आज बैंक जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, फसल बीमा, पेंशन आदि भी आमजन और कारोबारियों को उपलब्ध करा रहे हैं। असंगठित क्षेत्र में कार्यरत करोड़ों की संख्या में कारीगरों एवं मजदूरों को प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत ऋण उपलब्ध कराने का काम भी वित्तीय संस्थान करा रहे हैं। सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन में वित्तीय संस्थानों की सकारात्मक भूमिका की वजह से कोरोना काल में भी भारतीय अर्थव्यवस्था गतिशील रही है।
देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में बैंकों की अहम भूमिका रही है। आजादी के पहले देश में लगभग 1100 छोटे-बड़े बैंक कार्य कर रहे थे। भारत का सबसे बड़ा और सबसे पुराना बैंक जो अभी भी अस्तित्व में है, भारतीय स्टेट बैंक है। इसकी स्थापना वर्ष 1806 में बैंक ऑफ़ कलकत्ता के रूप में हुई और वर्ष 1809 में इसका नाम बदलकर बैंक ऑफ़ बंगाल कर दिया गया। बाद में इसे प्रेसीडेंसी बैंक के नाम से जाना गया। 1 जुलाई 1955 को सरकार ने इसे भारतीय स्टेट बैंक नाम दिया और इस संदर्भ में संसद में एक विधेयक पारित किया गया, जिसे एसबीआई अधिनियम 1955 के नाम से जाना जाता है।
निजी बैंक का मुख्य उद्देश्य मुनाफा कमाना है, जबकि सरकारी बैंकों का उद्देश्य सामाजिक सरोकारों को पूरा करते हुए मुनाफ़ा कमाना है। इसी वजह से देश में समावेशी विकास की संकल्पना को साकार किया जा रहा है। अब फिर से निजी बैंकों की जरूरत महसूस की जा रही है। इसलिए, हाल ही में केंद्र सरकार ने 2 सरकारी बैंकों यथा सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक की निजीकरण की प्रक्रिया शुरू की है। बदले परिदृश्य में सरकारी बैंकों का समेकन भी किया गया है। मार्च 2017 में देश में 27 सरकारी बैंक थे, जिनकी संख्या अप्रैल 2020 में घटकर 12 रह गई।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना “नरसिंहम समिति” की सिफारिश के आधार पर वर्ष 1975 में अध्यादेश के जरिये की गई और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम 1976 के आधार पर इसे संवैधानिक मान्यता दी गई। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में कृषि, वाणिज्य, उद्योग और अन्य उत्पादन गतिविधियों में तेजी लाना और ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और सीमांत कृषकों, कृषि श्रमिकों, छोटे उद्यमियों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप वित्तीय सहयोग प्रदान करना है।
इस बैंक का संचालन भारत सरकार, राज्य सरकारों और प्रायोजक बैंकों की मदद से किया जाता है।इन बैंकों में भारत सरकार, प्रायोजक बैंकों और संबंधित राज्यों की हिस्सेदारी क्रमशः 50, 35 और 15 प्रतिशत होती है। इन बैंकों का विनियमन नाबार्ड करता है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को मज़बूती प्रदान करने के लिये सरकार ने तीन चरणों में इन बैंकों का समेकन किया। अब देश में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्या घटकर लगभग 45 रह गई है, जो वर्ष 2005 में 196 थी।
नाबार्ड कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु वित्त प्रदान करने वाली शीर्ष वित्तीय संस्था है। कृषि के अतिरिक्त यह छोटे उद्योगों, कुटीर उद्योगों एवं अवसंरचना से जुड़ी परियोजनाओं के विकास के लिये कार्य करता है। यह एक सांविधिक निकाय है। नाबार्ड का उद्देश्य वित्तीय समावेशन की संकल्पना को साकार करना भी है। यह ज़िला स्तरीय ऋण योजनाएँ तैयार करता है, ताकि वित्तीय संस्थान ग्रामीणों की वित्तीय जरूरतों को पूरा कर सकें।
सहकारी बैंक, सहकारी ऋण समितियों की मदद से किसानों, भूमिहीन किसानों और खेतिहर मजदूरों को बिचौलियों व साहूकारों के शोषण से बचाने का काम ग्रामीण क्षेत्र में कर रहा है। भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत किसानों, कृषक मजदूरों, कारीगरों आदि के सर्वांगीण विकास में मदद करने के उद्देश्य से की गई थी। सहकारी बैंक का इतिहास बहुत ही पुराना है। यह वर्ष 1904 में सहकारी समिति अधिनियम के पारित होने के बाद अस्तित्व में आया था। अब सहकारिता मंत्रालय के गठन के पश्चात् इसमें मौजूद विसंगतियों के दूर होने की भी उम्मीद जगी है।
