नजीब के नाम पर वामपंथी संगठन और कांग्रेस के नेताओं के साथ तीन नवंबर को जब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अरविन्द केजरीवाल भाषण देते हुए नजर आए तो उनकी यही बात बरबस याद आ गई, ‘‘सब मिले हुए हैं जी।’’ नजीब के नाम पर अरविन्द केजरीवाल जरूर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय पहुंच गए, लेकिन ये नजीब, अरविन्द के पुराने मित्र दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग नहीं थे, बल्कि बीते 14 अक्टूबर से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के माही मांडवी छात्रावास के रुम न 106 से लापता उस छात्र का नाम नजीब है, जिसकी विश्वविद्यालय परिसर में किसी कॉमरेड छात्र के पास अथवा किसी कॉमरेड प्रोफेसर के पास होने की लगातार संभावना जताई जा रही है। नजीब को तलाश लेने की पुरस्कार राशि पचास हजार से बढ़ाकर दिल्ली पुलिस ने एक लाख रुपए कर दी है। जेएनयू के छात्रों का मानना है कि यदि विश्वविद्यालय के परिसर में सही प्रकार से जांच कराई जाए तो नजीब मिल जाएगा। नजीब के मामले को लगतार विश्वविद्यालय के वामपंथी छात्र संगठन अपने अपने वामपंथी प्रोफेसरों की मदद से मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहे है। इस पूरे मामले पर माही मांडवी छात्रावास के अध्यक्ष अलीमुद्दीन ने कुछ चौकाने वाले खुलासे किए। खुलासे से पहले आपको बताते हैं कि यह नजीब के लापता होने का पूरा मामला क्या है?
माही मांडवी छात्रावास के अध्यक्ष अलीमुद्दीन के अनुसार- ‘‘यह कहा जा रहा है कि नजीब को धमकाया गया था, बिल्कुल धमकाया गया था, लेकिन धमकी देने वाला खुद जेएनयूएसयू अध्यक्ष के छात्र संगठन आइसा से ताल्लूक रखता था।’’ अलीमुद्दीन आगे कहते हैं- ‘‘जेएनयू परिसर में जो लेफ्ट प्रोग्रेसिव ऑर्गनाइजेशन है, उसने पूरे मामले को एक रंग देने के लिए इसे एक छात्र संगठन पर थोप दिया। हॉस्टल का चुनाव जेएनयू में छात्र संगठन नहीं लड़ते। ये व्यक्तिगत स्तर पर लड़ा जाता है और चुनाव लड़ने वाला मित्रों के साथ मिलकर चुनाव का डोर टू डोर जाकर प्रचार करता है।’’
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रावास अध्यक्ष और मेस के लिए चुनाव 17 अक्टूबर को होने वाले थे। इसी सिलसिले में जेएनयू का छात्र विक्रांत डोर टू डोर कैम्पेन कर रहा था। जब वह माही मांडवी हॉस्टल के कमरा नंबर 106 में नजीब के कमरे पर दो मित्रों के साथ पहुंचा। नजीब ने उसे थप्पड़ मार दिया। विक्रांत ने जब उससे पूछा कि उसने थप्पड़ क्यों मारा ? नजीब ने उसके कलावा पहनने पर आपत्ति जताते हुए उसे मां की गाली दी और विक्रांत को एक थप्पड़ और मार दिया।
अलीमुद्दीन के अनुसार इस मामले पर नजीब के रूम मेट मोहम्मद कासिम जो आइसा से ताल्लूक रखते हैं। उन्होंने कहा- ‘‘लोग नजीब को पागल बताकर बचाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि वह पागल नहीं है। उसने बहुत बड़ी गलती की है, थप्पड़ मारकर। मुझे खुद डर है कि नजीब मुझे चाकू ना मार दे। इसलिए छात्रावास अध्यक्ष होने के नाते आप उस पर वार्डन से कहकर कड़ी कार्रवाई करवाइए।’’ अलीमुद्दीन के अनुसार उसने जब नजीब से पूछा कि उसने थप्पड़ क्यों मारा ? नजीब ने माफी मांगते हुए उस समय कहा था, मुझे माफ कर दीजिए। मुझसे गलती हो गई। मेरा मनोचिकित्सक के यहां ईलाज चल रहा है। अब आगे से ऐसा नहीं होगा।
नजीब ने सीनियर वार्डन के सामने भी अपनी गलती स्वीकार कर ली और उसे छात्रावास से निकाले जाने का फैसला ले लिया गया। लेकिन अगली सुबह आइसा के छात्र माही मांडवी छात्रावास के आस पास सक्रिय नजर आए। यह कहना था, पूर्व संयुक्त सचिव जेएनयू छात्र संघ सौरभ शर्मा का। उसके बाद दिन होते होते नजीब के गायब होने की सूचना आ गई।
अलीमुद्दीन के अनुसार- ‘‘यह कहा जा रहा है कि नजीब को धमकाया गया था, बिल्कुल धमकाया गया था, लेकिन धमकी देने वाला खुद जेएनयूएसयू अध्यक्ष के छात्र संगठन आइसा से ताल्लूक रखता था।’’ अलीमुद्दीन आगे कहते हैं- ‘‘जेएनयू परिसर में जो लेफ्ट प्रोग्रेसिव ऑर्गनाइजेशन है, उसने पूरे मामले को एक रंग देने के लिए इसे एक छात्र संगठन पर थोप दिया। हॉस्टल का चुनाव जेएनयू में छात्र संगठन नहीं लड़ते। ये व्यक्तिगत स्तर पर लड़ा जाता है और चुनाव लड़ने वाला मित्रों के साथ मिलकर चुनाव का डोर टू डोर जाकर प्रचार करता है।’’
अलीमुद्दीन को अपनी बेबाकी सजा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चुकानी पड़ रही है। एनएसयूआई के प्रदेश महासचिव अलीमुद्दीन को मारने की धमकी आइसा के गुंडो द्वारा मिली। एक बार उन पर हमला भी हुआ। उसके बाद उन्होंने जेएनयू प्रशासन को लिखित शिकायत की और अब अलीमुद्दीन को जेएनयू परिसर में आइसा के गुंडो से सुरक्षा दी गई है।
वैसे इस पूरे मामले में बार बार बयान बदलने वाला नजीब का रूम पार्टनर मोहम्मद कासिम जो आइसा का सदस्य है। उसकी भी पूरे मामले में गतिविधि संदिग्ध है। दिल्ली पुलिस को संभव है कि उससे पूछताछ करने से कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिल जाए। बहरहाल, अरविन्द केजरीवाल और शशि थरूर जैसे नेता जो नजीब कथित तौर पर लापता होने के मामले में भाषण देने जेएनयू जा रहे हैं और दूसरों की लिखी स्क्रीप्ट पढ़कर लौट रहे हैं, उन्हें अपने स्तर पर इस कहानी का सच पता लगाना चाहिए।
(लेखक पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)