योगी को सभी दिशाओं से जनसमर्थन मिला है। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से भी इस बार भाजपा को वोट मिलना यह दर्शाता है कि जनता केवल विकास कार्य चाहती है ना कि नफरत की राजनीति। इसके साथ ही सोशल मीडिया सहित अपने चैनलों पर घृणा फैलाने वाले तथाकथित पत्रकारों व बुद्धिजीवियों की भी बोलती बंद हो गई है जो इस तरह की धारणा फैला रहे थे कि जनता सरकार से नाराज है। वास्तविकता यही है कि उप्र की जनता ने केंद्र व राज्य का बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड देखकर ही दोबारा बागडोर सौंपी है।
पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों के बहुप्रतीक्षित परिणाम आ चुके हैं। उत्तर प्रदेश में जहां भाजपा ने सीधे बहुमत पाते हुए बड़ी एवं भव्य जीत दर्ज की है, वहीं उत्तराखंड और मणिपुर में भी बहुमत हासिल कर इन राज्यों में भी सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया है। गोवा में अभी भाजपा के पास बहुमत जुटाने के लिए एक सीट कम है लेकिन गोवा में भी भाजपा सबसे बड़ा दल बनकर उभरा है, इस बूते वहां भी सरकार बनना तय है। अब केवल औपचारिकताएं बची हैं।
जहां तक पंजाब की बात है, वहां के मतदाताओं ने एक काम तो उल्लेखनीय किया है, वह यह कि उन्होंने वहां मिलकर कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। शेष चुनाव नतीजों की बात करें तो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा की बहुमत वाली सरकार बन रही है। जहां यूपी में मतदाताओं ने केंद्र एवं राज्य दोनों के जनप्रिय चेहरों क्रमश: प्रधानमंत्री मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी को देखकर बेतहाशा वोट दिए, जिसके चलते बीजेपी की प्रचंड लहर थी, वहीं उत्तराखंड में मतदाताओं ने भाजपा पर पूरा पूरा विश्वास जताया।
मणिपुर में बहुमत के लिए 31 सीटें आवश्यक हैं और भाजपा ने 32 सीटें जुटा ली हैं और इसके साथ ही पूर्वोत्तर ने भी अपना संदेश दे दिया है कि वे भाजपा के साथ हैं। अब सबसे बड़े एवं चर्चित राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां भाजपा की प्रचंड लहर देखी गई। 1985 के बाद यह दूसरा मौका है जब उप्र में एक ही दल लगातार दूसरी बार सत्ता में आ रहा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि डबल इंजन की सरकार यानी केंद्र एवं राज्य दोनों ने मिलकर उप्र का गत 5 वर्षों में कायाकल्प किया है। मतदान शुरू होने के पहले जब बाहर इस प्रकार की चर्चाएं थीं कि योगी आदित्यनाथ को बीजेपी अयोध्या से टिकट देगी तो इसका दूसरा अर्थ यह निकाला जा रहा था कि अयोध्या राममंदिर निर्माण को भाजपा भुनाना चाहती है। लेकिन अंदरखाने में कुछ और चल रहा था। भाजपा ने इन तमाम अटकलों को सिरे से खारिज करते हुए योगी आदित्यनाथ को उनके क्षेत्र गोरखपुर से ही टिकट दिया और वे पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े और जीतकर आए।
उनका चुनाव लड़ना भी एक प्रकार की संवैधानिक औपचारिकता ही थी क्योंकि उन्हें किसी एक सीट नहीं बल्कि पूरे प्रदेश से ही चुनाव लड़ना था, पूरे प्रदेश की ही जनता का दिल जीतना था और उन्होंने इसे कर भी दिखाया। यह उनके प्रति जनता के अटूट विश्वास की भी जीत है।
एक बात और जो उल्लेख करने योग्य है कि कांग्रेस की दुर्गति पहले से अधिक हो गई है। पिछले चुनाव में 2017 में कांग्रेस को 403 में से केवल 7 सीटें मिली थीं। इस बार जिस प्रकार से कांग्रेस ने पूरे यूपी की बागडोर प्रियंका गांधी को सौंपी थी तो लगा था कि वे कांग्रेस की दुर्गति को थोड़ा कम कर देंगी। लेकिन यह क्या! प्रियंका ने तो कांग्रेस का लगभग सफाया ही करवा दिया।