ग्रामीण भारत को मजबूत करने में भूमि विकास बैंक की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह बैंक दीर्घकालीन ऋण जरुरतमंदों को उपलब्ध कराता है। इसे पूंजी राज्य सरकार, राष्ट्रीयकृत बैंक, सहकारी बैंक आदि उपलब्ध कराते हैं। भूमि विकास बैंक का मुख्य कार्य भूमि को बंधक रखकर ऋण देना है। इस बैंक से खेती-किसानी, कृषि मशीनरी, ट्रैक्टर, भूमि सुधार, पुराने ऋण की चुकौती आदि के लिए ऋण लिया जा सकता है।
सिडबी की स्थापना 2 अप्रैल 1990 को भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक अधिनियम 1989 के तहत की गई थी। इस बैंक का कार्य सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों की वृद्धि के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है। यह लघु उद्योगों के संवर्द्धन, और विकासात्मक कार्यां के बीच समन्वयन बनाने का कार्य भी करता है। ग्रामीण क्षेत्रों की अवसंरचना को मजबूत करने में शुरू से ही इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
वैसे वित्तीय संस्थान, जो बैंक नहीं हैं, लेकिन वे जमाराशि स्वीकार करते हैं तथा बैंक की तरह ऋण सुविधा प्रदान करते हैं, को एनबीएफसी कहा जाता है। एनबीएफसी में केवल वित्तीय कंपनियां शामिल नहीं हैं। इसमें शामिल कंपनियाँ निवेश व बीमा, चिट फंड, व्यापार बैंकिंग, स्टॉक ब्रोकिंग, वैकल्पिक निवेश आदि का कारोबार करती हैं। 31 जनवरी 2021 तक भारतीय रिजर्व बैंक में पंजीकृत एनबीएफसी की कुल संख्या 9507 थी. मौजूदा समय में इस क्षेत्र का कुल परिसंपत्ति आकार, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का लगभग 14 प्रतिशत है।
आज एनबीएफसी निम्न आय वर्ग के परिवारों तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को जमा एवं ऋण की सुविधाएं उपलब्ध कराने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है. यह उन क्षेत्रों में भी ऋण की सुविधा उपलब्ध करा रहा है, जहाँ बैंकों की पहुँच नहीं है। बैंकों से ऋण पाने में असफल लोगों को यह आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराता है. इसके द्वारा दिये गये ऋण के एनपीए होने का प्रतिशत बहुत ही कम होता है। इस तरह, एनबीएफसी में ग्राहकों की जोखिम शक्ति का मूल्यांकन करने और उनके साथ संबंध स्थापित करने की अद्भुत क्षमता मौजूद है।
भारतीय रिजर्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है। इसे बैंकों का बैंक कहा जाता है। यह भारत के सभी बैंकों का संचालक भी है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था को स्वस्थ रखने के लिए हमेशा सक्रिय रहता है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल सन् 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के प्रावधानों के आधार पर की गई थी।
वित्तीय संस्थान अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इनकी मदद से ही देश में समावेशी विकास के सपने को साकार किया जा रहा है। कोरोना महामारी में भी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और आमजन को राहत देने में वित्तीय संस्थान अहम भूमिका निभा रहे हैं। सरकार द्वारा कोरोना महामारी के शुरू होने के बाद से कई चरणों में राहत पैकेज की घोषणा की गई है।
राहत पैकेज के तहत पात्र आमजन के खातों में सीधे सहायता राशि अंतरित की गई है, जो बड़ी संख्या में प्रधानमंत्री जनधन खाता खोलने की वजह से हुआ है। इसके अलावा राहत पैकेज के तहत दी जाने वाली अन्य वित्तीय सहायता भी बैंकों के जरिये करने का प्रावधान किया गया है।
आज बैंक जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, फसल बीमा, पेंशन आदि भी आमजन और कारोबारियों को उपलब्ध करा रहे हैं। असंगठित क्षेत्र में कार्यरत करोड़ों की संख्या में कारीगरों एवं मजदूरों को प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत ऋण उपलब्ध कराने का काम भी वित्तीय संस्थान करा रहे हैं। सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन में वित्तीय संस्थानों की सकारात्मक भूमिका की वजह से कोरोना काल में भी भारतीय अर्थव्यवस्था गतिशील रही है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)