2018-19 में भारत ने 80,000 करोड़ रूपये के रक्षा उपकरणों का उत्पादन किया जिसमें से 10,745 करोड़ रूपये के रक्षा उपकरणों का निर्यात किया गया। 2016-17 में 1500 करोड़ रूपये और 2017-18 में 4682 करोड़ रूपये का निर्यात किया गया था। रक्षा उत्पादन में बढ़ोत्तरी के लिए मोदी सरकार ने अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) और तिरूचिरापल्ली (तमिलनाडु) में दो रक्षा गलियारों की स्थापना की है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देते हुए रक्षा मंत्रालय ने 101 रक्षा साजो-सामान एवं उपकरणों के आयात पर कुछ वर्षों के लिए चरणबद्ध तरीके से प्रतिबंध लगा दिया है। सेना को अब अपनी जरूरत के लिए इन उपकरणों की खरीद भारतीय रक्षा विनिर्माताओं से करनी होगी। अब हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर, मालवाहक विमान, पारंपरिक पनडुब्बियां, क्रूज मिसाइल और विभिन्न हथियारों का आयात नहीं होगा बल्कि घरेलू स्तर पर इन्हें बनाया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2015 से जुलाई 2020 के बीच सेना ने हथियारों की इन 101 श्रेणियों में 3.5 लाख करोड़ रूपये मूल्य के उपकरणों की खरीद की है। सरकार के इस फैसले से अगले पांच से सात साल में घरेलू रक्षा उद्योग को लगभग चार लाख करोड़ रूपये के ठेके मिलेंगे। सरकार ने घरेलू पूंजीगत खरीद के लिए 52,000 करोड़ रूपये निर्धारित किया है।
दरअसल पिछले कई दशकों से समुचित नीतिगत पहल के अभाव ने भारत को हथियारों का सबसे बड़ा आयातक बना दिया। इस दौरान कई बार घरेलू रक्षा उत्पादन बढ़ाने की कवायद की गईं लेकिन सत्ता पक्ष से जुड़े आयातकों की मजबूत लॉबी और हथियार दलालों के कारण रक्षा उत्पादन संबंधी नीतियां कागजों से आगे नहीं बढ़ पाईं।
इसका नतीजा यह हुआ कि भारत दुनिया का अग्रणी हथियार आयात देश बन गया। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने वाला देश अपनी जरूरत के छोटे-मोटे हथियारों तक के लिए आयात पर निर्भर है।
इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने घरेलू रक्षा विनिर्माण की ओर ध्यान दिया। घरेलू रक्षा विनिर्माण में तेजी लाने के लिए प्रधानमंत्री ने नीतिगत परिवर्तन करते हुए निजी कंपनियों की भागीदारी को मंजूरी दे दी। इसका नतीजा यह हुआ कि रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन में तेजी आई और भारत से इनका निर्यात भी किया जाने लगा।
उदाहरण के लिए 2018-19 में भारत ने 80,000 करोड़ रूपये के रक्षा उपकरणों का उत्पादन किया जिसमें से 10,745 करोड़ रूपये के रक्षा उपकरणों का निर्यात किया गया। 2016-17 में 1500 करोड़ रूपये और 2017-18 में 4682 करोड़ रूपये का निर्यात किया गया था। रक्षा उत्पादन में बढ़ोत्तरी के लिए मोदी सरकार ने अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) और तिरूचिरापल्ली (तमिलनाडु) में दो रक्षा गलियारों की स्थापना की है।
कोरोना संकट के समय प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर पैकेज के तहत रक्षा क्षेत्र के लिए कई सुधारात्मक उपायों की घोषणा की गई थी। इनमें स्वदेश निर्मित सैन्य उपकरणों की खरीद के लिए अलग बजटीय आवंटन, ऑटोमेटिक रूट के तहत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करना और वर्षवार उन हथियारों की सूचना बनाना जिनके आयात की अनुमति नहीं होगी जैसे दूरगामी महत्व वाले प्रावधान शामिल थे।
इसी के अनुसरण में रक्षा उत्पादन एवं निर्यात प्रोत्साहन नीति 2020 बनाई गई। इसके अनुसार अगले पांच साल में एयरोस्पेस और रक्षा वस्तुओं व सेवाओं के 35000 करोड़ रूपये के निर्यात का लक्ष्य तय किया गया है। नीति का उद्देश्य मजबूत और प्रतिस्पर्धी रक्षा उद्योग विकसित करना है जो सैन्य बलों की जरूरतों को पूरा कर सके। इस योजना के अमल में आने के बाद भारत इन रक्षा उत्पादों का शुद्ध आयातक बनने के बजाए शुद्ध निर्यातक बन जाएगा।
अब तक रक्षा उत्पादन में बढ़ोत्तरी के छिटपुट प्रयास ही किए जाते थे जिससे उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिलती थी। यह पहली बार हुआ है जब सरकार इस दिशा में चरणबद्ध तरीके से बढ़ रही है। सबसे बढ़कर मोदी सरकार ने आयातकों की मजबूत राजनीतिक लॉबी को निष्क्रिय कर दिया है। इसी का नतीजा है कि घरेलू उत्पादन और निर्यात में बढ़ोत्तरी आ रही है। अब आयात पर प्रतिबंध से भारत न सिर्फ अपनी जरूरत का सैन्य साजो-सामान बनाएगा बल्कि विदेशी मांग को भी पूरा करेगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)