समूचे विपक्ष की मोदी विरोधी मुहिम की एक मुख्य वजह यह है कि यदि एक बार फिर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो लालटेन युग की तरह जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा पर चलने वाली उनकी राजनीतिक दुकान ही बंद हो जाएगी। इसीलिए सभी एकजुट होकर मोदी का विरोध कर रहे हैं।
आजादी के बाद 2019 का लोक सभा चुनाव पहला ऐसा चुनाव है जिसमें बिजली, सड़क, पेयजल, शौचालय, शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दे गायब हैं। मुद्दा है तो बस नरेंद्र मोदी को हराने का। आखिर मोदी के नाम पर विपक्ष को चिढ़ क्यों है इसे पिछले पांच वर्षों में नरेद्र मोदी के प्रयासों से देश में हुई अनेक विकासात्मक क्रांतियों में से एक बिजली क्रांति से समझा जा सकता है।
आजादी के बाद से ही गांवों को रोशन करने की कवायद शुरू हो गई। छिटपुट प्रयासों के विफल रहने पर संस्थागत उपाय शुरू किए गए। इसके लिए 1969 में ग्रामीण विद्युतीकरण निगम की स्थापना की गई। इसके साथ कई और प्रयास किए गए जैसे न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के तहत ग्रामीण विद्युतीकरण, कुटीर ज्योति योजना, त्वरित ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम।
इनके अलावा सरकार ने 2005 में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (आरजीजीवीवाई) शुरू की। इसमें दिसंबर 2012 तक सभी घरों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया लेकिन गांवों में अंधेरा दूर नहीं हुआ। जिन गांवों को आधिकारिक रूप से विद्युतीकृत घोषित किया गया, वहां भी बिजली के दर्शन कभी-कभार ही होते थे। कई बार हफ्तों तक बिजली गायब रहती थी। इसके लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता की कमी और नौकरशाही की सुस्ती मुख्य रूप से जिम्मेदार रही। दशकों के प्रयास के बावजूद गांवों तक बिजली भले नहीं पहुंची लेकिन इस दौरान भ्रष्ट नेताओं-ठेकेदारों-नौकरशाहों की कोठियां जरूर गुलजार हो गईं।
आर्थिक विकास में बिजली की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिजली सुधार को प्राथमिकता दिया। 2014 में सत्ता में आने के बाद सरकार ने देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने के लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेआई) की शुरूआत किया। नई योजना में आरजीजीवीवाई का विलय कर दिया गया है। डीडीयूजीजेआई की प्रेरणा गुजरात में ग्रामीण बिजली वितरण की कामयाब रही योजना से ली गई है। इसके तहत ग्रामीण घरों और कृषि कार्यों के लिए अलग-अलग फीडर की व्यवस्था कर पारेषण व वितरण ढांचे को मजबूत कर सभी स्तरों जैसे इनपुट प्वाइंट, फीडर और वितरण ट्रांसफर पर मीटर लगाना शामिल है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस जमीनी हकीकत से परिचित थे कि कांग्रेसी संस्कृति में पली-बढ़ी व्यवस्था में सभी तक बिजली पहुंचाना आसान काम नही है। इसी को देखते हुए उन्होंने 15 अगस्त, 2015 को लाल किले की प्राचीर से एक हजार दिनों के भीतर देश के सभी विद्युतविहीन गांवों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा और हर स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित किया। राजनीतिक इच्छाशक्ति और नौकरशाही की चुस्ती का नतीजा यह निकला कि सरकार तय लक्ष्य से 12 दिन पहले अंधेरे में डूबे 18,452 से अधिक गांवों तक बिजली पहुंचाने में कामयाब रही।
मोदी सरकार भले ही हर गांव तक बिजली पहुंचाने में कायमाब रही हो, लेकिन एक विडंबना यह रही कि विद्युतीकृत गांवों में चार करोड़ घर ऐसे रह गए जो अंधेरे में डूबे थे। इसके लिए 25 सितबंर, 2017 को प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) शुरू की गई। इसका लक्ष्य 31 मार्च, 2019 तक भारत के हर घर तक बिजली पहुंचाने का रखा गया। सतत निगरानी, राजनीतिक प्रतिबद्धता और नौकरशाही की चुस्ती के कारण सौभाग्य योजना ने देश से लालटेन युग की विदाई कर दी।
अब मोदी सरकार हर घर को सातों दिन-चौबीसों घंटे रोशन करने की कवायद में जुटी है। इसके लिए देश भर में प्रीपेड बिजली मीटर लगाए जाने की शुरूआत हो चुकी है। जिस प्रकार प्रीपेड मोबाइल के जरिए देश में मोबाइल क्रांति आई उसी प्रकार बिजली क्रांति का आगाज होने को है।
समूचे विपक्ष की मोदी विरोधी मुहिम की एक मुख्य वजह यह है कि यदि एक बार फिर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो लालटेन युग की तरह जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा पर चलने वाली उनकी राजनीतिक दुकान ही बंद हो जाएगी। इसीलिए सभी एकजुट होकर मोदी का विरोध कर रहे हैं।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)