मनमोहन सिंह कांग्रेसनीत संप्रग सरकार में दस वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे। इस दौरान उनकी गतिविधियों को देखते हुए उनपर दस जनपथ से संचालित होने का आरोप खूब लगता रहा। संप्रग-2 के कार्यकाल में जब कांग्रेस सरकार ने घोटालों के कीर्तिमान बनाने शुरू किए और प्रधानमंत्री उसपर बेबसों की तरह मौन व निष्क्रिय नज़र आए तो इन आरोपों को और बल मिला। अनेक ऐसे अवसर आए जब दस जनपथ के प्रति अपनी निष्ठा के ही कारण मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को तार-तार होने दिया।
देश में चुनाव का मौसम है और नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप चरम पर हैं। संप्रग सरकार में बतौर प्रधानमंत्री बड़े-बड़े घोटालों पर मौन धारण किए रहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी बीच-बीच में बोलने लगे हैं। हाल में ही कांग्रेस नेता मनीष तिवारी की पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को भाषा और पद की गरिमा का ध्यान रखने की नसीहत दी।
ये अलग बात है कि कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर अन्य पार्टी नेताओं द्वारा लगातार अपने असभ्य बयानों से प्रधानमंत्री मोदी का जिस तरह से अपमान किया जा रहा है, उसपर मनमोहन सिंह ने कुछ नहीं कहा। मोदी को भाषा की नसीहत देने से पूर्व सिंह साहब को एक नजर अपने पार्टी अध्यक्ष के बोलों पर भी डाल लेनी चाहिए थी। और पद की गरिमा की बात तो मनमोहन सिंह न ही करते तो बेहतर था, क्योंकि ये ऐसा बिंदु है, जिसपर उनका इतिहास खुद उन्हें कठघरे में खड़ा करता है।
मनमोहन सिंह कांग्रेसनीत संप्रग सरकार में दस वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे। इस दौरान उनकी गतिविधियों को देखते हुए उनपर दस जनपथ से संचालित होने का आरोप खूब लगता रहा। संप्रग-2 के कार्यकाल में जब कांग्रेस सरकार ने घोटालों के कीर्तिमान बनाने शुरू किए और प्रधानमंत्री उसपर बेबसों की तरह मौन व निष्क्रिय नज़र आए तो इन आरोपों को और बल मिला। अनेक ऐसे अवसर आए जब शायद दस जनपथ के प्रति अपनी निष्ठा के ही कारण मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को तार-तार होने दिया।
संप्रग सरकार का वो दागी अध्यादेश कौन भूल सकता है, जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विदेश में थे और देश में उनकी कैबिनेट द्वारा स्वीकृत अध्यादेश को कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने बीच मीडिया में ‘बकवास’ कहते हुए फाड़ डाला था। क्या राहुल गांधी की ये हरकत प्रधानमंत्री पद की गरिमा का हनन करने वाली नहीं थी?
मनमोहन सिंह ने तब कहा था कि वे कैबिनेट में इसकी चर्चा करेंगे। क्या चर्चा की उन्होंने और प्रधानमंत्री का अपमान करने वाली इस गैर-जिम्मेदाराना हरकत के लिए राहुल गांधी पर पार्टी की तरफ से क्या कोई कार्यवाही हुई? कुछ नहीं हुआ बल्कि अध्यादेश वापस ले लिया गया। कांग्रेसी नेतागण जो इसका बचाव कर रहे थे, राहुल का रुख देखकर अपने ही बयानों से पलटी मारने लगे। मनमोहन सिंह चुपचाप तमाशा देखते रहे।
अपने अपमान का तमाशा और सरकार का भ्रष्टाचार खामोश होकर देखने वाले मनमोहन सिंह और मामलों पर खामोश नहीं थे। वे राजनीति के बोल तब भी बोलते थे। तभी तो अपनी छवि से इतर यह विशुद्ध राजनीतिक बयान उन्होंने दिया कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है। कितनी बड़ी विडम्बना है कि देश का संविधान समानता की बात करता है और उसी संवैधानिक व्यवस्था का सर्वोच्च अंग यानी प्रधानमंत्री वोट बैंक की ‘पार्टी पॉलिटिक्स’ के दबाव में देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का बता देता है।
मनमोहन सिंह बताएंगे कि क्या उनका ये बयान देश के संविधान और प्रधानमंत्री पद की गरिमा का मान बढ़ाने वाला था? इसके अलावा नरेंद्र मोदी को आज भाषा की नसीहत दे रहे मनमोहन सिंह, अपने कार्यकाल के आखिर में दिया गया वो बयान शायद भूल गए जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी को देश के लिए ‘विनाशकारी’ बता दिया था! क्या ये भाषा बड़ी सभ्य और पद की गरिमा के अनुकूल थी? अतः मनमोहन सिंह को चाहिए कि मोदी को उपदेश देने से पहले एकबार अपने इतिहास में झाँक लें, इसके बाद उनमें पीएम पद की गरिमा पर नसीहत देने का साहस नहीं रह जाएगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)