भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति रही है। इसके तहत मोदी सरकार ने जहां भ्रष्टाचार के सभी रास्तों को बंद करने की कोशिश की, वहीं डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यानि डीबीटी योजना से केंद्र सरकार द्वारा भेजा गया पैसा सीधे जरूरतमंदों के हाथों में पहुंचाने की पारदर्शी व्यवस्था भी सुनिश्चित की। 2014 से लेकर अब तक इस योजना की वजह से 2.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बचत हुई है।
आज जब देश आजादी के अमृतकाल में प्रवेश कर चुका है, तब यह नया भारत अपनी विरासत को संजोते हुए नई पीढ़ी को आधुनिक और पारदर्शी भविष्य देने की ओर तेजी से बढ़ रहा है। 2014 से पहले स्थिति यह थी कि केंद्र से लाभार्थी को पैसा भेजा जाता, लेकिन बिचौलियों के कट के कारण वो पूरा पैसा लाभार्थी तक पहुँचता नहीं था। इस स्थिति और पूरे वातावरण में बदलाव लाने की जरूरत थी, जिसे मुख्यतः डीबीटी ने बदल दिया है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति रही है। इसके तहत मोदी सरकार ने जहां भ्रष्टाचार के सभी रास्तों को बंद करने की कोशिश की, वहीं डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यानि डीबीटी योजना से केंद्र सरकार द्वारा भेजा गया पैसा सीधे जरूरतमंदों के हाथों में पहुंचाने की पारदर्शी व्यवस्था भी सुनिश्चित की। 2014 से लेकर अब तक इस योजना की वजह से 2.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बचत हुई है। जब कोरोना महामारी फैली हुई थी, उस समय भी डीबीटी के कारण करीब 45 हजार करोड़ रुपये की बचत हुई थी।
गौरतलब है कि 12 दिसंबर, 2014 को पूरे देश में डीबीटी का विस्तार किया गया था। आज केंद्र सरकार के 54 मंत्रालयों और विभागों की 310 योजनाओं को डीबीटी के दायरे में लाया गया है।
देश में हो रहे इस बदलाव की मुख्य धुरी है – ई-गवर्नेंस। ई-गवर्नेंस यानी ईजी गवर्नेंस, इफेक्टिव गवर्नेंस, इकॉनोमिकल गवर्नेंस और इन्वायरमेंट फ्रेंडली गवर्नेंस। इसी ई-गवर्नेंस के अंतर्गत मोदी सरकार देश को पारदर्शितायुक्त पेपर-फ्री सोसायटी में बदल रही है और सरकार का “सबका-साथ, सबका-विकास, सबका-विश्वास और सबका-प्रयास” का मूलमंत्र भी इसमें स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।
किसी भी शासन व्यवस्था में सरकार की नीतियां, योजनाएं आखिरी छोर पर बैठे हुए व्यक्ति तक कितनी जल्दी और कैसे पहुँचती हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी यही मानना है कि सरकारी कार्यों और सरकारी योजनाओं की सफलता की सबसे अनिवार्य शर्त है- गुड गवर्नेंस यानी कि सुशासन, संवेदनशील शासन और जन सामान्य को समर्पित शासन।
जब सरकार के काम की तुलना की जा सके, उसकी निरंतर मॉनीटरिंग हो तो स्वाभाविक है कि समय सीमा में निर्धारित किये हुए लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए गुड गवर्नेंस पर जितना जोर दिया जाएगा, उतना ही सरकार अपने ‘Reaching The Last Mile’ के लक्ष्य को आसानी से पूरा कर सकेगी। ई-गवर्नेंस ही वो मॉडल है, जिससे सुशासन के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
सरकार के कामकाज में पारदर्शिता का एक मानक ये भी हो सकता है कि देश में कारोबार करने को लेकर कैसा माहौल है। इसकी प्रक्रिया कितनी सरल या कठिन है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केंद्र की सत्ता में आते ही देश का कारोबारी माहौल बेहतर बनाने के लिए ठोस प्रयास शुरू किए। सरकार ने तेजी से कारोबार और व्यापार करने के रास्ते में आने वाली रूकावटों को दूर किया। कारोबारियों को काम करने का सुविधाजनक माहौल दिया।
आत्मनिर्भर भारत के तहत भी ढांचागत और प्रक्रियागत सुधारों सहित विभिन्न पहलों से औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर हुआ है। हर क्षेत्र में भारत की रैंकिंग बेहतर हुई है और दुनियाभर में देश की साख मजबूत हुई है।
गौरतलब है कि ग्लोबल एंटरप्रेन्योरशिप मॉनिटर (जीईएम) की ओर से जारी राष्ट्रीय उद्यमशीलता सूचकांक रिपोर्ट में भारत को 51 देशों के बीच चौथे स्थान पर रखा गया, जबकि वर्ष 2021 में भारत इस सूचकांक में 16वें स्थान पर रहा था। यह सब संभव हो पाया क्योंकि डिजिटल व्यवस्था से सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और तेजी आई है।
सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की प्रगति क्या है, यह जानना भी 2014 से पहले टेढ़ी खीर था। लेकिन मोदी सरकार ने इसे अत्यंत सरल बना दिया है। आज सरकार की जन-धन योजना से लेकर डिजिटल इंडिया, ई-नाम, किसान सम्मान निधि, उज्ज्वला योजना, मुद्रा योजना, आयुष्मान भारत, अटल पेंशन योजना आदि किसी भी योजना से जुड़ी जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है। नमो एप, mygov, ट्रांस्फोर्मिंग इंडिया या संबंधित योजना की वेबसाइट पर मिनटों में सब जानकारी उपलब्ध हो जाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को डिजिटल बनाने का जो सपना देखा था, उसका लाभ वर्तमान में सीमा से सटे सुदूर गांव के लोग भी उठा रहे हैं। शुरुआत में डिजिटल इंडिया का मजाक उड़ाया गया कि रेहड़ी वाले क्या डिजिटल पेमेंट करेंगे! इसकी सफलता पर संदेह व्यक्त किया गया था, लेकिन भारत की जनता ने अपना सामर्थ्य दिखा दिया। आज छोटी से छोटी दूकान और ठेले पर भी यूपीआई पेमेंट की सुविधा दिखने लगी है।
गौरतलब है कि कोरोना महामारी के दौरान इतने बड़े देश को वैक्सीन उपलब्ध कराना और फिर मिनटों में उसका सर्टिफिकेट मुहैया करा देना, बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी अचरज वाली घटना थी। याद कीजिए, पहले हमारे देश में दूर-दराज के क्षेत्रों तक वैक्सीन पहुंचने में कई-कई दशक लग जाते थे। देश वैक्सीनेशन कवरेज के मामले में बहुत पीछे था।
देश के करोड़ों बच्चों को, खासकर गांवों में रहने वाले बच्चों को वैक्सीन के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था। लेकिन, आज यह संभव हुआ है तो इसमें गुड गवर्नेंस का बहुत बड़ा रोल है, यही ताकत है जिसने सरकार की Last Mile delivery को संभव बनाया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस के समन्वय से सरकार ने यह सभी कार्य संभव करके दिखाए हैं। इसीका नतीजा है कि आज 135 करोड़ देशवासियों के संकल्प से नया भारत सुशासन के पथ पर निरंतर आगे बढ़ रहा है, संवर रहा है।
(प्रस्तुत विचार लेखक के निजी हैं।)