केंद्र सरकार ने हाल ही में चने और मसूर के आयात शुल्क में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है; वहीं तोरिया, जो मुख्य रूप से राजस्थान में पैदा होने वाली तिलहन फसल है, के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि की है। सरकार जल्द ही गेहूं के आयात शुल्क, जो मौजूदा समय में 20 प्रतिशत है, में भी बढ़ोतरी कर सकती है। किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम दिलाने के लिए ये कदम जरूरी भी हैं।
कृषि क्षेत्र में अपेक्षित वृद्धि हेतु सरकार इस क्षेत्र की मौजूदा कमियों को दूर करना चाहती है। इस कवायद के तहत केंद्र सरकार ने हाल ही में चने और मसूर के आयात शुल्क में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है; वहीं तोरिया, जो मुख्य रूप से राजस्थान में पैदा होने वाली तिलहन फसल है, के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि की है। सरकार जल्द ही गेहूं के आयात शुल्क, जो मौजूदा समय में 20 प्रतिशत है, में भी बढ़ोतरी कर सकती है। किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम दिलाने के लिए ये कदम जरूरी भी है। मजेदार बात यह है कि कारोबारियों द्वारा करीब 10 लाख टन गेहूं के आयात के बाद पिछले महीने गेहूं पर आयात शुल्क को 10 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया गया था।
एक अनुमान के मुताबिक, आगामी रबी सीजन में चने और मसूर की पैदावार ज्यादा होने की संभावना है। ऐसे में सस्ते आयात से किसानों को नुकसान होने का अंदेशा था। अस्तु, सरकार ने किसानों के हित को सुनिश्चित करने के लिये इन कदमों को उठाया है। गौरतलब है कि चना, मसूर और गेहूं देश के उत्तरी इलाकों की प्रमुख रबी फसल है। इन तीनों फसलों की पैदावार मध्य प्रदेश और राजस्थान में व्यापक पैमाने पर होती है। वर्तमान में चना 4,000 से 4,200 और मसूर 3,500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिक रही है, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम है।
अगर सरकार वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में ग्रामीण और कृषि क्षेत्र को और ज्यादा छूट देती है, तो उसे राजकोषीय प्रबंधन करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। फिर भी, माना जा रहा है कि सरकार कृषि क्षेत्र में पूँजीगत व्यय को बढ़ायेगी। राजकोषीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) ऐक्ट में समिति द्वारा दिये गये सुझाव के मुताबिक अगले साल के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद का 3 प्रतिशत होना चाहिए। वित्त वर्ष 2017-18 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 3.2 प्रतिशत रखा गया था।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमत के प्रभाव को कम करने के लिये विविध मदों में होने वाले व्यय को भी कम करना होगा। फिलहाल, कच्चे तेल की कीमत 65 डॉलर प्रति बैरल है। सरकार चाहती है कि घाटे के लक्ष्य के संदर्भ में किसी भी तरह का विचलन नहीं हो। वित्त मंत्री अरुण जेटली भी चाहते हैं कि इस मोर्चे पर अनुशासन का कड़ाई से पालन किया जाये। कहा जा रहा है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की वजह से इस साल सुधार की रफ्तार थोड़ी धीमी रहेगी, लेकिन जल्द ही इसमें तेजी आयेगी और वित्त वर्ष 2018-19 तक यह गतिमान हो जायेगा। सरकार का यह कहना कि राजकोषीय मोर्चे पर अनुशासन बना रहे, किसी भी नजरिये से गलत नहीं है। सरकार का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2018-19 का बजट राजकोषीय प्रतिबद्धताओं के अनुकूल होगा।
फिर भी, वर्ष 2019 के आम चुनाव के पहले पेश किये जाने वाले आखिरी पूर्ण बजट में सरकार आम जनता की बेहतरी के लिये आवश्यक राशि का आवंटन कर सकती है। अपितु, ऐसा करने के साथ-साथ सरकार बजट को संतुलित रखने के लिये भी कोशिश करेगी। देखा जाये तो देश के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिये सामाजिक और ग्रामीण क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने की प्रतिबद्धताओं से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। इस क्षेत्र के विकास के लिये सरकार को पूंजीगत व्यय और बढ़ाना होगा।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)