मन को ढो रहे हैं अथवा आर्थिक विपन्नता के शिकार हैं।
निरंतर अपनी कृतियों से साहित्य को समृद्ध करने वाले डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी इस प्रस्तावित ‘लेखक गाँव’ के आधार स्तम्भ हैं। उनका मानना है कि इस पहल द्वारा जहां एक ओर समाज कल्याण की दिशा में मानवता की सेवा और संवेदना का भाव प्रबल होगा वहीं दूसरी ओर विद्वान लेखकों की सृजन यात्रा की अमूल्य धरोहरें देश और समाज के हितार्थ लेखक गांव में संरक्षित होती रहेंगी ।
लेखक गांव के बारे में अधिक जिज्ञासा ने मुझे अधिक जानने को प्रेरित किया। इस गाँव का क्या स्वरुप रहेगा। क्या ये रहने के लिए मात्र छत उपलब्ध कराएगा। इन प्रश्नों के साथ जब मैंने उत्तर तलाशे तो कई अद्भुत चीजें सामने आईं।
यहाँ पर लेखक कुटीर मिलेगी, शुद्ध जैविक उत्पादन से निर्मित आहार वाली ‘हिमालयी रसोई’ मिलेगी, गंगा एवं अन्य सहायक नदियों पर लिखे ग्रंथ, आलेख, शोध-पत्र, साहित्य, चित्रकारी आदि को संरक्षित करने के लिए ‘गंगा एवं हिमालय संग्रहालय’ मिलेगा, लगभग एक हजार व्यक्तियों के बैठने की क्षमतायुक्त वाला ‘हिमालय सभागार’ मिलेगा और समस्त हिमालयी राज्यों के साहित्य, संस्कृति, इतिहास, सामाजिक, राजनीतिक, भूगोल, दर्शन, धर्म, ज्ञान-विज्ञान आदि विषयों से संबंधित ग्रंथों को सहेजने के लिए ‘हिमालय ग्रन्थालय’ भी मिलेगा।
वास्तव में ऐसी कल्पनाओं का होना ही एक स्वस्थ समाज के लिए अत्यंत आवश्यक है और अगर इन कल्पनाओं से आगे चलकर उसे जमीन पर उतारने का साहस आ जाए तो फिर क्या ही कहना! देश के बौद्धिक लोगों के मान सम्मान और उनके शरीर और मन का एक साथ ध्यान रखना एक अद्भुत प्रयोग है। एक ऐसा प्राकृतिक स्थान जहाँ साहित्य, संस्कृति, प्रकृति, चिंतन- मंथन और सृजन एक साथ आत्मसात हो सकेंगे। ऐसे प्रयासों से ही मानवता जीवित रहेगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। राजनीति और संस्कृति सम्बन्धी विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)