मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए मुलायम ने फिर गाया ‘बाबरी राग’!

उत्तर प्रदेश के चुनाव सिर पर आ गए हैं। इस बार समाजवादी पार्टी की नैया भंवर में दिखाई पड़ रही है। यही कारण है कि समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव को ‘मुस्लिम प्रेम’ नजर आने लगा है। वह किसी भी प्रकार अपने वोटबैंक को खिसकने नहीं देना चाहते हैं। मुसलमानों को रिझाने के लिए उन्होंने फिर से ‘बाबरी राग’ अलापा है। मुलायम सिंह यादव ने अपने जीवन पर लिखी किताब ‘बढ़ते साहसिक कदम’ के विमोचन के अवसर पर अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने के अपने फैसले को साहसिक बताया है। उनका कहना है कि देश की एकता को बचाने के लिए कारसेवकों पर गोली चलाने का उनका फैसला सही था। गोली नहीं चलती तो मुसलमानों का भरोसा उठ जाता। देश की एकता बचाने के लिए 16 की जगह 30 जान भी लेनी पड़ती तो ले लेता। गौरतलब है कि जनवरी, 2016 में भी मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने के अपने फैसले को सही ठहराया था।

मुलायम सिंह यादव को तुष्टिकरण की ये राजनीति करते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि मुसलमानों का भरोसा बनाए रखने के लिए हिंदुओं को बलि के बकरे के रूप में प्रस्तुत करना कतई उचित नहीं है। कितना अच्छा होता कि मुलायम सिंह यादव अपने कृत्य पर खेद प्रकट करते और देश के सभी नागरिकों के प्राणों की रक्षा का संकल्प लेते। लेकिन, तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले इतना बड़ा संकल्प लेने का सामर्थ्य नहीं रखते हैं।

यदि हम मुलायम सिंह की राजनीति और उनके भाव को समझ पाएं तब ध्यान आएगा कि वह क्या कहना चाह रहे हैं? दरअसल, मुलायम सिंह कह रहे हैं कि यदि उन्होंने गोली नहीं चलाई होती, तब मुसलमानों का भरोसा उठ जाता। यह भरोसा समाजवादी पार्टी से उठता, न कि देश से। उसी सीमित भरोसे को पुख्ता करने के लिए मुलायम सरकार ने रामभक्तों के सीने पर गोलियाँ दगवाई थीं। क्या यह सच के अधिक निकट नहीं है कि मुसलमानों का भरोसा (वोट) बनाए रखने के लिए मुलायम सिंह यादव ने हिंदुओं की जान ले ली थी?

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जब वे स्वयं ही मान रहे हैं कि एक संप्रदाय का भरोसा बनाए रखने के लिए वह और हिंदुओं की जान भी ले सकते थे, तब लोगों ने कठोर आलोचना करते हुए उन्हें हत्यारा कहकर क्या गलत कहा था? मुलायम सिंह यादव को अपने उस फैसले पर भले ही अफसोस न हो, लेकिन देश के बहुसंख्यकों को सदैव यह अफसोस रहेगा कि उनकी भावनाओं को कैसे राजनीति एड़ियों तले रौंदती है। क्या मुलायम सिंह को इस बात का अहसास है कि उन्होंने अपने उस निंदनीय कृत्य से हिंदुओं का भरोसा खो दिया था?

मुसलमानों का वोट बैंक सपा के लिए पक्का करने के चक्कर में उन दु:खद क्षणों का जिक्र करके क्या मुलायम सिंह यादव हिंदुओं के जले पर नमक नहीं छिड़क रहे हैं? अचानक इस तरह कारसेवकों पर गोली चलाने के घृणित फैसले को सही बताकर वह क्या पाना चाहते हैं? जाहिर है, मुसलमानों की सहानुभूति और भरोसा। मुलायम सिंह यादव उन नेताओं में शुमार हैं, जो अकारण ही कोई बात नहीं बोलते हैं। उनके कहे का दूरगामी असर होता है। इसलिए उनसे गंभीर राजनीति की अपेक्षा की जाती है। लेकिन, वह गंभीर राजनीति में असफल ही रहे हैं। उन्हें तुष्टिकरण  की राजनीति ही मुफीद लगती है। क्योंकि, उन्हें पता है कि उत्तरप्रदेश के कई विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी का वोट ही हार-जीत का फैसला करता है। इसलिए वह जानबूझकर मुस्लिम हितैषी अपनी पहचान को फैलने देना चाहते हैं और उसके प्रति ध्यान आकर्षित कराने के लिए वह हिंदुओं को सीधे चोट भी पहुँचा सकते हैं। मुलायम सिंह यादव को इस तरह की राजनीति करते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि मुसलमानों का भरोसा बनाए रखने के लिए हिंदुओं को बलि के बकरे के रूप में प्रस्तुत करना उचित नहीं। कितना अच्छा होता कि मुलायम सिंह यादव अपने कृत्य पर खेद प्रकट करते और देश के सभी नागरिकों के प्राणों की रक्षा का संकल्प लेते। लेकिन, तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले इतना बड़ा संकल्प लेने का सामर्थ्य नहीं रखते हैं।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)