अब गांधी परिवार की एसपीजी हटाने को राजनीतिक बदला कहने वालों को एक तथ्य समझना चाहिए कि केंद्र सरकार ने विस्तृत आकलन करने के बाद ही यह फैसला लिया है। एसपीजी होते हुए भी गांधी परिवार ने कई बार जोखिम उठा लिए। ऐसे अनेक अवसर आए जब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने एसपीजी की सलाह नहीं मानी। एसपीजी को बताए बिना कहीं भी चले जाना जैसे लापरवाही भरे काम किए। बावजूद इसके एसपीजी हटने पर इन्हें इतनी तकलीफ क्यों हो रही, यह बड़ा सवाल है।
देश में सामाजिक और आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक सुधार का भी दौर चल रहा है। एक बार फिर इसकी मिसाल पेश करते हुए मोदी सरकार ने राज्यसभा और लोकसभा में एसपीजी बिल पास कर दिया। संभवतः आप सोच रहे होंगे कि आखिर एसपीजी बिल और राजनीतिक सुधारों का क्या मेल! दरअसल पिछले करीब तीन दशक में देश में गांधी परिवार (सोनिया, राहुल और प्रियंका) ने एसपीजी सुरक्षा को एक स्टेटस सिंबल बना लिया था। एसपीजी सुरक्षा से लैस व्यक्ति या तो प्रधानमंत्री होता है फिर ‘प्रधानमंत्री जैसा ही कोई अति विशिष्ट व्यक्ति होता है।
एसपीजी यानी स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप देश की सबसे पेशेवर और आधुनिकतम सुरक्षा बलों में से एक है। एसपीजी देश के प्रधानमंत्री के साथ भारत दौरे पर आए अति विशिष्ट अतिथियों की सुरक्षा का जिम्मा संभालती है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद एसपीजी को 02 जून, 1988 में भारत की संसद के एक अधिनियम द्वारा बनाया गया था।
ऐसा भी माना जाता है कि एसपीजी के जवान अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा में लगे यूएस सीक्रेट सर्विस के जवानों की तरह होते हैं। एसपीजी के जवान फुली ऑटोमेटिक गन FNF-2000 असॉल्ट राइफल से लैस होते हैं। कमांडोज के पास ग्लोक 17 नाम की एक पिस्टल भी होती है। कुल मिलाकर एसपीजी सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति मानो प्रधानमंत्री के समकक्ष दिखने लगता है।
अब गांधी परिवार की एसपीजी हटाने को राजनीतिक बदला कहने वालों को एक तथ्य समझना चाहिए कि केंद्र सरकार ने विस्तृत आकलन करने के बाद ही यह फैसला लिया है। एसपीजी होते हुए भी गांधी परिवार ने अनेक बार उसकी अनदेखी की। ऐसे अनेक अवसर आए जब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने एसपीजी की सलाह नहीं मानी। एसपीजी को बताए बिना कहीं भी चले जाना जैसे लापरवाही भरे काम किए।
आंकड़ों के अनुसार राहुल गांधी ने 2005-2014 के दौरान कई बार ऐसे वाहनों में सफर किया है, जो बुलेट प्रूफ नहीं थी और एसपीजी की सलाह को दरकिनार भी किया। अकेले दिल्ली में राहुल गांधी ने 2015 से मई 2019 तक 247 बार बिना बुलेट प्रूफ गाड़ी में सफर किया। इसी तरह सोनिया गांधी ने 50 बार और प्रियंका गांधी ने 403 बार एसपीजी द्वारा तैयार वाहन का इस्तेमाल नहीं किया।
1991 के बाद अब तक की कुल 156 विदेशी यात्राओं में से उन्होंने 143 यात्राओं पर एसपीजी अधिकारियों को साथ नहीं लिया। इन 143 विदेशी यात्राओं में से अधिकांश यात्राओं का कार्यक्रम उन्होंने अंतिम समय पर एसपीजी के साथ साझा किया। एसपीजी को इस तरह नजरअंदाज किए जाने को देखते हुए कह सकते हैं कि शायद गांधी परिवार को अब इसकी आवश्यकता नहीं रह गयी थी, लेकिन स्टेटस सिम्बल के लिए वे इस सुरक्षा के तामझाम को अपने साथ रखे हुए थे। अगर उन्हें डर होता तो उन्हें एसपीजी या अन्य सुरक्षा व्यवस्था के साथ तालमेल बैठाकर चलते।
सबसे बड़ी बात यह समझनी होगी कि गांधी परिवार की एसपीजी हटाई गई है उनकी सुरक्षा नहीं। अब गांधी परिवार के लिए जेड प्लस सुरक्षा व्यवस्था दी गयी है। जेड प्लस तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था होती है, जिसमें कुल 36 सुरक्षाकर्मी लगे होते हैं। इनमें 10 एनएसजी के कमांडोज होते हैं।
पहले तो गांधी परिवार ने एसपीजी के जवानों की सलाह को नजर अंदाज कर कहीं भी चले जाते थे लेकिन अब ऐसा संभव नहीं है। सीआरपीएफ के सुरक्षा कवच के साथ एसपीजी वाली मनमर्जी नहीं चलेगी। अब गांधी परिवार की सुरक्षा से जुड़ी समीक्षा रिपोर्ट हर 15 दिन में तैयार होगी। इसे गृह मंत्रालय को भेजा जाएगा।
अब गांधी परिवार के लिए समय-समय पर अपनी वफादारी दिखाने वाले कांग्रेसी नेताओं को यह भी सोचना चाहिए कि इसी देश में उनकी ही पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मौत का रहस्य आज भी अबूझ पहेली बना हुआ है। क्या उनके परिवार की सुरक्षा के लिए कभी किसी कांग्रेसी नेता ने आवाज उठाई? ऐसे में यह सिर्फ एक परिवार की चरण वंदना नहीं तो और क्या है?
आखिरी बात यही है कि जिस प्रकार तीन तलाक के रूप में सामाजिक सुधार, जीएसटी के रूप में आर्थिक सुधार हुआ, उसी तरह एसपीजी संशोधन बिल राजनीतिक सुधार की दिशा में बढ़ाया गया कदम है। यह कदम सुरक्षा को स्टेटस सिम्बल बनाकर घूमने की कुसंस्कृति का अंत करेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)