राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम द्वारा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों एवं केंद्र सरकार से जुड़े अन्य विभिन्न संस्थानों की उपयोग में नहीं आ रही भूमि एवं भवन सम्पत्तियों का मौद्रीकरण किया जा सकेगा। राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम, वित्त मंत्रालय के माध्यम से, केंद्र सरकार के नियंत्रण में कार्य करेगा एवं इसकी प्रारम्भिक अधिकृत पूंजी 5,000 करोड़ रुपए निर्धारित की गई है।
अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रीमंडल ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम की स्थापना को मंजूरी दे दी है। राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम द्वारा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों एवं केंद्र सरकार से जुड़े अन्य विभिन्न संस्थानों की उपयोग में नहीं आ रही भूमि एवं भवन सम्पत्तियों का मौद्रीकरण किया जा सकेगा। राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम, वित्त मंत्रालय के माध्यम से, केंद्र सरकार के नियंत्रण में कार्य करेगा एवं इसकी प्रारम्भिक अधिकृत पूंजी 5,000 करोड़ रुपए निर्धारित की गई है।
वर्तमान में, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पास बिल्कुल उपयोग में नहीं आ रही अथवा पूर्ण रूप से उपयोग में नहीं आ रही भूमि एवं भवन सम्पत्तियां बहुत बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। इस प्रकार की भूमि एवं भवनों का मौद्रीकरण (लाभपूर्ण उपयोग) कर केंद्र सरकार देश के लिए बहुत बड़ी मात्रा में अर्थ का अर्जन कर सकती है।
केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, रेलवे विभाग, सुरक्षा विभाग एवं दूरसंचार विभाग, आदि एवं केंद्र सरकार से जुड़े अन्य विभिन्न संस्थानों में उपयोग में नहीं आ रही ऐसी भूमि बहुत भारी मात्रा में उपलब्ध हैं जिनके स्वामित्व सम्बंधी कागजात इन संस्थानों/विभागों के पास उपलब्ध ही नहीं है। जिसके कारण ये संस्थान एवं विभाग इनके द्वारा उपयोग में नहीं लाई जा रही भूमि को न तो बेच पा रहे हैं, न किराए पर उठा पा रहे हैं और न ही पट्टे पर लाभप्रद उपयोग हेतु किसी अन्य संस्थान को दे पा रहे हैं।
इस प्रकार की समस्याओं का त्वरित हल निकालने के उद्देश्य से भी राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम की स्थापना की गई है ताकि केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा उपयोग में नहीं आ रही इस प्रकार की भूमि एवं भवनों का लाभप्रद उपयोग कर देश के लिए उपयोगी बनाया जाय।
केंद्र सरकार के अकेले रेलवे विभाग के पास 4.78 लाख हेक्टेयर भूमि उपलब्ध है, जिसमें से 53,000 हेक्टेयर भूमि का उपयोग उचित तरीके से नहीं हो पा रहा है। यह भूमि रेलवे के ट्रैक के आसपास स्थित है। अब रेलवे विभाग ने उपयोग में नहीं आ रही इस भूमि पर सौर ऊर्जा के पैनल स्थापित करने का निर्णय लिया है ताकि रेलवे विभाग द्वारा उपयोग किए जाने हेतु ऊर्जा का उत्पादन, उपयोग में नहीं आ रही इस भूमि पर किया जा सके।
इस संदर्भ में रेलवे विभाग ने एक योजना भी बनाई है जिसके अनुसार वर्ष 2030 तक इन सोलर पैनलों के माध्यम से उत्पादित ऊर्जा से रेलवे विभाग अपनी समस्त ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति कर सकने में सक्षम हो जाएगा एवं पारम्परिक ऊर्जा के उपयोग को लगभग समाप्त कर देगा। इस प्रकार, उपयोग में नहीं लाई जा रही भूमि के मौद्रीकरण का कितना बड़ा लाभ रेलवे विभाग को होने जा रहा है।
इसी प्रकार रेलवे विभाग के पास आज 7,000 से अधिक रेलवे स्टेशन हैं एवं इसमें से रेल्वे विभाग ने शहरी क्षेत्रों में स्थित 400 रेल्वे स्टेशनों की पहचान कर ली है एवं इन रेलवे स्टेशनों के आसपास उपयोग में नहीं लाई जा रही भूमि चूंकि बहुत महंगी है अतः उपयोग में नहीं लाई जा रही है इस भूमि का मौद्रीकरण कर इस भूमि पर आर्थिक गतिविधियों का संचालन करने का निर्णय लिया जा रहा है।
इससे रेलवे विभाग को न केवल अतिरिक्त आय की प्राप्ति होने लगेगी बल्कि देश में रोजगार के लाखों नए अवसर भी निर्मित किए जा सकेंगे। उपयोग में नहीं आ रही इस भूमि पर, वस्तुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने ले जाने (ढुलाई) हेतु निजी क्षेत्र में टर्मिनलों की स्थापना किए जाने के बारे में भी विचार किया जा रहा है, ताकि रेल्वे के लिए वस्तुओं की आवाजाही को सुगम बनाया जा सके।
