विधेयक के मुताबिक भगोड़ा आर्थिक अपराधी उसे माना जायेगा, जिसके विरुद्ध किसी सूचीबद्ध अपराध के संबंध में गिरफ्तारी का वारंट जारी किया जा चुका है या जिसने आपराधिक कार्यवाही से बचने के लिए भारत छोड़ दिया है या विदेश में रह रहा है और वह आपराधिक अभियोजनों का सामना करने के लिए भारत नहीं लौटना चाहता है। ऐसे मामलों में न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ ज्यादा न पड़े, इसके लिये 100 करोड़ रूपये या इससे ज्यादा के मामलों को ही इस विधेयक की जद में लाया गया है।
नीरव मोदी, मेहुल चौकसी विजय माल्या आदि आर्थिक अपराधियों पर नकेल कसने के लिये कैबिनेट ने “भगोड़ा आर्थिक अपराध बिल 2018” को मंजूरी दी है। प्रस्तावित विधेयक में आर्थिक अपराध को अंजाम देकर विदेश भागने वालों को अदालत द्वारा उन्हें दोषी साबित किये जाने से पहले उनकी संपत्तियों को जब्त करने का प्रावधान है। हालाँकि, इसे अमलीजामा पहनाने के लिये संबंधित देश के सहयोग की जरूरत होगी। इस तरह के मामलों में प्रभावी तरीके से कार्रवाई की जाये, इसके लिये सरकार कुछ ऐसे तंत्रों को विकसित करेगी, जिनकी मदद से समुचित कार्रवाई करना आसान हो जायेगा। दरअसल, इस विधेयक के जरिये सरकार देश में घोटाला करके विदेश भागने वालों को कड़ा संदेश देना चाहती है। 5 मार्च से शुरू होने वाले बजट सत्र के दूसरे चरण में इस विधेयक को पेश किये जाने का प्रस्ताव है।
देखा जाये तो सरकार ने अचानक से इस विधेयक को मंजूरी नहीं दी है। इसे लाने की घोषणा वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में की गई थी। तदुपरांत, इसके मसौदे को अंतिम रूप देने की तैयारी शुरू की गई। इस विधेयक के मुताबिक 100 करोड़ रुपये से अधिक के बैंक कर्ज को वापिस नहीं करने वालों और जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले कर्जदारों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जा सकता है। इसके लिये विशेष अदालत बनाये जाने के प्रावधान किये गये हैं और ऐसे आर्थिक अपराधियों के मामले की सुनवाई मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत करने का प्रस्ताव है।
इस विधेयक के प्रावधानों के अनुसार भगोड़े आर्थिक अपराधियों की देश में और देश से बाहर की संपत्ति को जब्त किया जा सकेगा। संपत्ति जब्त करने और आर्थिक अपराधियों को देश वापिस लाकर अदालत में पेश करने के लिये विशेष तंत्र बनाने का प्रस्ताव है। हाँ, यदि ऐसे भगोड़े आर्थिक अपराधी कानून के दायरे में रहकर सरकार को सहयोग करने की पेशकश करते हैं, तो सरकार उनके साथ थोड़ी नरमी से पेश आ सकती है अर्थात अगर कोई व्यक्ति भगोड़ा घोषित होने से पहले भारत लौट आता है और सक्षम न्यायालय के सामने पेश होता है तो प्रस्तावित अधिनियम के अंतर्गत उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही नहीं की जायेगी।
विधेयक के मुताबिक भगोड़ा आर्थिक अपराधी उसे माना जायेगा, जिसके विरुद्ध किसी सूचीबद्ध अपराध के संबंध में गिरफ्तारी का वारंट जारी किया जा चुका है या जिसने आपराधिक कार्यवाही से बचने के लिए भारत छोड़ दिया है या विदेश में रह रहा है और वह आपराधिक अभियोजनों का सामना करने के लिए भारत नहीं लौटना चाहता है। ऐसे मामलों में न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ ज्यादा न पड़े, इसके लिये 100 करोड़ रूपये या इससे ज्यादा के मामलों को ही इस विधेयक की जद में लाया गया है।
कहा जा सकता है कि इस विधेयक के लागू होने के बाद 100 करोड़ रूपये से ज्यादा के भगोड़े आर्थिक अपराधी की देश या विदेश में संपत्ति जब्त की जा सकेगी, उसके विरुद्ध विशेष अदालत की ओर से नोटिस जारी किया जा सकेगा, उसकी बेनामी संपत्तियों को जब्त किया जा सकेगा। साथ ही, ऐसे आर्थिक अपराधी किसी सिविल दावे के बचाव के लिये पात्र भी नहीं होंगे। जब्त की गई संपत्ति के प्रबंधन व निपटान के लिए प्रशासक की नियुक्ति की जायेगी।
साफ है कि घोटाले की राशि वसूलने में बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों को यह विधेयक मजबूती देगा। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रस्तावित विधेयक से भगोड़े आर्थिक अपराधियों को भारत वापस लाने एवं उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में मदद मिलेगी। कहना गलत नहीं होगा कि इस विधयेक के लागू होने के बाद भगोड़े आर्थिक अपराधियों के लिये कानून के शिकंजे से बचना आसान नहीं होगा।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉर्पोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)