मोदी सरकार हर स्तर पर खेती-किसानी में नवाचार को प्रोत्साहित कर रही है। इसी के तहत किसान ड्रोन की शुरुआत की गई है। कुछ साल पहले तक खेती-किसानी की जरूरतों के लिए हम उपग्रहों से भेजी गई तस्वीरों पर निर्भर थे लेकिन अब ड्रोन से यह काम आसान हो गया। ड्रोन से ली गईं तस्वीरें उपग्रहों से ली गई तस्वीरों की तुलना में ज्यादा सटीक होती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हम ड्रोन के जरिए छोटी-छोटी जगहों की तस्वीरें आसानी से ले सकते हैं।
कृषि ड्रोन मानव रहित विमान होता है उसमें जीपीएस आधारित नेवीगेशन सिस्टम और सेंसर होते हैं। यह बैटरी की सहायता से काम करता है। इसीलिए यह खेती-किसानी को आसान बनाने वाली तकनीक के रूप में प्रचलित हो रहा है। यह खेती में किसानों की मेहनत और समय दोनों की बचत करता है। फिलहाल कृषि ड्रोन का इस्तेमाल खेतों में उर्वरक, रसायनों व कीटनाशकों के छिड़काव में अधिक प्रचलित है।
एक कृषि ड्रोन मात्र 20 मिनट में एक एकड़ खेत में कीटनाशकों का छिड़काव कर देता है। हाथ से कीटनाशकों के छिड़काव से न केवल अधिक मात्रा छिड़काव हो जाता है बल्कि इससे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। इसी को देखते हुए सरकार ने कुछ नियम-कायदे के साथ खेती में ड्रोन के इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। इसके लिए सरकार ने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम (एसओपी) बनाया है।
मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया अभियान का एक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल आधारभूत ढांचा तैयार करना है ताकि फसल मानचित्रण, मृदा परीक्षण, सिंचाई आदि में सूचना प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा सके। 2022 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था सरकार समावेशी विकास के तहत फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए किसान ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा देगी।
स्पष्ट है, मोदी सरकार कृषि बाजार के उदारीकरण के साथ-साथ खेती-किसानी में आधुनिक तकनीक को बढ़ावा देने की नीति पर काम कर रही है। कृषि ड्रोन से बीज रोपण से लेकर पानी और कीट-प्रबंधन की सटीक जानकारी मिलेगी। कृषि ड्रोन सेंसर तकनीक और इंटेलीजेंस सिस्टम द्वारा बड़े क्षेत्र में कम समय में बीज रोपण कर देता है। रोपण प्रणाली वाले ड्रोन सीधे मिट्टी में बीज लगा सकते हैं।
ड्रोन फसलो में सही मात्रा में कीटनाशकों व उर्वरकों का छिड़काव करता है। इससे जमीन की शुद्धता बनी रहती है और रसायनों के अधिक प्रयोग पर रोक लगती है। ड्रोन में लगे सेंसर उन क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं जो बहुत शुष्क होते हैं या जिनमें जल भराव की समस्या होती है। स्पष्ट है ड्रोन द्वारा सिंचाई की सही योजना बनाई जा सकती है। इसके साथ-साथ ड्रोन के द्वारा फसल की गुणवत्ता निगरानी, मिट्टी के स्वास्थ्य की सटीक जानकारी सरलता से प्राप्त हो जाती है। कृषि ड्रोन दुर्गम व पहाड़ी क्षेत्रों में और अधिक क्षेत्रफल वाली भूमि का प्रभावी ढंग से देखरेख कर सकता है।
खेती की बढ़ती लागत और प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोत्तरी के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। ड्रोन फसलों के नुकसान का सही आकलन करता है। फसल नुकसान के दावों को जल्द निपटाने के लिए सरकार ने ड्रोन से सर्वे कराने का निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी अधिक से अधिक तकनीक का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए है। इसी को देखते हुए ड्रोन के अनिवार्य उपयोग के लिए कृषि सहित 12 मंत्रालयों का चयन किया गया है।
ड्रोन की अधिक कीमत और किसानों की माली हालत को देखते हुए सरकार किसानों को ड्रोन खरीदने पर सब्सिडी दे रही है। यह सब्सिडी अनुसूचित जाति, जनजाति, छोटे व सीमांत किसानों, महिलाओं, उत्तर-पूर्व के किसानों के लिए ड्रोन के खरीद मूल्य का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5 लाख रुपये है। इसके अतिरिक्त ड्रोन खरीदने पर अन्य किसानों को 40 प्रतिशत या अधिकतम 4 लाख और किसान उत्पादक संगठनों को 75 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाएगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों को ड्रोन खरीद हेतु 100 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है। केंद्र सरकार ने कृषि मशीनीकरण पर उप मिशन योजना शुरू की है। इसके तहत कृषि मंत्रालय कृषि ड्रोन की खरीद, किराए पर लेने और प्रदर्शन में सहायता करके इस तकनीक को किफायती बनाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, रक्षा और अन्य क्षेत्रों में ड्रोन की उपयोगिता लगातार बढ़ रही है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार भारत को ड्रोन विनिर्माण की धुरी बनाने में जुटी है। ड्रोन निर्माण के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम से दुनिया को अवगत कराने के लिए 26-27 जुलाई 2023 को दिल्ली में इंटरनेशनल ड्रोन सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)