प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामिनाथन के बाद अब नाबार्ड ने भी माना कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कृषि क्षेत्र की खुशहाली बढ़ी है। इसका कारण है कि मोदी सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, कृषि वानिकी, बांस उत्पादन, एथनाल और बायोफ्यूल जैसी आयपरक गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है।
भ्रष्टाचार, तुष्टीकरण, धनबल-बाहुबल और जाति-धर्म की राजनीति कर सत्ता हासिल करने वाली सरकारों ने कृषि क्षेत्र के दूरगामी विकास की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। यही कारण है कि खेती-किसानी की बदहाली बढ़ती गई। 1991 में शुरू हुई उदारीकरण की नीतियों में खेती-किसानी की घोर उपेक्षा हुई।
इस दौरान यह मान लिया गया कि सेवा क्षेत्र में हो रही समृद्धि जब रिसकर नीचे पहुंचेगी तब खेती-किसानी की बदहाली अपने आप दूर हो जाएगी। दुर्भाग्यवश गठबंधन सरकार की मजबूरियों, भ्रष्टाचार की व्यापकता और जाति-धर्म की राजनीति के चलते रिसन का सिद्धांत, वाष्पन में बदल गया और भारतीयों के बैंक खाते विदेशी बैंकों में खुलने लगे।
खेती-किसानी की बदहाली की दूसरी बड़ी वजह यह रही कि उदारीकरण का रथ हाईवे से उतरकर गांव की पगडंडी पर चला ही नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि बिजली, पानी, सड़क, सिंचाई,उर्वरक, भंडारण-विपणन जैसी सुविधाएं जस की तस बनी रहीं। समय के साथ कदमताल न कर पाने के कारण खेती घाटे का सौदा बन गई और महानगरों की ओर पलायन में तेजी आई। वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टियां व सरकारें इससे चिंतित हुईं क्योंकि उन्हें सत्ता जाने का डर सताने लगा। इसकी तोड़ में उन्होंने मनरेगा, कर्जमाफी जैसी दान-दक्षिणा वाली और वोट बटोरू योजनाएं शुरू की।
किसानों की बढ़ती बदहाली और आत्महत्या को मुद्दा बनाकर 2004 में सत्ता में आई कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने नवंबर, 2004 में प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामिनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट अक्टूबर, 2006 में सौंप दिया लेकिन सुविधा टैक्स वसूलने में जुटी संप्रग सरकार ने रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसका नतीजा यह हुआ कि किसानों की बदहाली और बढ़ी।
जब सरकार को लगने लगा कि 2009 के आम चुनावों में किसानों के असंतोष की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी तब उसने किसानों को कर्जमाफी का लालीपाप दिया जिसके बल पर वह दुबारा सत्ता हासिल करने में कामयाब रही। इसके बावजूद स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशें धूल फांकती रहीं।
किसानों को लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने के वादे के साथ सत्ता में आने वाले नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशों पर अमल करना शुरू कर दिया। चूंकि आयोग की सिफारिशें दूरगामी महत्व की थीं, इसलिए इनके नतीजे आने में समय लगा। मोदी सरकार ने खेती से संबंधित आधारभूत ढाँचे को सुदृढ़ बनाने की पहल की।
सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने, ग्रामीण सड़कों को प्राथमिकता, सिंचाई, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, बीज विकास, नीम कोटेड यूरिया, भंडारण सुविधा का विस्तार, राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक ई-मार्केट (ई-नाम) स्कीम जैसे उपायों से खेती की लागत में कमी आई और किसानों की खुशहाली बढ़ी। इस खुशहाली को ट्रैक्टरों की बिक्री के आंकड़ों से परखा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में 2015-16 में 4.93 लाख ट्रैक्टरों की बिक्री हुई थी जो कि 2016-17 में 5.81 लाख और 2017-18 में बढ़कर 7.11 लाख हो गई।
इसी को देखकर अब जाकर एमएस स्वामिनाथन ने माना कि पिछले चार वर्षों में इस दिशा में काफी काम हुआ है। सबसे बढ़कर जो नीतियां बनी वे जमीन पर उतरी। उत्पादन लागत में कमी लाने व उपज की लाभकरी कीमत दिलाने के मामले में काफी प्रगति हुई है। स्वामिनाथन आयोग ने किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि से इतर गतिविधियों को बढ़ावा देने की बात कही है। मोदी सरकार पशुपालन, मछली पालन, जल जीवों के विकास, मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, कृषि वाणिकी और बांस उत्पादन जैसी आयपरक गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है।
अब मोदी सरकार ने बायोफ्यूल इस्तेमाल से किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में काम शुरू किया है। बायोफ्यूल से न सिर्फ कृषि अपशिष्टों का निपटान होगा बल्कि रोजगार व आमदनी के मौके भी निकलेंगे और पर्यावरण का संरक्षण भी होगा। सरकार बायोमास को बायोफ्यूल में बदलने के लिए देश भर में 12 रिफाइनरी स्थापित कर रही है। इसी तरह मोदी सरकार ने गन्ने से इथेनाल बनाने का रोडमैप तैयार किया है।
इथेनाल से न केवल किसानों की आमदनी बढ़ रही है बल्कि पेट्रोलियम पदार्थों के आयात में कमी से देश की दुर्लभ विदेशी मुद्रा भी बच रही है। इथेनाल के पेट्रोल के साथ मिश्रण से साल 2017 में 4000 करोड़ रूपये के बराबर की विदेशी मुद्रा बचाई गई। सरकार ने 2022 तक इथेनाल के मिश्रण से 12000 करोड़ रूपये की विदेशी मुद्रा बचाने का लक्ष्य रखा है। समग्रत: दशकों से उपेक्षा का शिकार रही खेती-किसानी अब बदलते वक्त के साथ कदमताल करने लगी है। यही उपलब्धि मोदी विरोधियों को पच नहीं रही है, क्योंकि इससे उनकी दान-दक्षिणा वाली राजनीति खत्म हो जाएगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)