पीओके पर फारुक अब्दुल्ला का बेसुरा राग

कश्मीर को को लेकर बंटवारे के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की खटास किसी से छिपी नहीं है। गाहे-बगाहे यह मुद्दा अन्तरराष्ट्रीय पटल पर भी उठाया जाता रहा है। तमाम विवादों और समझौतों के बीच खुद को भारतीय माननें वाले अथवा भारतीय होने का गर्व करने वाले किसी भी आम जन या ख़ास के मन में इस बात को लेकर शायद ही कोई संदेह हो कि लाइन ऑफ़ कंट्रोल के पार कश्मीर का जो हिस्सा है, वो पाकिस्तान ने गलत ढंग से कब्जा कर रखा है। पाक अधिकृत कश्मीर का वह हिस्सा भारत को मिलना चाहिए। लेकिन इसी देश में कुछ ऐसे राजनीतिक दल अथवा नेता हैं जो पाक अधिकृत कश्मीर को भारत का हिस्सा ही नहीं मानते। वैसे, भारत में ही रहने वाले अलगाववादी नेता तो भारत के हिस्से वाले कश्मीर को भी भारत का हिस्सा मानने से इनकार करते हैं। खैर, एकबार फिर पाक अधिकृत कश्मीर का मुद्दा सुर्ख़ियों में इसलिए है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारुक अब्दुल्ला ने एक शर्मनाक बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि कश्मीर भारत की बपौती नहीं है। उन्होंने भारत की तरफ संबोधित करते हुए अपनी बात को कुछ इस अंदाज में कहा कि क्या यह तुम्हारे बाप का है ? फारुक अब्दुल्ला के इस बयान को बिना किसी संदेह के एक निहायत गैर-जरुरी और शर्मनाक बयान कहा जा सकता है। फारुक के इस बयान पर राजनीतिक हलकों में भाजपा से करारी प्रतिक्रिया आनी स्वाभाविक थी। चूँकि, कांग्रेस सहित खुद को तथाकथित सेक्युलर बताने वाले कुछ और दल पाकिस्तान और कश्मीर के मसले पर स्पष्ट रुख रखने से सदा बचते रहे हैं, लिहाजा उनसे प्रतिक्रिया की उम्मीद बेमानी है। खैर, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री और भाजपा नेता जितेन्द्र सिंह ने जवाब देते हुए कहा कि यह अवसरवादिता की राजनीति है। उन्होंने कहा कि कश्मीर केन्द्रित कुछ राजनेता जब सत्ता में होते हैं तो उन्हें कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नजर आता है जबकि जब वे सत्ता से बेदखल होते हैं तो उन्हें ऐसा ज्ञान रातों-रात प्राप्त हो जाता है।

इसमें कोई शक नहीं कि कश्मीर को लेकर जिस विचारधारा के साथ लड़ाई की शुरुआत जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने शुरू की थी, वह संघर्ष उसी विचारधारा के साथ आज पाकिस्तान पर बढ़त बनाए हुए है। ऐसे में, फारुक अब्दुल्ला को अपने पीओके पर दिए इस ताज़ा बयान के लिए खेद प्रकट करना चाहिए और उन्हें ऐसे बयानों से आगे भी बचना चाहिए। पाक अधिकृत कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और उसके भारत में विलय के समाधान में देश की समस्त राजनीतिक ऊर्जा का इस्तेमाल हो, इस दिशा में ठोस और कारगर प्रयास किए जाने चाहिए।

