यूपी चुनाव आते ही फिर बढ़-चढ़कर हिलोरें मारने लगा मुलायम का मुस्लिम प्रेम!

यूपी चुनाव में अब बहुत अधिक समय शेष नहीं है। अगले ही साल चुनाव होने हैं। अब चुनाव की आहट पाते ही यूपी की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का मुस्लिम प्रेम जो पहले भी बाहर आता रहा है, अब और सिर चढ़कर बोलने लगा है। अब अभी पिछले दिनों उन्होंने कार सेवकों पर गोली चलवाने वाले मामले पर कहा था कि अगर मस्जिद बचाने के लिए सोलह की बजाय तीस जानें जातीं तो भी वे गोली चलवाते। मतलब कि लाशें कितनी भी गिर जातीं, मगर वो निर्जीव मस्जिद नहीं गिरनी चाहिए थी।

यूपी में मुलायम की राजनीति का आधार ही मुसलमान और यादव रहे हैं, जिनमें यादव तो जातीयता के कारण उन्हें छोड़कर जाते नहीं, बचे मुसलमान तो उनके तुष्टिकरण के लिए मुलायम समय दर समय ये सब विचित्र-विचित्र बयान देते रहते हैं तथा कभी कोई बड़ा मौका पड़ने पर उनकी ओर अपना पूरा झुकाव भी दिखा देते हैं। यही तो कारण है कि सामान्य झड़प में हुई दादरी के इखलाक की मौत पर सपा सरकार उसके पूरे परिवार को फ़्लैट से लगाए लाखों रूपये तक बिना मांगें दे देती है, जबकि एक सेना के जवान की शहादत पर उसके परिवार को पैसे के लिए इस सरकार के सामने धरना देना पड़ता है।

इस बयान को अभी पखवाड़ा भी नहीं बीता था कि यूपी चुनाव के मद्देनज़र निकल रही ‘मुलायम सन्देश यात्रा’ को हरी झंडी दिखाने के अवसर पर सपा प्रमुख का मुस्लिम प्रेम फिर एकबार हिलोरें मारकर बाहर आ गया और मुस्लिम समाज को लुभाने के लिए मुलायम बोले कि मुसलमानों को अधिक से अधिक संख्या में पार्टी से जोड़ना उनकी प्राथमिकता है। लेकिन, मुस्लिम प्रेम में पगी और भी कई बातें कहते-कहते मुलायम एक तकनिकी गलती कर गए। वे बोल पड़े कि उनकी सरकार ने मुस्लिमों को सबसे ज्यादा पुलिस में भर्ती कराया और आज हर थाने में मुस्लिम सिपाही तैनात है। खूब सोचने पर भी समझना मुश्किल है कि इस बयान के जरिये मुलायम अपने सरकार की कौन-सी उपलब्धि गिनवा रहे थे? गौर करें तो मुस्लिमों के लिए आरक्षण जैसा कोई प्रावधान अभी नहीं है, अतः जो मुस्लिम भर्ती हुए हैं, वे अपनी काबिलियत और प्रयास के कारण ही हुए होंगे। अब सवाल यह है कि फिर कैसे मुस्लिम सिपाहियों की भर्ती को मुलायम अपने सरकार की उपलब्धि बताकर इसका श्रेय लेना चाहते हैं? सवाल यह भी उठता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मुलायम यादव के पुत्र अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार ने मुस्लिमों को असंवैधानिक तरीके या यूँ कहें कि जुगाड़ से पुलिस में भर्ती दिलाई हो? अगर मुलायम का बयान सच है और थानों में मुस्लिम सिपाहियों की भर्ती को समाजवादी सरकार अपनी उपलब्धि मानती है तो फिर इस सवाल का जवाब उसे देना होगा। अन्यथा मुस्लिम भर्तियों का झूठा क्रेडिट लेने के लिए मुलायम यादव को माफ़ी मांगनी होगी। कहना गलत नहीं होगा कि यूपी चुनाव के मद्देनज़र मुलायम यादव का मुस्लिम प्रेम इन दिनों इतना अधिक बढ़ गया है कि इसको बयान करते समय उन्हें सही और गलत की सूझ भी नहीं रह जा रही है। तभी तो मुस्लिम भर्तियों को लेकर ये गलतबयानी कर गए हैं।

