एक ऐसे समय में जब दुनिया भारतीय अर्थव्यवस्था का लोहा मान रही है और गरीबी मिटाने के सरकारी प्रयास कामयाब हो रहे हैं उस समय वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत की नकारात्मक तस्वीर निश्चित रूप से किसी साजिश का हिस्सा प्रतीत होती है।
इसे विडंबना ही कहेंगे कि एक ओर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भारत सरकार की प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण और खाद्य सुरक्षा योजनाओं की प्रशंसा कर रहे हैं तो दूसरी ओर वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत को पिछले साल की तुलना में सात पायदान नीचे दिखाया जा रहा है।
2022 के लिए 121 देशों की रैंकिंग को लेकर जारी इस रिपोर्ट में भारत 107वें पायदान पर है जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान 99वें पायदान पर है। इस सूचकांक में दक्षिण एशिया में सबसे बेहतर स्थिति श्रीलंका की है जिसे 64वां स्थान दिया गया है। नेपाल 81वें व बांग्लादेश 84वें स्थान पर है।
इस विडंबना का कारण है कि भुखमरी सूचकांक जिन चार संकेतकों के आधार पर तैयार किया जाता है उनमें तीन बच्चों से जुड़े हैं जो कि संपूर्ण आबादी की जानकारी नहीं देते। चौथा और सबसे महत्वपूर्ण सूचकांक कुल जनसंख्या में कुपोषित आबादी का है। इस सूचकांक को भी 138 करोड़ वाले देश के मात्र 3000 लोगों के आधार पर तय किया गया है। यही कारण है कि भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को सिरे से नकार दिया।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2000 से हर साल वैश्विक भुखमरी सूचकांक जारी किया जाता है। इसका उद्देश्य है 2030 तक जीरो हंगर के लक्ष्य को हासिल करना। यह संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों में से एक है। यह सूचकांक भूख मापने के प्रचलित पैमाने कैलोरी की जगह माइक्रोन्यूट्रिएंट के आधार पर तय किया जाता है।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक की रिपोर्ट आते ही मोदी विरोधियों को सरकार को घेरने का मौका मिला गया। जिस यूपीए शासन काल में गरीबों के लिए आवंटित राशन को करोड़ों फर्जी राशन कार्डों के जरिए तस्करी करके नेपाल-बांग्लादेश पहुंचा दिया जाता था उसी यूपीए के मुख्य घटक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने ट्वीट किया कि – माननीय प्रधानमंत्री कुपोषण और भूख के असली मुद्दों को कब देखेंगे।
उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने पिछले साढ़े आठ साल में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में व्यापक सुधार किया है। राशन कार्डों को आधार संख्या से जोड़ने की प्रक्रिया में 4.7 करोड़ राशन कार्ड फर्जी पाए गए। अब तक 20 करोड़ से अधिक राशन कार्ड आधार से जोड़े जा चुके हैं। प्रत्येक उचित दर की दुकान पर प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीन लगा दी गई है ताकि लाभार्थी के अलावा दूसरा व्यक्ति राशन न ले सके। इससे सब्सिडी वाले अनाज की कालाबाजारी खत्म हो गई।
आज 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी जनसंख्या राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के दायरे में है। इस आधार पर 81.35 करोड़ लोगों को रियायती दर पर अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है। वन नेशन वन राशन कार्ड लागू होने के बाद अब लाभार्थी अपना अनाज अपने आवास के नजदीक या अपनी पसंद की राशन की दुकान से ले सकते हैं।
इसके अलावा मोदी सरकार कोविड 19 से प्रभावित गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए हर महीने पांच किलो खाद्यान्न मुफ्त में उपलब्ध करा रही है। इतना ही नहीं मोदी सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूं-चावल के अलावा मोटे अनाजों, दालों व खाद्य तेल को भी वितरित करने की योजना पर काम कर रही है ताकि कुपोषण से मुक्ति मिले। इससे न सिर्फ फसल विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा बल्कि गेहूं-चावल के पहाड़ से भी मुक्ति मिलेगी।
रिपोर्ट में जिस ढंग से श्रीलंका को 64वें पायदान पर रखा गया है वह आश्चर्यचकित करने वाला है। उल्लेखनीय है कि चीन के हस्तक्षेप के कारण श्रीलंका लंबे समय से राजनीतिक-आर्थिक अस्थिरता से गुजर रहा है। वहां खाद्यान्न व दूसरी जरूरी वस्तुओं की ऊंची कीमतों के चलते जन विद्रोह की स्थिति आ गई थी। भारत द्वारा आपूर्ति की गई खाद्य सामग्री से स्थिति नियंत्रित हुई। पाकिस्तान भी महंगाई से जूझ रहा है। इससे रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर अपने आप सवाल उठने लगे हैं।
विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की हालिया रिपोर्ट भी वैश्विक भुखमरी सूचकांक पर सवाल खड़े कर रही हैं। पिछले दिनों विश्व बैंक के अध्यक्ष ने माना था कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने गरीब और जरूरतमंद लोगों को जिस प्रकार से समर्थन दिया वह असाधारण है। अभी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी भारत की डिजिटल इंडिया मुहिम की प्रशंसा करते हुए प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण योजना को अनुकरणीय बताया।
समग्रत: एक ऐसे समय में जब दुनिया भारतीय अर्थव्यवस्था का लोहा मान रही है और गरीबी मिटाने के सरकारी प्रयास कामयाब हो रहे हैं उस समय वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत की नकारात्मक तस्वीर निश्चित रूप से किसी साजिश का हिस्सा प्रतीत होती है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)