संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ बिहार में 23 हजार लोगों पर एक डॉक्टर है, जो कि साफ़ तौर पर बिहार में डॉक्टरों की कमी की कहानी कहता है। अब जिस राज्य में डॉक्टरों की ऐसी कमी हो, वहाँ खुद स्वास्थ्य मंत्री द्वारा सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के तीन बड़े डॉक्टरों और दो नर्सों को अपने घर पर नियुक्त कर देना एक गैरजिम्मेदाराना रवैया तो है ही, साथ ही नेताजी के सिर पर सवार हो चुके सत्ता के नशे को भी दिखाता है।
नेहरू-गाँधी परिवार के बाद अगर कोई परिवार है, जिसने सत्ता का सर्वाधिक लाभ उठाया है, तो वो लालू यादव का ही परिवार है। चारा घोटाला हो, परिवार के लोगों को सरकार में मनमाफिक जगहों पर बिठाना हो या सरकारी जमीन को हड़पने का मामला हो, यादव परिवार सत्ता के रसूख का दुरूपयोग करने में कभी पीछे नही हटा है। अब हाल ही में यह सामने आया है कि बिहार के स्वास्थ्य मंत्री और लालू यादव के छोटे बेटे तेज प्रताप यादव ने अपने पिता की खराब सेहत की देखभाल के लिए डॉक्टरों की एक पूरी की पूरी टीम को ही हॉस्पिटल से अपने घर पर तैनात कर दिया।
गौरतलब है कि इंदिरा गांधी चिकित्सा विज्ञान संस्थान के तीन विशेषज्ञ डॉक्टर अमन कुमार, नितेश कुमार एवं कृष्ण गोपाल समेत दो नर्सों को 31 मई से 8 जून तक स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव के निर्देशों पर उनके घर नियुक्त किया गया था। यह नियुक्ति उनके किसी पारिवारिक सदस्य के उपचार हेतु की गयी थी, जिसका नाम नही बताया गया।
यह वही समय है, जब लालू यादव ने डीएमके प्रमुख करुणानिधि के जन्मदिन के जश्न में शामिल न होने की वजह अपनी बिगड़ती सेहत बताई थी। ऐसे में, अनुमान लगाया जा रहा है कि ये नियुक्ति लालू की सेहत की देखरेख के लिए ही की गयी थी। सवाल ये है कि ऐसी कौन सी आफत थी कि डॉक्टरों की इस टीम को स्वास्थ्य मंत्री ने अपने घर पर इतने लम्बे समय के लिए तैनात कर दिया। होता तो ये है कि बीमार होने पर मरीज़ अस्पताल जाता है, मगर यहाँ तो पूरा अस्पताल ही घर में सज गया। इसे ही सत्ता के रसूख का सिर चढ़कर बोलना कहते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ बिहार में 23 हजार लोगों पर एक डॉक्टर है, जो कि साफ़ तौर पर बिहार में डॉक्टरों की कमी की कहानी कहता है। अब जिस राज्य में डॉक्टरों की ऐसी कमी हो, वहाँ खुद स्वास्थ्य मंत्री द्वारा सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के तीन बड़े डॉक्टरों और दो नर्सों को अपने घर पर नियुक्त कर देना एक गैरजिम्मेदाराना रवैया तो है ही, साथ ही नेताजी के सिर पर सवार हो चुके सत्ता के नशे को भी दिखाता है। लेकिन, जब बिहार सरकार ही इन बाप-बेटों की है, तो इन्हें किसी को औरों की क्या चिंता हो?
स्वास्थ्य मंत्री के इस अनुशासनहीन निर्णय पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खामोशी की चादर ओढ़े दिखाई दे रहे हैं। सत्ता से चिपके रहने के लोभ में कांग्रेस भी इसपर मौन ही साधे हुए है। अब जब इस तरह से शाह मिलेगी तो लालू के सुपुत्र महोदय क्यों नहीं अपने घर डॉक्टरों की टीम तैनात कर लेते। एक भाजपा ही है जो इन सबके खिलाफ लगातार बोल रही है।
ऐसे में, सवाल उठता है कि बिहार में राजनीति को वहाँ के सत्तारूढ़ नेताओं द्वारा व्यक्तिगत हितों की पूर्ति का एक सुलभ मार्ग समझा जाना आखिर कब बन्द होगा? कब आखिर जनता की समस्याओं पर बिहार सरकार ध्यान देगी और इस बीमारू राज्य के उद्धार की दिशा में काम करेगी?
वर्तमान राजनीति में यह देखने को मिल रहा है कि लोगों का ध्यान केवल मोदी-विरोध तक सीमित है। मुद्दों से भटकाने के लिए प्रयास जारी है। लालू यादव के शासन में जिन्होंने उनके द्वारा खुल्लमखुल्ला किया गया सत्ता का दुरूपयोग देखा है, उन्हें उनके बेटे और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव का डॉक्टरों को घर तैनात पर देना बहुत अजीब नहीं लगेगा। वे वही कर रहे हैं, जो अपने पिता को करते हुए उन्होंने देखा है। लेकिन, इन सबके बीच ठगी जा रही है बिहार की जनता जिसे नीतीश की सुशासन बाबू वाली छवि की आड़ में लालू का जंगलराज मिल रहा है।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)