मोदी सरकार ने अपने चार सालों के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक सरोकारों दोनों मोर्चों को मजबूत करने का काम किया है। साथ ही वह फसल बीमा, उज्ज्वला योजना, मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराने के लिये ज्यादा राशि के आवंटन आदि के माध्यम से भी आम जनता को सशक्त बनाने का काम कर रही है।
विगत चार सालों में मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिये अनेक कदम उठाये हैं। देखा जाये तो मोदी सरकार द्वारा किये गये विकासात्मक कार्यों की एक लंबी फेहरिस्त है। नवंबर, 2016 में विमुद्रीकरण करने का निर्णय लेना मोदी सरकार द्वारा उठाया गया एक साहसिक कदम था। इस निर्णय से नकसलवाद, आतंकवाद, कालेधन एवं कर चोरी पर रोक तो लगी ही, साथ ही डिजिटलीकरण को भी बढ़ावा मिला। इसके बाद सब्जी वाले, खोमचे वाले, चाय वाले आदि भी डिजिटल लेनदेन करने लगे। इतना ही नहीं बड़े-बुजुर्ग और ग्रामीण महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर डिजिटल लेनदेन में हिस्सा लिया।
जीएसटी से अर्थव्यवस्था को मजबूती
अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिये विमुद्रीकरण के तुरंत बाद जीएसटी को लागू किया गया। यह एक सशक्त अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है। जीएसटी के तहत अलग-अलग कर की बजाय एक कर का प्रावधान किया गया। इससे विनिर्माण लागत में कमी आई। उपभोक्ताओं को आज देश भर में किसी भी सामान या सेवा का एक शुल्क अदा करना पड़ रहा है। टीवी, गाड़ी, फ्रिज एक ही कीमत पर मुंबई, दिल्ली, पटना, भोपाल आदि शहरों में उपभोक्ताओं को मिल रहा है।
इससे कर चोरी की वारदातें एवं कर विवाद के मामले कम हो रहे हैं। टैक्स वसूली की लागत में भी उल्लेखनीय कमी आई है। रोजगार सृजन में वृद्धि, चाइनीज उत्पादों की बिक्री में कमी, जरूरी चीजों पर कर कम होने एवं विलासिता की वस्तुएं महँगी होने से सरकार व आम लोगों दोनों को फायदा हो रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक अप्रत्यक्ष कर की इस नई व्यवस्था से अर्थव्यवस्था को 60 लाख करोड़ रुपये का फायदा होने का अनुमान है, जिससे सरकार रोजगार सृजन, आधारभूत संरचना का विकास, औद्योगिक विकास को गति, अर्थव्यवस्था को मजबूत आदि करने में समर्थ हो सकेगी। इससे लाजिस्टिक लागत में भी कमी आयेगी। इस नई कर प्रणाली से देश के विकास दर में लगभग दो प्रतिशत तक का इजाफा होने का अनुमान है।
भ्रष्टाचार में कमी
भ्रष्टाचार को विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा माना जा सकता है। बढ़ते वैश्वीकरण, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वित्तीय लेनदेन में भ्रष्टाचार की गूँज साफ तौर पर सुनाई देती है। आज कोई भी ऐसा देश नहीं है, जो अपने यहाँ इसकी उपस्थिति से इंकार कर सके। देखा गया है कि भ्रष्टाचार का प्रतिकूल प्रभाव निर्णय लेने की क्षमता और प्राथमिकताओं के चयन पर भी पड़ता है।
केन्द्रीय सतर्कता आयोग द्वारा वर्ष 2016 में प्राप्त कुल शिकायतों में से बाहरी शिकायतें केवल 0.17% ही थीं, जो इस बात का संकेत है कि पहले की तुलना में प्रशासन ज्यादा साफ-सुथरा हुआ है। ई-निविदा, ई-खरीद, रिवर्स नीलामी आदि कार्यों के नवीन प्रौद्योगिकी के जरिये होने से शासन एवं उसकी कार्यविधियों में पारदर्शिता आई है।
निवेश, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहित, प्रतिस्पर्धा, उद्यमिता, सरकारी व्यय, राजस्व आदि पर भ्रष्टाचार का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वर्ष 2011 से वर्ष 2016 के दौरान भारत, ब्रिटेन, पुर्तगाल एवं इटली जैसे देश भ्रष्टाचार की धारणा सूचकांक (प्रति वर्ष पारदर्शिता इंटरनेशनल द्वारा प्रकाशित) में समग्र रूप से श्रेणी उन्नयन करने में सफल रहे हैं। दूसरी तरफ वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट के दौर में भी भारत सकारात्मक जीडीपी दर हासिल करने में सफल रहा है।
भारत वर्ष 2011 के 95 वें श्रेणी में सुधार करते हुए वर्ष 2016 में 79 वें स्थान पर आ गया। भारत में भ्रष्टाचार के स्तर में सुधार आने से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के प्रवाह में भी तेजी आई है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के प्रति विदेशी निवेशकों का भरोसा पहले की तुलना में बढ़ा है। भारत में शुद्ध विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्रवाह पिछले छह सालों यथा, वित्त वर्ष 2012 के 21.9 यूएस बिलियन डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2017 में 35.9 यूएस बिलियन डॉलर हो गया, जो प्रतिशत में 64 है।
सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था
भारत पिछले तीन सालों से सबसे तेज रफ्तार से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। मुद्रास्फीति वर्ष 2014 से लगातार नीचे आ रही है और चालू वित्त वर्ष में भी यह चार प्रतिशत से ऊपर नहीं जायेगी। इस वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा दो प्रतिशत से कम होगा और विदेशी मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है।
