अब शादी से जुड़े कलेक्शन से लेकर पारंपरिक साड़ियां और जरी के काम वाले कपड़े भी खादी में उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इन प्रयासों से खादी के उत्पादों की बिक्री में करीब 125 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इस बात की पुष्टि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी पर प्रसारित कार्यक्रम ‘मन की बात’ में की है। प्रधानमंत्री मोदी खुद भी लोगों से खादी के उत्पादों को खरीदने का आग्रह कर रहे हैं।
महात्मा गांधी ने कुटीर उद्योग के माध्यम से देश की आर्थिक समृद्धि का जो सपना देखा था, उसे पूरा करने के लिये केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) के अधीनस्थ खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग एवं अन्य माध्यमों से लगातार प्रयास कर रहा है। आयोग गर्मियों के लिए सिली-सिलाई कुर्तियां, कमीजें, सलवार-कमीज, कुर्ता-पायजामा, साड़ियाँ तथा सर्दियों के लिए जैकेट, डिजाइनर परिधान, बंडी आदि का निर्माण एवं उनके देश भर में विपणन के लिए कोशिश कर रहा है।
आजादी की प्रतीक मानी जाने वाली खादी को वर्तमान में फैशनेबल भी बनाया जा रहा है। मिनी व लॉन्ग स्कर्ट सहित आज खादी में फैशन के सारे विकल्प उपलब्ध हैं। खादी के एक से एक डिजाइनर पर्स भी बाजार में बिक रहे हैं। खादी के जूते भी बाजार में उतारे गये हैं। ऐसे जूते हाथ से काते व सिले जाते हैं। डिजाइनरों के मुताबिक फैशनेबल और आकर्षक डिजाइनों के साथ-साथ खादी के अलग-अलग सुंदर रंगों में पारंपरिक परिधानों को पहनने के प्रति लोगों की ललक बढ़ रही है।
मौजूदा समय में फैशन डिजाइनर रितु कुमार, वेंडेल रोड्रिक्स, राहुल मिश्रा, आनंद काबरा, सब्यसाची मुखर्जी, गौरंग शाह ने खादी के परिधानों को लोकप्रिय बनाने का काम कर रहे हैं। वे अपने संग्रह में खादी के कपड़े का प्रयोग कर रहे हैं। अब खादी के कुर्ते ही नहीं बल्कि वेस्टर्न कपड़े भी बाजार में मौजूद हैं।
अब शादी से जुड़े कलेक्शन से लेकर पारंपरिक साड़ियां और जरी के काम वाले कपड़े भी खादी में उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इन प्रयासों से खादी के उत्पादों की बिक्री में करीब 125 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इस बात की पुष्टि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी पर प्रसारित कार्यक्रम ‘मन की बात’ में की है। प्रधानमंत्री मोदी खुद भी लोगों से खादी के उत्पादों को खरीदने का आग्रह कर रहे हैं।
इधर, कपड़ा मंत्री भी खादी को बढ़ावा देने के लिए प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। उन्होंने नई पीढ़ी से ज्यादा से ज्यादा खादी के कपड़ों का इस्तेमाल करने की अपील की है। मोदी सरकार के कुछ दूसरे मंत्री भी ऐसा ही कर रहे हैं। इस कार्य को अमलीजामा पहनाने के लिये सोशल मीडिया पर प्रचार अभियान चलाया जा रहा है। खादी का देश में उपभोग बढ़े, इसके लिए देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आधिकारिक विमान “एयर इंडिया वन” के “केबिन क्रू” के सदस्यों को खादी से बने परिधान पहनने के लिए निर्देशित किया गया है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी खादी के कपड़ों के प्रचार-प्रसार, उनकी ब्राडिंग, राज्य के युवाओं को खादी के कपड़ों के प्रति आकर्षित करने के लिये खादी के नये-नये डिजाइनों वाले कपड़े तैयार कराने का फैसला किया है। नीतीश कुमार के मुताबिक खादी कपड़ों के बेहतर डिजाइन और बेहतर गुणवत्ता से लोगों में इसकी मांग बढ़ेगी। उनकी अगुवाई में राज्य उद्योग विभाग ने खादी कपड़ों के नये-नये डिजाइन तैयार करने के लिये निफ्ट के साथ समझौता किया है। खादी उद्योग के संवर्धन के लिये राज्य सरकार 17 करोड़ रुपये की लागत से एक भवन बनाने की बात कह रही है, जिसमें खादी के शोरूम होंगे।
खादी का अपना एक इतिहास रहा है। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने एवं देश में समावेशी विकास को गति देने के लिए लिये महात्मा गांधी ने सबसे पहले 1918 में हथकरघा की मदद से घर-घर में हाथों से कपड़ा बनाने का आह्वान किया था। हथकरघा से कपड़े बनाने के गांधी जी के पहल को “मेक इन इंडिया” का प्राचीनतम रूप कहा जा सकता है। वर्ष 1942-43 में गाँधी जी ने पूरे देश में खादी आंदोलन की शुरूआत की थी। उस कालखंड में खादी के कपड़ों का व्यापक स्तर पर निर्माण करके गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया गया था।
इसमें दो राय नहीं है कि जब घर के सभी सदस्य मिलकर कपड़ा बुनेंगे तो घर की आमदनी में इजाफा, बचत को बढ़ावा, परिवार को दो वक्त की रोटी आदि मिल सकेगी। गाँधी चाहते थे कि इस हुनर को देश के हर गाँव में विकसित किया जाये, ताकि देश में कोई बेरोजगार न रहे, क्योंकि इस तकनीक में नाममात्र पूँजी की आवश्यकता होती है। इसलिए, कोई भी इस विधि का अनुसरण करके आत्मनिर्भर बन सकता है।
गाँधी जी ने जिस खादी को बेरोजगारी दूर करने का साधन बनाया था, वह कालांतर में अपेक्षित लोकप्रियता हासिल नहीं कर सका। हालाँकि, बीते सालों में खादी बनाने की तकनीक में आमूलचूल परिवर्तन आया है। खादी के कपड़े की गुणवत्ता में गुणात्मक वृद्धि होने से उसकी माँग में बढ़ोतरी भी हुई है। खादी के डिजायनर कपड़ों का भी निर्माण किया जा रहा है। युवा भी इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं। गांधीजी खादी को सिर्फ कपड़ा नहीं मानकर विचार व आंदोलन मानते थे। देखा जाये तो आज देश की 60 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम उम्र की है। अगर युवा वर्ग चाहे तो खादी के दिन बदल सकते हैं।
खादी निश्चित रूप से रोजगार का साधन बन सकता है, लेकिन इसके लिये खादी के कपड़ों के विपणन, ब्रांडिंग, प्रचार-प्रसार, खादी के प्रति लोगों की स्वीकार्यता बढ़ाने आदि से इसके दिन बेहतर हो सकते हैं। खादी के बलबूते सभी को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है। इसके लिए खादी के निर्माण को एक आंदोलन का रूप देने की जरूरत है। ऐसे में जब गाँव के सभी लोग खादी के निर्माण एवं विपणन में सहयोगी बन जायेंगे तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्वाभाविक रूप से मजबूती मिलेगी, जिससे देश में समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
इस क्रम में घर-घर में खादी के कपड़ों के निर्माण को बढ़ावा, युवाओं को इसके उपयोग के प्रति आकर्षित करने आदि की कोशिश करनी चाहिए जिस दिशा में सरकार काम कर भी रही है। अब आम आदमी को भी इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत है, तभी खादी एवं बुनकरों की अस्मिता बच सकती है तथा खादी उद्योग मजबूती से खड़ा हो सकता है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)