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मुस्लिम प्रेम में डूबे मुलायम

वैसे मुलायम के साथ ये पहली बार नहीं हुआ है, मुस्लिम समुदाय को रिझाने के चक्कर में अक्सर वे ये सब गड़बड़ियां कर जाते हैं और अहंकार ऐसा है कि उनके लिए कभी माफ़ी भी मांगते उन्हें नहीं देखा गया। बीते लोकसभा चुनाव के दौरान मुलायम ने एक रैली में कहा था – इस देश के अस्सी प्रतिशत विकास में किसानों और मुसलामानों का योगदान है। इस बयान को समझना राकेट साइंस से भी कठिन काम है। इसका क्या अर्थ है, ये शायद सिर्फ मुलायम ही समझा सकते हैं। मुलायम को बताना चाहिए कि किसानों और मुसलामानों के बीच क्या सम्बन्ध है ? गौर करें तो किसान एक व्यवसाय सम्बन्धी समूह का सूचक शब्द है और मुसलमान संप्रदायसूचक, फिर इन दोनों को साथ रखकर तब वे क्या स्पष्ट करना चाहते थे ? अगर वे किसानों के साथ व्यापारियों की बात करते या मुसलमानों के साथ किसी और संप्रदाय की तो समझ में आता, मगर किसानों और मुसलमानों के जरिये वे अपने मन के कौन से उदगार प्रकट करना चाहते थे, ये आज भी अनुत्तरित ही है। दरअसल मुलायम बनते तो धर्मनिरपेक्ष हैं, लेकिन उनकी धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा शायद सिर्फ मुस्लिम पर जाकर ही समाप्त हो जाती है और इसीलिए उन्हें किसानों के साथ बिना किसी तुक के मुसलमानों को भी देश की प्रगति का साझीदार बताना पड़ता है।

समझना मुश्किल नहीं है कि यूपी में मुलायम की राजनीति का आधार ही मुसलमान और यादव रहे हैं, जिनमें यादव तो जातीयता के कारण उन्हें छोड़कर जाते नहीं, बचे मुसलमान तो उनके तुष्टिकरण के लिए मुलायम समय दर समय ये सब विचित्र-विचित्र बयान देते रहते हैं तथा कभी कोई बड़ा राजनीतिक लाभ का मौका पड़ने पर उनकी ओर अपना पूरा झुकाव भी दिखा देते हैं। यही तो कारण है कि सामान्य झड़प में हुई दादरी के इखलाक की मौत पर सपा सरकार उसके पूरे परिवार को फ़्लैट से लगाए लाखों रूपये तक बिना मांगें दे देती है, जबकि एक सेना के जवान की शहादत पर उसके परिवार को पैसे के लिए इस सरकार के सामने धरना देना पड़ता है। साथ ही, ईद से लेकर हर मुस्लिम पर्व को पूरी शिद्दत से मनाने में भी मुलायम पूरे तन-मन-धन से लगे रहते हैं।

लेकिन, मुलायम समझ लें कि धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मुस्लिम तुष्टिकरण की इस राजनीति से इसबार उनकी सरकार नहीं बचने वाली क्योंकि अखिलेश के युवा चेहरे की जिस उम्मीद से पिछली बार यूपी के मतदाताओं ने उन्हें पूर्ण बहुमत दिया था, उनकी सरकार के अबतक के कार्यकाल में अपराध, दंगे, अव्यवस्था आदि के कारण वो उम्मीद अब पूरी तरह से ख़त्म हो चुकी है। अतः इस यूपी चुनाव में तो जनता सिर्फ उन्हें जवाब देगी, जिसके लिए मुलायम को अपने कुनबे सहित तैयार रहना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)