नए वित्त वर्ष में सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में अनेक बदलाव किये हैं, जिनका सीधा प्रभाव नौकरीपेशा, आमजन और बुजुर्गों पर पड़ा है। हालांकि, ये बदलाव लोगों के वित्तीय जीवन में बेहतरी लाने के लिये किये गए हैं। भविष्य निधि और आयकर के तहत किये जाने वाले बदलावों से सरकार की आय में इजाफा होगा, जिससे सरकार विकास केंद्रित कार्यों को अमलीजामा पहना सकेगी।
एक अप्रैल 2021 से नया वित्त वर्ष शुरू हो गया है। इस नये वित्त वर्ष में कई ऐसे बदलाव किए गए हैं या किए जाने वाले हैं, जिनका प्रभाव आमजन के वित्तीय जीवन पर पड़ेगा। आयकर और नौकरीशुदा लोगों के वेतन एवं भत्तों में कई अहम बदलाव 1 अप्रैल 2021 से किए गए हैं या किए जायेंगे। उदाहरण के तौर पर भविष्य निधि में एक वित्त वर्ष में एक निश्चित जमा राशि पर मिलने वाले ब्याज पर 1 अप्रैल से कर लगाया जायेगा।
मामले में आयकर नियमों एवं आयकर रिटर्न दाखिल करने से जुड़े नियमों में भी बदलाव किए गए है। बजट में किए गए प्रावधानों के अनुसार 75 साल या उससे ज्यादा उम्र वाले बुजुर्गों को 1 अप्रैल से आयकर रिटर्न दाखिल करने में राहत दी गई है, वहीं जो लोग आयकर रिटर्न जानबूझकर दाखिल नहीं करते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई किए जाने का प्रस्ताव किया गया है।
एक अप्रैल 2021 से एक वित्त वर्ष में भविष्य निधि खाते में 2.5 लाख रुपए तक के निवेश को आयकर से मुक्त किया गया है, लेकिन इसमें 2.5 लाख या उससे अधिक राशि जमा करने पर उसपर मिलने वाले ब्याज पर आयकर लगेगा। अर्थात ब्याज की राशि पर निवेशक को कर चुकाना होगा। यह प्रावधान सरकार ने इसलिए किया है, ताकि भविष्य निधि के मद में ज्यादा निवेश करके आयकर के अधिनियम के तहत निवेशक ज्यादा राशि का फायदा आयकर छूट के रूप में नहीं ले सकें। हालांकि, हर माह 2 लाख रुपए तक वेतन उठाने वाले नौकरीशुदा लोगों या 2 लाख रुपए तक प्रतिमाह आय अर्जित करने वाले कारोबारी निवेशकों को सरकार के इस नये प्रावधान से कोई नुकसान नहीं होगा।
वरिष्ठ नागरिकों पर अनुपालन बोझ को कम करने के लिए वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए पेश किए बजट में आयकर रिटर्न दाखिल करने से 75 साल या उससे ऊपर आयु वाले बुजुर्गों को छूट दी थी। यह छूट उन बुजुर्ग नागरिकों को दी गई है, जो पेंशन या फिर मियादी जमा से मिलने वाले ब्याज रूपी आय पर जीवनयापन के लिये पूरी तरह से आश्रित हैं।
केंद्र सरकार ने 1 अप्रैल से आईटीआर दाखिल करने की प्रवृति को बढ़ावा देने के लिए टीडीएस के नियमों को सख्त कर दिया है। इसके लिए सरकार ने आयकर अधिनियम में सेक्शन 206एबी जोड़ दिया है। नये नियम के मुताबिक आईटीआर नहीं दाखिल करने पर 1 अप्रैल 2021 से दोगुना टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (टीडीएस) देना होगा। टीडीएस का मतलब स्रोत पर कटौती है। यह आयकर का एक हिस्सा है एवं आयकर मापने का एक तरीका भी। जिन लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल नहीं किया है, उनपर टैक्स कलेक्शन एट सोर्स (टीसीएस) ज्यादा लगेगा।
