जीडीपी वृद्धि वित्त वर्ष 2023 में 7.00 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान है और उम्मीद है कि भारत आसानी से इस लक्ष्य को हासिल कर लेगा। अभी दुनिया के देशों में अनिश्चितता का माहौल है। महंगाई और विकास की सुस्त वृद्धि दर से विकसित देशों समेत दुनिया भर के अधिकांश देश मंदी की ओर बढ़ रहे हैं, जबकि भारत मजबूती से विकास की दिशा में अग्रसर है।
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2023 की सितंबर तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रही और अनुमान है कि आगामी तिमाहियों में इसमें और सुधार आयेगा और चालू वित्त वर्ष में यह 7.00 प्रतिशत के आसपास रहेगी। केंद्रीय बैंक की तरह रॉयटर्स और ब्लूमबर्ग ने भी सितंबर तिमाही में जीडीपी वृद्धि के 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था।
सितंबर तिमाही में सेवा क्षेत्र के तहत व्यापार, होटल व परिवहन, वित्तीय व रियल एस्टेट एवं लोक प्रशासन व अन्य सेवाओं में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जिससे जीडीपी, अनुमानित वृद्धि दर को बरक़रार रखने में सफल रहा।
सेवा क्षेत्र यानी व्यापार, होटल, परिवहन आदि सेवाओं में पहली बार वृद्धि की रफ्तार वित्त वर्ष 2020 की सितंबर तिमाही की तुलना में 2.1 प्रतिशत अधिक रही और कोरोना महामारी के पहले के मुकाबले जीडीपी में कुल 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में बुनियादी कीमत पर सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में 5.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। पिछले साल की तुलना में शुद्ध आयात भी लगभग दोगुना हो गया और सालाना आधार पर इसमें 89 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
निजी खर्च में वृद्धि 9.7 प्रतिशत दर्ज की गई, क्योंकि उपभोक्ताओं ने महंगाई के दबाव के बावजूद अधिक कीमत वाले सामानों पर ज्यादा खर्च किया, जबकि सरकारी खर्च में 4.4 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई, जो इस बात का संकेत है कि आमजन खर्च करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं और केंद्र व राज्य सरकारें सितंबर तिमाही के दौरान अपने खर्च पर नियंत्रण रखने में सफल रही हैं।
भारत का पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) अक्टूबर महीने के 55.3 से थोड़ा बढ़कर नवंबर महीने में 55.7 हो गया। यह नए ऑर्डर, उत्पादन में वृद्धि और महंगाई में आई आंशिक कमी की वजह से 3 महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गया। पीएमआई में वृद्धि इस बात का संकेत है कि विनिर्माण की गतिविधियों में तेजी आ रही है।
वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसऐंडपी के अनुसार भी विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार सृजन और मांग में सुधार दृष्टिगत हो रहा है। अक्तूबर महीने में महंगाई में आंशिक कमी आने से कंपनियों के इनपुट लागत में भी कमी दृष्टिगोचर हो रही है। इन दो महीनों में नई मांग और निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। अक्तूबर और नवंबर महीने में पीएमआई में उछाल आने से यह अनुमान लगाया जा रहा कि चालू वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर में बेहतरी आयेगी।
खनन क्षेत्र में उत्पादन दर में 2.8 प्रतिशत की गिरावट आने और महंगाई के मोर्चे पर उल्लेखनीय सफलता नहीं मिलने और ऋण ब्याज दरों में वृद्धि होने की वजह से कुछ अर्थशास्त्री कयास लगा रहे हैं कि भारत की वृद्धि दर आगामी तिमाहियों में और भी कम हो सकती है। यह भी कहा जा रहा है कि जुलाई से सितंबर महीने के दौरान अगर लोगों ने खर्च किया है या फिर घरेलू बाजार में मांग बढ़ी है या फिर निवेश में तेजी आई है तो वह त्यौहारी मौसम की वजह से संभव हुआ है।