फारुक अब्दुल्ला फिलहाल न तो केंद्र की सत्ता के भागीदार हैं और न ही जम्मू-कश्मीर की सत्ता में ही उनकी कोई हिस्सेदारी है। लिहाजा वे कश्मीर पर विवादित राग अलाप कर खुद को राजनीति में प्रासंगिक रखने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनके इस बयान के बाद अथवा पहले, कश्मीर को लेकर इस देश की आम जनता के मानस पटल पर कोई संदेह अथवा भ्रम की स्थिति नहीं है। कश्मीर को लेकर हाल के दिनों में केंद्र सरकार द्वारा जिस ढंग से पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चाबंदी हुई है, इसने कुछ पाक अधिकृत कश्मीर पर पाक परस्ती की राजनीति करने वाली ताकतों को बुरी तरह परेशान कर दिया है। विचारधारा के स्तर पर देखें तो कश्मीर के प्रश्न पर इतिहास और वर्तमान दोनों का मूल्यांकन बेहद जरूरी हो जाता है। पचास और साठ के दशक में कश्मीर को लेकर जनसंघ का जो विचार था, आज भारतीय जनता पार्टी का भी लगभग वही विचार है। कश्मीर मसले पर पॉलिटिकल डायरी में 12 सितंबर 1960 जनसंघ के नेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने लिखा है, ‘जहाँ तक भारत का संबंध है, कश्मीर के बारे में उसे पाकिस्तान के साथ केवल इसी प्रश्न पर विचार करना है कि भारतीय भूखंड के उस भाग से वह कब और किस प्रकार हटने वाला है। उसके (पाकिस्तान) भारत के साथ रहने का प्रश्न काफी पहले और अंतिम रूप से हल हो चुका है। हम उसे फिर नहीं उघाड़ सकते हैं। यदि पाकिस्तान विलय-पत्र पर महाराजा के हस्ताक्षर के अधिकार पर या जम्मू और कश्मीर राज्य की संविधान सभा द्वारा उसकी पुष्टि के अधिकार पर आपत्ति करना चाहता है तो उसी प्रकार हम पाकिस्तान के एक अलग इकाई के रूप में रहने के अधिकार पर एतराज कर सकते हैं।” उन्होंने यह भी लिखा है कि यदि पाकिस्तान घड़ी की सुई को पीछे घुमाना ही चाहता है तो हम 3 जून 1947 की स्थिति पर वापस लौटें न कि 26 अक्तूबर 1947 की स्थिति पर।

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कश्मीर के प्रश्न पर पंडित दीन दयाल उपाध्याय के इन विचारों को अगर वर्तमान की भाजपा के विचारों पर परखने की कोशिश करें तो कोई ख़ास अंतर नहीं नजर आएगा। फारुक अब्दुल्ला ने जब यह बयान दिया है इसके ठीक दो-तीन महीने पहले अगस्त में हुई एक सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कश्मीर और पाकिस्तान को लेकर कड़ा बयान दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीर पर स्पष्ट रुख दिखाते हुए कहा था कि पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का अभिन्न हिस्सा है। प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान के बाद विश्व पटल पर पाकिस्तान की स्थिति अलग-थलग पड़ गयी है। साठ के दशक वाले जनसंघ के उस दौर और वर्तमान दौर में फर्क बस इतना है कि तब जनसंघ दूर-दूर तक केंद्र सत्ता में नहीं था और आज केंद्र में भाजपा पूर्ण बहुमत की सरकार चला रही है। दो कालखंडों के बीच फर्क की यह खाई इसीलिए पाटी जा सकी है क्योंकि तब और अब की विचारधारा में कोई फर्क नहीं आया है। आज अगर फारुक अब्दुल्ला पाक अधिकृत कश्मीर को लेकर कोई भ्रमपूर्ण बयान दे रहे हैं तो यह निहायत गैर-जरुरी और अलग-थलग पड़े पाकिस्तान को शह देने वाला बयान है। इस बयान से उन्होंने भारत की आम जनता के प्रति अपनी साख को खराब करने के सिवा कुछ भी हासिल नहीं किया है। पाकिस्तान को लेकर भारत सरकार की नीति अब बेहद स्पष्ट है। मामला निर्णायक स्थिति में है। गोली का जवाब गोला से दिया जा रहा है। एक बदले तीन की नीति पर हमारी सेना काम कर रही है। बलूचिस्तान के मसले पर पाकिस्तान खुद ही गृहयुद्ध लड़ रहा है। दुनिया पाकिस्तान के समर्थन से कतरा रही है। उसके अपने दोस्त भी भारत का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में किसी भी भारतीय नेता द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर को लेकर ऐसा बयान देना जो पाकिस्तान के समर्थन और भारत सरकार की पाक अधिकृत कश्मीर की नीतियों के खिलाफ जाता है, उचित नहीं कहा जाएगा।

आज जरूरत है कि पाकिस्तान और कश्मीर के मसले पर आपसी भेदभाव भुलाकर एकजुट होकर पाक अधिकृत कश्मीर पर अपने दावे को मजबूत करें। इसमें कोई शक नहीं कि कश्मीर को लेकर जिस विचारधारा के साथ लड़ाई की शुरुआत जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने शुरू की थी, वह संघर्ष उसी विचारधारा के साथ आज पाकिस्तान पर बढ़त बनाए हुए है। फारुक अब्दुल्ला को अपने बयान के लिए खेद प्रकट करना चाहिए और उन्हें ऐसे बयानों से आगे भी बचना चाहिए। पाक अधिकृत कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और उसके भारत में विलय के समाधान में देश की समस्त राजनीतिक ऊर्जा का इस्तेमाल हो इस दिशा में ठोस और कारगर प्रयास किए जाने चाहिए।

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउन्डेशन में रिसर्च फेलो एवं नेशनलिस्ट ऑनलाइन डॉट कॉम के संपादक हैं।)