सरकार की विनिवेश नीति से अर्थतंत्र को मिलेगी गति

निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में 1.05 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा है। सरकार को चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से अब तक 12,995.46 लाख करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं, जिसमें आईआरसीटीसी के आईपीओ से प्राप्त 637.97 करोड़ रुपये भी शामिल है। विनिवेश के जरिये वित्त मंत्रालय अर्थव्यवस्था को गति देना चाहता है। पूरी उम्मीद है कि सरकार की इस विनिवेश नीति से आने वाले समय में अर्थतंत्र को लाभ मिलेगा। 

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ने आम बजट, 2019 पेश करते हुए कहा था कि सरकार गैर-वित्तीय सार्वजनिक क्षेत्र में अपनी हिस्सेदारी बेचने का सिलसिला जारी रखेगी। आम बजट, 2019 में सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए विनिवेश लक्ष्य बढ़ाकर 1.05 लाख करोड़ कर दिया, जबकि वित्त वर्ष 2018-19 में विनिवेश का लक्ष्य 80 हजार करोड़ रुपये था। चालू वित्त वर्ष के अंत में सरकार के लिये राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.3 प्रतिशत रखना चाहती है। विनिवेश से मिलने वाली राशि इस दिशा में काफी मददगार साबित हो सकती है। 

किन सरकारी कंपनियों में सरकार 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी को बनाये रखेगी, इसपर सरकार अलग-अलग विचार करेगी। सरकार ने 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी की वर्तमान नीति में भी संशोधन किया है। इसके लिये 51 प्रतिशत हिस्सेदारी में सरकार नियंत्रित संस्थाओं की हिस्सेदारी को भी शामिल करेगी। विनिवेश प्रस्ताव में सरकारी हिस्सेदारी की निचली सीमा तय नहीं है। मंत्रियों के समूह को निचली सीमा तय करने का अधिकार होगा। ये हिस्सेदारी एक साथ न बेचकर किश्तों में बेची जायेगी, ताकि खरीददार ढूँढने में परेशानी न हो।  

क्या है विनिवेश प्रक्रिया?

विनिवेश प्रक्रिया निवेश का उलटा होता है। निवेश में किसी कारोबार, किसी संस्था या किसी परियोजना में पूँजी लगानी होती है, जबकि विनिवेश में निवेश किये हुए रकम को वापिस निकाला जाता है। यहाँ निजीकरण और विनिवेश के अंतर को समझना जरूरी है। निजीकरण में सरकार अपने 51 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेच देती है, जबकि विनिवेश की प्रक्रिया में वह अपना कुछ हिस्सा निकालती है, लेकिन उसका मालिकाना हक उक्त कंपनी पर बना रहता हैरणनीतिक विनिवेश में किस्तों में नीलामी की जाती है। 

पाँच कंपनियों में रणनीतिक विनिवेश 

बजट घोषणा के मुताबिक केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 21 नवंबर, 2019 को भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), भारतीय जहाजरानी निगम और कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया समेत पांच प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी बेचने को मंजूरी दे दी। भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन में सरकार की 53.29 प्रतिशत हिस्सेदारी है। 

रणनीतिक खरीदार को यह हिस्सेदारी स्थानातंरित की जायेगी। इनमें हिस्सेदारी बेचने के साथ प्रबंधन नियंत्रण भी दूसरे हाथों में सौंपा जायेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इसके अलावा मंत्रिमंडल ने प्रबंधन नियंत्रण अपने पास रखते हुए चुनिंदा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से नीचे लाने को भी मंजूरी दी है। पाँच सरकारी कंपनियों के रणनीतिक विनिवेश से सरकार को कुल 60,000 करोड़ रूपये मिलने का अनुमान है।