राजकोषीय घाटे को चालू वित्त वर्ष में जीडीपी के 3.2 प्रतिशत के लक्ष्य के दायरे में रखने के लिये लगातार कोशिश कर रही है। औद्योगिक एवं कारोबारी गतिविधियों में तेजी लाने के लिये सरकार सरकारी खर्च में इजाफा कर रही है। केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों ने 3.85 लाख करोड़ रुपये के उनके व्यय लक्ष्य से 1.37 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च किये हैं। अगले पांच साल के दौरान 83,677 किलोमीटर सड़क निर्माण करने का लक्ष्य रखा गया है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कामकाज में सुधार लाने के लिए सरकार ने “इंद्रधनुष” नाम से एक सात आयामी योजना शुरू की है, जिसमें नियुक्तियां, बोर्ड ऑफ ब्यूरो, पूँजीकरण, तनावमुक्त माहौल का सृजन, सशक्तिकरण, जवाबदेही के ढांचे का निर्माण एवं सुशासन जैसे सुधारात्मक पहल शामिल हैं। इसके तहत सरकार ने 4 साल की अवधि में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूँजी मुहैया करायेगी।
भारतीय रिजर्व बैंक और कुछ अन्य एजेंसियों के अनुसार बेसल III के कार्यान्वयन के बाद बैंकिंग क्षेत्र को लगभग 1.1 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता है। लिहाजा, सरकार बैंकिंग क्षेत्र में 2.11 लाख करोड़ रूपये का पुनर्पूंजीकरण कर रही है, जिसमें बजट के माध्यम से बैंकों को 18,139 करोड़ रूपये दिया जायेगा। 1.35 लाख करोड़ रूपये का पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड जारी किया जायेगा और बची हुई राशि की व्यवस्था बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को कम करके एवं बाजार से जुटाया जायेगा, ताकि बैंक वैश्विक पूंजी पर्याप्तता एवं बासेल तृतीय के मापदण्डों का पूरी तरह से अनुपालन कर सकें।
अन्य विकासपरक और लोक कल्याणकारी नीतियां
देश में से अंधेरा भगाने के लिये अक्षय ऊर्जा के दोहन के लिये प्रयास किये जा रहे हैं। अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र को व्यापक और प्रभावी बनाने के लिए “नवीन एवं अक्षय ऊर्जा” के नाम से एक स्वतंत्र मंत्रालय बनाया गया है। भारत विश्व का पहला देश है, जहाँ अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए एक अलग मंत्रालय है। बजट में अक्षय ऊर्जा की क्षमता को 2022 तक 1,75,000 मेगावाट बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। 1,75,000 मेगावाट में सौर ऊर्जा का हिस्सा 1,00,000 मेगावाट, पवन ऊर्जा का हिस्सा 60,000 मेगावाट, जैव ईंधन का हिस्सा 10,000 मेगावाट और जल ऊर्जा का हिस्सा 5,000 मेगावाट रहेगा।
सरकार ने वित्त वर्ष, 2019 के बजट में “आयुष्मान भारत” कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना नाम से एक नई योजना की घोषणा की है। इसके अंतर्गत प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का प्रस्ताव है। इस योजना के माध्यम से 10 करोड़ से अधिक गरीब परिवार (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) लाभान्वित होंगे और माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर इन्हें प्रति परिवार 5 लाख रूपये तक स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान किया जायेगा। प्रस्तावित इस योजना को दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य कार्यक्रम माना जा रहा है।
एक लंबे समय से ऑनलाइन सामान बेचने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा खराब या नकली उत्पाद बेचने पर उन्हें ग्राहकों को पैसे वापिस लौटाने के लिये मजबूर करने वाले कानून बनाने की माँग की जा रही थी। इसी क्रम में ग्राहकों की समस्याओं को देखते हुए सरकार ने ई-कॉमर्स नीति बनाने का फैसला किया है। इस नीति का मसौदा 6 महीनों के अंदर लागू किया जायेगा। सरकार चाहती है कि नई नीति में ई-कॉमर्स कारोबार और ग्राहकों के हितों का पूरा ध्यान रखा जाये।
डाटा प्राइवेसी, कराधान, ऑनलाइन कारोबार से जुड़े तकनीकी पहलूओं, जैसे, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, सर्वर को देश में ही रखने और कनेक्टिविटी आदि को इस नीति में जगह दी जायेगी। नीति बनाने के लिये एक समिति का गठन किया गया है, जो 5 महीने में अपनी रिपोर्ट देगा। तदुपरांत, एक महीने के अंदर समिति की सिफ़ारिशों को अमलीजामा पहनाया जायेगा।
कहा जा सकता है कि मोदी सरकार अपने चार सालों के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक सरोकारों दोनों मोर्चों को मजबूत करने का काम कर रही है। वह फसल बीमा, उज्ज्वला योजना, मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराने के लिये ज्यादा राशि का आवंटन आदि के माध्यम से भी आम जनता को सशक्त बनाने का काम कर रही है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)