टीएसएस का मतलब स्रोत पर कर संग्रह होता है। टीडीएस और टीसीएस कर वसूली के दो तरीके हैं। नये नियमों के तहत 1 जुलाई 2021 से दंड शुल्क के साथ टीडीएस और टीसीएल की दरें 10 से 20 प्रतिशत होंगी जो कि आमतौर पर 5 से 10 प्रतिशत होती हैं। आईटीआर दाखिल नहीं करने वालों के लिए टीडीएस और टीसीएस की दर 5 प्रतिशत या तय दर जो भी ज्यादा हो उससे दोगुना हो जायेगा।
वित्त मंत्री ने टीडीएस और टीसीएस के दायरे को बढ़ाने के लिए आयकर अधिनियम में 206 एबी और 206 सीसीए सेक्शन जोड़े हैं। अब तक ज्यादा टीडीएस की दर केवल तब लागू होती थी, जब आयकर दाताओं ने अपना पैन नंबर आयकर विभाग में पंजीकृत नहीं कराया हो। सरकार को समझ में आ गया है कि गैर-पैन धारकों पर बढ़ाई गई टीडीएस की दरों के कारण पैन कार्ड लेने के मामलों में इजाफा हुआ है। लेकिन, ज्यादा लोग अभी भी अपना आयकर रिटर्न दाखिल नहीं कर रहे हैं।
कर्मचारियों की सहूलियत के लिए और आयकर रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए व्यक्तिगत आयकर दाता को अब 1 अप्रैल 2021 से प्री-फील्ड आईटीआर फॉर्म मुहैया कराया जायेगा, जिससे उनके लिये आयकर रिटर्न दाखिल करना आसान हो जायेगा।
वित्त बिल 2021-22 में कहा गया है कि तय समय से पहले भविष्य निधि की निकासी, लॉटरी और घुड़दौड़ में जीत, 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की नकद निकासी और सिक्योरिटाइजेशन ट्रस्ट को कर वसूली की ऊंची दरों से छूट हासिल होगी। इसकी वजह यह है कि इन पर पहले से ही बेहद ऊंची कर की दरें लागू होती हैं।
डाकघर से पैसा निकालने और जमा करने पर अब शुल्क देना होगा। अगर आपका खाता इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक (आईपीपीबी) में है तो आपको 1 अप्रैल से पैसे जमा करने या निकालने के अलावा आधार आधारित पेमेट सिस्टम (एईपीएस) पर शुल्क देना होगा। यह शुल्क निशुल्क लेनदेन सीमा के खत्म होने के बाद लिया जाएगा।
सरकार वित्त वर्ष 2021-22 में न्यू वेज कोड बिल को लागू कर सकती है, जिसका कामगारों के वित्तीय जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। पहले यह बदलाव 1 अप्रैल 2021 से लागू होने वाला था, लेकिन फिलहाल इसे अमलीजामा पहनाने में कुछ देरी हो सकती है। इसके तहत सरकार ने 29 केंद्रीय लेबर क़ानूनों को मिलाकर 4 नये कोड बनाये हैं, जिनके नाम हैं, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड, कोड ऑन आक्युपेशनल सेफ़्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड, सोशल सिक्योरिटी कोड और कोड ऑन वेजेज़।
इस बिल को पारित करने के बाद निजी कर्मचारियों का कुल वेतन का मूल वेतन कम से कम 50 प्रतिशत हो जाएगा और उसी के अनुसार उनके वेतन से भविष्य निधि के लिए कटौती की जाएगी। अभी निजी कंपनियाँ सीटीसी का बहुत ही कम प्रतिशत मूल वेतन के रूप में अपने कर्मचारियों को देती हैं। उन्हें वेतन का एक बड़ा हिस्सा भत्तों के रूप में दिया जाता है।
मूल वेतन बढ़ने से निजी कर्मचारियों के भविष्य निधि और ग्रेच्युटी में योगदान बढ़ जायेगा, जिसका फायदा कर्मचारियों को सेवानिवृत होने पर मिलेगा। हालांकि, तत्काल में उनका वेतन कुछ कम हो जायेगा, जिसके कारण उन्हें अपने घर के बजट में कटौती करनी पड़ेगी।