केंद्र सरकार के कई सार्वजनिक उपक्रम ऐसे भी हैं, जिनमें अब आर्थिक गतिविधियां लगभग समाप्त हो गई हैं। इन सार्वजनिक उपक्रमों के पास भी उपयोग में नहीं आ रही भूमि बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। केंद्र सरकार के इन सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा इस भूमि का विक्रय नहीं किया जा पा रहा है क्योंकि इस भूमि के स्वत्वाधिकार सम्बंधी कागजात इन उपक्रमों के पास उपलब्ध ही नहीं हैं। परंतु, अब राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम की स्थापना के बाद इस तरह की समस्याओं का हाल आसानी से निकाला जा सकेगा।
अतः अब उपयोग में नहीं लाई जा रही इस प्रकार की भूमि का भी सार्वजनिक एवं आर्थिक गतिविधियों के लिए उपयोग सम्भव हो सकेगा। उदाहरण के लिए वस्त्र निगम के पास, कई वस्त्र निर्माण इकाईयों के बंद होने के कारण, उपयोग में नहीं आ रही भारी मात्रा में भूमि एवं बड़े बड़े भवन (निर्माण इकाईयां) तो उपलब्ध हैं परंतु इनमे से कई भवनों के स्वत्वाधिकार सम्बंधी कागजात वस्त्र निगम के पास उपलब्ध नहीं हैं। अब वस्त्र निगम के लिए एक आशा की किरण जागी है कि इस प्रकार की भूमि एवं भवनों का सार्थक उपयोग सम्भव हो सकेगा। साथ ही उपयोग में नहीं आ रही भूमि पर हो रहे अतिक्रमण पर भी अब अंकुश लगाया जा सकेगा।
राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम को भूमि एवं भवनों की बाजार कीमत तय करने के उद्देश्य से एवं इन आस्तियों का मौद्रीकरण करने के उद्देश्य से तकनीकी जानकारी में माहिर विशेषज्ञों की एक टीम उपलब्ध करायी जाएगी। यह टीम पूर्ण तौर पर भारत सरकार के अंतर्गत ही कार्य करेगी।
केंद्र सरकार के कुछ उपक्रमों द्वारा उपयोग में नहीं ला जा रही भूमि पर विभिन्न हितसाधकों के बीच विवाद भी पाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम इस प्रकार के विवादों को सुलझाने में मदद कर सकेगा। केंद्र सरकार का कोई उपक्रम यदि खाली पड़ी भूमि के कुछ हिस्से का उपयोग अपने उपक्रम के लिए करना चाहता है एवं शेष बचे हुए हिस्से का मौद्रीकरण कर करना चाहता है तो उस उपक्रम के इस आवेदन पर राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम विचार कर सकता है।
कुल मिलाकर निहित उद्देश्य यह है कि उपयोग में नहीं आ रही पूरी भूमि का लाभकारी उपयोग देश हित में किया जा सके। राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम विवादों से ग्रसित भूमि के विवाद का निपटान करने में सबंधित उपक्रमों की भरपूर सहायता करेगा। साथ ही, इस भूमि पर किसी भी प्रकार के अतिक्रमण को हटाए जाने के लिए भी निगम अपनी सहायता प्रदान करेगा।
यह निगम इस भूमि की बाजार कीमत भी तय करने हेतु सक्षम होगा। निगम को इसलिए वित्त क्षेत्र के विशेषज्ञ, कानून क्षेत्र के विशेषज्ञ, इंजीनीयर, आदि विशेषज्ञ उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि किसी भी क्षेत्र की किसी भी प्रकार की समस्या को शीघ्रता से हल किया जा सके। इस प्रकार केंद्र सरकार के उक्त निर्यय की प्रशंसा की जानी चाहिए।
पूर्व में जब देश की जनसंख्या बहुत कम थी तब केंद्र सरकार के विभिन्न उपक्रमों को अपना कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए बहुत अधिक मात्रा में भूमि उपलब्ध करा दी गई थी परंतु अब जब देश की जनसंख्या 130 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी है ऐसी हालत में इतनी बड़ी तादाद में भूमि इन उपक्रमों उपलब्ध कराना सम्भव ही नहीं है क्योंकि देश में भूमि की कुल उपलब्धता को तो बढ़ाया ही नहीं जा सकता है। इसलिए उपयोग में नहीं आ रही भूमि का लाभप्रद उपयोग किया जाना आज के समय की आवश्यकता है।
कई अन्य देशों में भी राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम की स्थापना कर उक्त प्रकार की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है एवं इन देशों में इसके बहुत लाभकारी परिणाम देखने में आए हैं। अतः भारत में भी इस प्रक्रिया को लागू करने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आनी चाहिए, ऐसी आशा की जा रही है।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। आर्थिक विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)