पांच राज्यों के चुनाव परिणाम लगभग-लगभग आ चुके हैं। यूपी और उत्तराखंड में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला है। गोवा और मणिपुर में फ़िलहाल त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी है। दस साल से पंजाब की सत्ता में रहे अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को इसबार संभवतः सत्ता-विरोधी रुझान के कारण हार का सामना करना पड़ा है। बहरहाल, इन पाँचों राज्यों में उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों को लेकर लोगों में सर्वाधिक जिज्ञासा और प्रतीक्षा थी। इन चुनाव परिणामों से दो दिन पहले आए ज्यादातर एग्जिट पोल्स में यूपी में भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर की बात निकलकर सामने आई थी। बुद्धिजीवियों के कयास भी कुछ ऐसे ही थे। लेकिन, आज जब यूपी के परिणाम हमारे सामने हैं, तो देखा जा सकता है कि प्रदेश की जनता ने भाजपा के पक्ष में बिलकुल एकतरफ़ा फैसला सुनाते हुए उसे बम्पर बहुमत देने का काम किया है। भाजपा को यूपी में तीन सौ से ऊपर सीटें मिलती नज़र आ रही हैं। यूपी के राजनीतिक इतिहास में यह भाजपा के लिए सबसे बड़ी जीत है। दूसरी तरफ सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा का सूपड़ा पूरी तरह से साफ़ हो गया है।
यूपी चुनाव में भाजपा की बम्पर जीत को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि २०१४ में जो मोदी लहर थी, वो आज भी पूरी तरह से कायम है। मोदी मैजिक अभी भी पूरे जोर-शोर के साथ बरक़रार है। प्रधानमंत्री मोदी का लोकप्रिय नेतृत्व और भाजपाध्यक्ष अमित शाह की चुनावी रणनीति का कमाल ही यूपी चुनाव परिणाम में भाजपा की अभूतपूर्व सफलता के रूप में सामने आया है। यूपी चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने ‘यूपी को साथ पसंद है’ का नारा दिया था, वो साथ तो यूपी को नहीं भाया। लेकिन, कह सकते हैं कि यूपी को नरेंद्र मोदी और अमित शाह का साथ खूब पसंद आया है।
अधिक पीछे न जाते हुए अगर पिछले डेढ़ दशक के यूपी के राजनीतिक इतिहास पर नज़र डालें तो इस दौरान सूबे में सपा, बसपा और फिर सपा के हाथों में सत्ता की बागडोर रही है। जनता ने इन दलों को बार-बार प्रदेश में विकास और बदलाव लाने की उम्मीद में अवसर दिया; लेकिन बार-बार जनता को इनसे निराशा ही हाथ लगी। २०१२ में हुए पिछले यूपी चुनाव में मायावती के भ्रष्टाचार से भरे शासन से परेशान प्रदेश की जनता ने मुलायम सिंह यादव के पुत्र युवा अखिलेश यादव में एक उम्मीद देखी। अखिलेश के युवा नेतृत्व से बदलाव की आशा में सपा को पूर्ण बहुमत दिया और अखिलेश मुख्यमंत्री भी बने। इसके बाद धीरे-धीरे जनता की उम्मीदों के टूटने का सिलसिला शुरू हो गया। बदहाल क़ानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार और विकास की ढुलमुल रफ़्तार ने यह साफ़ कर दिया कि सपा सरकार में मुख्यमंत्री का चेहरा भर बदला है, शासन का सलीका पुराना ही है। इन सब चीजों ने सूबे की जनता में अखिलेश सरकार के प्रति भारी आक्रोश भरने का काम किया, जो कि यूपी के इन चुनाव परिणाम के रूप में सामने आया है।
अब भाजपा की जीत पर आएं तो अबसे लगभग तीन साल पहले मई, २०१४ में अपने विकास के एजेंडे और नरेंद्र मोदी की विकास पुरुष की छवि के साथ भाजपा पूर्ण बहुमत प्राप्त कर केंद्र की सत्ता में आरूढ़ हुई। सत्ता में आते ही मोदी सरकार द्वारा जनता से किए अपने वादों को पूरा करने के लिए अनेक योजनाओं को आरम्भ किया गया। धीरे-धीरे इन योजनाओं का लाभ भी जनता तक पहुंचा। फिर पीओके में घुसकर भारतीय जवानों द्वारा आतंकी ठिकानों पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक ने सरकार की मज़बूत रक्षा नीति को भी जनता के सामने लाने का काम किया। काले धन पर अंकुश लगाने के लिए नोटबंदी जैसा साहसिक फैसला लेने का काम भी मोदी सरकार द्वारा किया गया। इस निर्णय पर विपक्षियों द्वारा खूब हल्ला मचाया गया और इससे जनता को तकलीफ होने की ढोल पीटी गयी। यहाँ तक कहा गया कि जनता नोटबंदी का जवाब चुनाव में सरकार को देगी। लेकिन, इन पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने विपक्ष के सभी दावों की हवा निकालते हुए ये स्पष्ट कर दिया है कि जनता मोदी सरकार के साथ है और उसके कामकाज से संतुष्ट भी है।
यूपी चुनाव में भाजपा की बम्पर जीत को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि २०१४ में जो मोदी लहर थी, वो आज भी पूरी तरह से कायम है। मोदी मैजिक अभी भी पूरे जोर-शोर के साथ बरक़रार है। प्रधानमंत्री मोदी का लोकप्रिय नेतृत्व और भाजपाध्यक्ष अमित शाह की चुनावी रणनीति का कमाल ही यूपी चुनाव परिणाम में भाजपा की अभूतपूर्व सफलता के रूप में सामने आया है। यूपी चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने ‘यूपी को साथ पसंद है’ का नारा दिया था, वो साथ तो यूपी को नहीं भाया। लेकिन, कह सकते हैं कि यूपी को नरेंद्र मोदी और अमित शाह का साथ ज़रूर पसंद आया है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)