इस बार यूपी में कुल 7 चरणों में चुनाव हुए। यदि कांग्रेस हर चरण में एक भी सीट सुरक्षित कर लेती तो कुल 7 सीटें तो ले ही आती लेकिन कांग्रेस को केवल 2 सीटें ही मिलीं। यह सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए बहुत शर्मनाक आंकड़ा है। इतनी बुरी हार पर वैसे तो कांग्रेस की आंखें खुलनी चाहिये लेकिन कांग्रेस को फर्क इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि वह लगातार शर्मनाक पराजय की आदी हो चुकी है। मणिपुर की कुल 60 सीटों में से कांग्रेस केवल 5 सीटें ला सकीं। पंजाब की 117 सीटों में से केवल 18 सीटें और गोवा में 40 सीटों में से 11 सीटें। ये आंकड़े कांग्रेस की दुर्दशा को स्पष्ट रूप से बताते हैं।
योगी को सभी दिशाओं से जनसमर्थन मिला है। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से भी इस बार भाजपा को वोट मिलना यह दर्शाता है कि जनता केवल विकास कार्य चाहती है ना कि नफरत की राजनीति। इसके साथ ही सोशल मीडिया सहित अपने चैनलों पर घृणा फैलाने वाले तथाकथित पत्रकारों व बुद्धिजीवियों की भी बोलती बंद हो गई है जो इस तरह की धारणा फैला रहे थे कि जनता सरकार से नाराज है।
वास्तविकता यही है कि उप्र की जनता ने केंद्र व राज्य का बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड देखकर ही दोबारा बागडोर सौंपी है। बीते पांच वर्षों में से लगभग दो वर्ष तो कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गए। बावजूद इसके योगी आदित्यनाथ ने ना केवल यूपी में विकास कार्य करके दिखाए बल्कि कानून व्यवस्था भी सुधारकर प्रदेश को अपराधियों की छवि वाले राज्य से मुक्त कराया है।
सपा ने करीब सवा सौ सीटों के साथ थोड़ा बहुत दम भरा लेकिन बसपा केवल एक ही सीट ला सकी। कहा जा सकता है कि मोदी मैजिक फिर से चल गया है और यूपी की जनता ने विपक्ष की तमाम साजिशों के बावजूद भाजपा पर ही अपना भरोसा जताया है। विपक्षी खेमों ने दुष्प्रचार करते हुए सीमाएं लांघ दीं। प्रियंका गांधी ने भी पंजाब के किसान आंदोलन को यूपी से जोड़ा। अखिलेश यादव ने अपनी सभाओें में उलजलूल टिप्पणियां कीं। लेकिन विघ्नसंतोषियों की एक ना चली और चला तो केवल डबल इंजन।
कोरोना महामारी के प्रभाव, कृषि कानून विरोधी आंदोलन को फैलाने के विरोधियों के प्रयास के बावजूद योगी सुशासन चलाते रहे। योगी सरकार ने संकट में गरीबों को दवा-राशन पहुंचाया। चुनाव के नतीजों पर उसका सीधा असर नजर आ रहा है। यह भी माना जा रहा है कि गरीब दलितों का जो वोट बसपा को अभी तक उत्तर प्रदेश में मजबूती देता रहा है, वह भी एक सीमा तक भाजपा की तरफ मुड़ा है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में अब तक कानून व्यवस्था बड़ा मुद्दा रही है।
2017 में भाजपा इसी वादे के साथ आई थी कि कानून व्यवस्था को सुधारा जाएगा और मजबूत किया जाएगा। योगी आदित्यनाथ ने इसके बाद माफिया पर लगातार प्रहार किए। अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति अपनाई। लव जेहाद के खिलाफ कानून लाया गया। माफिया की संपत्ति पर बुलडोजर चलाए गए। ये सब योगी आदित्यनाथ के कई ऐतिहासिक सुधारवादी कदम थे, जिन्होंने प्रदेश में मजबूत कानून व्यवस्था संदेश दिया। इसी सुशासन को यह जनादेश प्राप्त हुआ है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)