नेतृत्व की दुविधा, पुरातनपंथी सोच, परिवारवाद का वर्चस्व, शीर्ष नेताओं के भ्रष्टाचार में लिप्त रहने जैसे कारणों से कांग्रेस के युवा नेताओं का मोहभंग होता जा रहा है। यदि कांग्रेस पार्टी अभी भी बदलाव को स्वीकार नहीं करेगी तो उसका पतन होना तय है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस पार्टी छोड़ भाजपा में आने से साबित हो गया कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी परिवारवाद से बाहर निकलने को तैयार नहीं है। वैसे तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा के कई कारण हैं लेकिन सबसे अहम कारण है, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के लिए रास्ता साफ़ रखना।
दरअसल कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के कान में यह बात भर दी गई कि यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा जनाधार वाला नेता आगे बढ़ता है तो यह राहुल गांधी के लिए खतरे की घंटी साबित होगा। इसीलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया गया।
शीर्ष नेतृत्व के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और मुख्यमंत्री कमल नाथ ने भी उन्हें हाशिये पर धकेल रखा था। कमलनाथ उन्हें उप मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहते थे क्योंकि ऐसा करने से ज्योतिरादित्य सिंधिया उनके बेटे और छिंदवाड़ा से लोक सभा सदस्य नकुल नाथ की राह में अवरोध खड़े कर सकते थे। कांग्रेस पार्टी के लिए यह कोई नई बात नहीं है। जब-जब किसी ने भी कांग्रेस के परिवारवाद के विरूद्ध खड़ा होने की कोशिश की या उसे चुनौती देने का प्रयास किया उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
लोक सभा चुनाव में कांग्रेस को मिली भारी पराजय के बाद अध्यक्ष पद से राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद यह उम्मीद जगी थी कि गांधी-नेहरू परिवार से बाहर का कोई युवा नेता कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा लेकिन पार्टी घूम फिरकर फिर परिवारवाद पर आकर टिक गई। कोई आरोप न लगे इसलिए सोनिया गांधी को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। प्रियंका गांधी को आगे बढ़ाने में भी पार्टी लगी ही है। इन सब चीजों को देखते हुए युवा नेताओं को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा। कई नेताओं ने तो कांग्रेस छोड़ने में ही भलाई समझी।
पिछले साल अगस्त में झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार ने कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी की सदस्यता ले ली। इसके बाद त्रिपुरा कांग्रेस के अध्यक्ष प्रद्योत देव बर्मन ने पार्टी छोड़ दी। हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने पार्टी छोड़ दी। अब तो कई युवा नेता पार्टी की नीतियों और परिवारवाद से नाराज होकर पार्टी छोड़ने के लिए तैयार बैठे हैं।
कांग्रेस के युवा नेता प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्रवादी फैसलों का समर्थन करते रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया, दीपेंद्र हुड्डा, प्रद्योत देब बर्मन, जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा जैसे कई नेताओं ने अनुच्छे 370 समाप्त करने, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और नागरिकता संशोधन अधिनियम का समर्थन किया जिससे बुजुर्ग कांग्रेसी नाराज हो गए। उन्होंने इस बदलाव को पार्टी की नीतियों के विरूद्ध बताया।
लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने और युवा नेताओं के बढ़ते असंतोष को देखते हुए कई वरिष्ठ नेता हाईकमान तक यह संदेश पहुंचाने लगे हैं कि पार्टी शीर्ष पर जारी असमंजस जल्दी खत्म नहीं हुआ तो पार्टी में विद्रोह जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी। गौरतलब है कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी लंबे समय तक जिम्मेदारी निभाने की इच्छुक नहीं हैं। वे पार्टी का नेतृत्व राहुल गांधी को सौंपना चाहती हैं, लेकिन राहुल गांधी इसके लिए तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि पूरी पार्टी में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
नेतृत्व की दुविधा, पुरातनपंथी सोच, परिवारवाद का वर्चस्व, शीर्ष नेताओं के भ्रष्टाचार में लिप्त रहने जैसे कारणों से कांग्रेस के युवा नेताओं का मोहभंग होता जा रहा है। यदि कांग्रेस पार्टी अभी भी बदलाव को स्वीकार नहीं करेगी तो उसका पतन होना तय है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)