यह सही है कि महंगाई की वजह से केंद्रीय बैंक को नीतिगत दरों में इजाफा करना पड़ा है और परिणामस्वरूप जमा की लागत अधिक होने की वजह से बैंकों को भी ऋण ब्याज दर में इजाफा करना पड़ा है, जिससे कंपनियों की इनपुट लागत में आंशिक बढ़ोतरी हुई है और मांग में उसी अनुपात में कमी आई है, लेकिन मौजूदा विकास दर का अनुमान सभी पहलूओं को ध्यान में रखकर जताया गया था और उसी के अनुकूल सितंबर तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत दर्ज की गई। दूसरी तरफ, त्यौहार भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति का परिचायक है और इस पहलू को विकास के साथ हमेशा से जोड़ा जाता रहा है। साथ ही, अगर लोगों के पास पैसा रहेगा तभी वे खर्च करेंगे। इसलिए यह कहना कि त्यौहार की वजह से लोगों ने अगस्त, सितंबर और अक्तूबर महीने में खर्च किया या फिर इस अवधि के दौरान मांग में वृद्धि हुई या फिर निवेश में इजाफा हुआ गलत होगा।
सितंबर और अक्टूबर 2022 के आंकड़ों के अनुसार वेतन वाली नौकरियां कोरोना महामारी के पहले के स्तर पर पहुंच गई हैं और कयास लगाये जा रहे हैं कि नवंबर और दिसंबर महीने में इसमें और भी सुधार होगा। शहरी क्षेत्र में सितंबर महीने में 21.4 लाख और अक्टूबर महीने में 22.6 लाख रोजगार सृजित हुए। हालाँकि, इन महीनों के दौरान ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार में गिरावट दर्ज की गई, लेकिन चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में कृषि एवं संबंधित गतिविधियों में स्थिर मूल्य पर 4.6 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछली तिमाही से अधिक है।
इससे ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के क्षेत्र में बेहतरी आने की संभावना बढी है। कृषि क्षेत्र में ताजा वृद्धि मुख्य रूप से कृषि संबंधी गतिविधियों में तेजी आने की वजह से संभव हुई है, क्योंकि इन महीनों में फसल की कटाई की गतिविधियां कम हुई हैं। यह सकारात्मक संकेत है। दिसंबर तिमाही में आंशिक फसल कटाई से कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र में और भी तेजी आ सकती है।
भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई को काबू में लाने के लिये पहले ही नीतिगत दर 1.9 प्रतिशत बढ़ा चुका है। प्रमुख नीतिगत दर रेपो तीन साल के उच्च स्तर 5.9 प्रतिशत पर पहुंच गई है, लेकिन इसका यह फायदा हुआ कि देश की थोक और खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर महीने में आंशिक रूप से कम हुई है।
पिछले महीने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर 3 महीने के निचले स्तर 6.7 प्रतिशत रही, जबकि थोक मुद्रास्फीति 19 महीने के निम्न स्तर 8.39 प्रतिशत पर आ गई।
भले ही रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण आपूर्ति संबंधी बाधाओं की वजह से भारत में मुद्रास्फीति की चुनौती रही है, लेकिन आगामी वित्त वर्ष की पहली तिमाही तक महंगाई के मोर्चे पर भारत को राहत मिलने की संभावना है। इसके अलावा, चालू वित्त की दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रही, लेकिन यह वृद्धि दर पहले से अनुमानित था।
जीडीपी वृद्धि वित्त वर्ष 2023 में 7.00 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान है और उम्मीद है कि भारत आसानी से इस लक्ष्य को हासिल कर लेगा। अभी दुनिया के देशों में अनिश्चितता का माहौल है। महंगाई और विकास की सुस्त वृद्धि दर से विकसित देशों समेत दुनिया भर के अधिकांश देश मंदी की ओर बढ़ रहे हैं, जबकि भारत मजबूती से विकास की दिशा में अग्रसर है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)