जिन कंपनियों में मूल वेतन समग्र वेतन का 40 प्रतिशत है, उनका कर्मचारियों के वेतन पर खर्च 3 से 4 प्रतिशत बढ़ने के आसार हैं। अगर किसी कंपनी के मूल वेतन पर खर्च 20 से 30 प्रतिशत है तो उसका कर्मचारियों के वेतन पर खर्च 6 से 10 प्रतिशत तक बढ़ जायेगा।
इसके अलावा, कंपनियों को संविदा या स्थायी कर्मचारियों को ग्रेच्युटी देनी होगी। चाहे वे 5 साल की नौकरी पूरी किये हों या नहीं। नये कोड में कर्मचारी हर साल के अंत में लीव इनकैशमेंट का फायदा ले सकते हैं। नये श्रम कानून के मुताबिक अगर कोई कर्मचारी 15 मिनट भी ज्यादा काम करता है तो उसे ओवरटाइम देना होगा।
पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीएफआरडीए) ने पेंशन फंड मैनेजर (पीएफएम) को 1 अप्रैल से अपने ग्राहकों से अधिक शुल्क लेने की अनुमति दी है, जिससे आम लोगों पर कुछ ज्यादा वित्तीय भार पड़ेगा। हालांकि, सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से इस क्षेत्र में ज्यादा विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा। गौरतलब है कि पेंशन नियामक ने 2020 में जारी प्रस्तावों के लिए एक उच्च शुल्क संरचना का प्रस्ताव किया था, जिसे सरकार ने अमलीजामा पहना दिया है।
मौजूदा समय में जिनके खाते देना बैंक, विजया बैंक, कॉर्पोरेशन बैंक, आंध्रा बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और इलाहाबाद बैंक में हैं, उनके पासबुक और चेकबुक में 1 अप्रैल 2021 से बदलाव किया गया है। इनके आईएफएससी और शाखा कोड में भी बदलाव किया गया है। बैंकों के आपस में विलय होने के कारण ऐसा हुआ है।
उदाहरण के तौर पर देना बैंक का विजया बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय किया गया है। ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का पंजाब नेशनल बैंक के साथ विलय हुआ है, जबकि कॉर्पोरेशन बैंक और आंधा बैंक का यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में विलय किया गया है।
नए वित्त वर्ष में सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में अनेक बदलाव किये हैं, जिनका सीधा प्रभाव नौकरीपेशा, आमजन और बुजुर्गों पर पड़ा है। हालांकि, ये बदलाव लोगों के वित्तीय जीवन में बेहतरी लाने के लिये किये गए हैं। भविष्य निधि और आयकर के तहत किये जाने वाले बदलावों से सरकार की आय में इजाफा होगा, जिससे सरकार विकास केंद्रित कार्यों को अमलीजामा पहना सकेगी। न्यू वेज कोड को 1 अप्रैल 2021 से लागू नहीं किया जा सका है, लेकिन जल्द से जल्द इसे लागू किया जा सकेगा ऐसी उम्मीद है।
इस कोड के लागू होने के बाद निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को सेवानिवृत होने के समय फायदा होगा साथ ही साथ कुछ अन्य लाभ भी उन्हें मिलेंगे। इतना ही नहीं, 1 अप्रैल से बुजुर्ग आयकर दाताओं को भी आयकर रिटर्न दाखिल करने से राहत मिलेगी। सरकारी बैंकों के विलय से तात्कालिक तौर पर भले ही आमजन को कुछ कठिनाई होगी, लेकिन लंबी अवधि में इससे उन्हें लाभ होगा की उम्मीद है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)