नुमालीगढ़ रिफाइनरी सरकारी कंपनी को बेची जायेगी 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार सरकारी उपक्रमों में विनिवेश का तरीका अलग-अलग होगा। उन्होंने कहा कि असम की नुमालीगढ़ रिफाइनरी में बीपीसीएल की हिस्सेदारी 61 प्रतिशत से अधिक है और इसको इस विनिवेश से पहले बीपीसीएल से अलग कर दिया जायेगा।  नुमालीगढ़ रिफाइनरी की हिस्सेदारी तेल एवं गैस क्षेत्र की किसी सरकारी कंपनी को बेची जायेगी और इस प्रकार यह कंपनी सार्वजनिक उपक्रम बनी रहेगी। 

कॉनकोर की 30.80 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची जायेगी 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक शिपिंग कॉरपोरेशन में सरकार की हिस्सेदारी 63.75 प्रतिशत है, जिसका विनिवेश किया जायेगा। कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकोर) में 54.80 प्रतिशत की हिस्सेदारी में से 24 प्रतिशत हिस्सेदारी सरकार के पास रहेगी, लेकिन 30.80 प्रतिशत हिस्सेदारी का रणनीतिक विनिवेश किया जायेगा। नार्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर की शत प्रतिशत हिस्सेदारी और टीएसडीसीआईएल की 74.23 प्रतिशत हिस्सेदारी एनटीपीसी खरीदेगी। 

अक्टूबर महीने से शुरू की गई है विनिवेश प्रक्रिया 

चालू वित्त वर्ष के लिए रणनीतिक विनिवेश की प्रक्रिया अक्टूबर महीने में शुरू की गई है।   अक्टूबर महीने में सरकार ने सरकारी कंपनियों कॉनकोर, एनईईपीसीओ और टीएचडीसी इंडिया में नियंत्रक हिस्सेदारी बेचने के लिए सलाहकारों से सलाह मांगी गई थी। मंत्रिमंडल ने बिजली कंपनी टीएचडीसी इंडिया और नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (नीपको) में सरकार की हिस्सेदारी एनटीपीसी को बेचने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। कॉनकोर में हिस्सेदारी बेचने का फैसला भी अक्टूबर महीने में लिया गया था। 

टीएचडीसी इंडिया में केंद्र सरकार की 75 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश सरकार की 25 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि नीपको में केंद्र सरकार की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी है। विनिवेश के बाद कंपनी में सरकार का प्रबंधन नियंत्रण समाप्त हो जायेगा। रणनीतिक विनिवेश में कंपनी का प्रबंधन नियंत्रण भी खरीदार के पास चला जाता है। सरकार फरवरी, 2020 तक विनिवेश की प्रक्रिया पूरी कर लेना चाहती है।

विनिवेश के जरिये 1.05 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य 

निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में 1.05 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा है। सरकार को चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से अब तक 12,995.46 लाख करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं, जिसमें आईआरसीटीसी के आईपीओ से प्राप्त 637.97 करोड़ रुपये भी शामिल है। कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के जरिये अर्थव्यवस्था को 1.45 लाख करोड़ रूपये की राहत दिये जाने के बाद विनिवेश का लक्ष्य हासिल करना सरकार के लिये महत्वपूर्ण हो गया है। 

निष्कर्ष

सरकार की योजना कुल 12 सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने की है, जिनमें एनटीपीसी, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन, पावर ग्रिड कॉरपोरेशन इंडिया आदि शामिल हैं। एनटीपीसी में सरकार की हिस्सेदारी 56.41 प्रतिशत है, जबकि पावर फाइनांस कॉरपोरेशन में सरकार की हिस्सेदारी 59.05 प्रतिशत और पावर ग्रिड कॉरपोरेशन इंडिया में सरकार की हिस्सेदारी 55.37 प्रतिशत है। विनिवेश के जरिये वित्त मंत्रालय अर्थव्यवस्था को गति देना चाहता है। पूरी उम्मीद है कि सरकार की इस विनिवेश नीति से आने वाले समय में अर्थतंत्र को लाभ मिलेगा।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)