योगी सरकार की कार्यशैली दिखाती है कि यूपी के अच्छे नहीं, बहुत अच्छे दिन आने वाले हैं !

योगी आदित्यनाथ ने चंद दिनों में ही अपनी कार्यशैली से सबको प्रभावित किया है । उन्होंने अब तक जिन बड़ी समस्याओं पर गौर किया है, वह हैं – किसानों की क़र्ज़माफ़ी समेत उनकी अन्य समस्याओं के समाधान की दिशा में कदम उठाना, उत्तर प्रदेश के शिक्षा तंत्र की एक बड़ी समस्या, 10-12वीं की परीक्षा में अब तक होती आई बेतहाशा नक़ल को रोकना । कार्यालयों में गुटखा, तंबाकू पर प्रतिबंध लगाना एवं सभी मंत्रियों एवं अधिकारियों के संपत्ति का ब्यौरा माँगना।  उनका यह  तेवर दर्शाता है कि पुरानी कार्यसंस्कृति के दिन अब लद गए हैं । उनके कुछ ही दिनों के कार्यों को देखकर यह साफ़ है कि यूपी के ‘अच्छे नहीं’ बल्कि ‘बहुत अच्छे दिन आने वाले हैं ।’

योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बने हुए अभी बमुश्किल एक महीने भी नहीं हुए हैं और उन्होंने अपनी कार्यशैली से यह संदेश दे दिया है कि अब उत्तर प्रदेश को ‘उत्तम प्रदेश’ बनने से कोई भी नहीं रोक सकता । उत्तर प्रदेश की साक्षर और अनपढ़ दोनों तरह की जनता में अपनी तरह की एक नई उम्मीद सी जगी है । जो लोग अब तक यह सोच लिए जी रहे थे कि ‘यूपी का कुछ नहीं हो सकता है।’ उन्हें भी आशा की किरण योगी के रूप में दिख रही है ।

लेकिन, कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कि अब भी योगी को अच्छा व्यक्ति तक मानने से परहेज कर रहे हैं । मैं आपको बताता चलूँ कि ये वही तथाकथित बुद्धिजीवी लोग हैं, जो मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पूर्व यह कहा करते थे – ‘पहली बात तो मोदी कभी प्रधानमंत्री बनेंगे नहीं और यदि बने..तो अनर्थ हो जायेगा । धरती  बंजर हो जाएगी, बारिश बंद हो जायेगी, अकाल पड़ जाएगा, मुर्गियां अंडा देना छोड़ देंगी, हर तरफ नफरत ही नफरत होगी, असहिष्णुता फैलेगी, मुसलमानों को काट दिया जायेगा या उन्हें पकिस्तान भेज दिया जायेगा, आदि इत्यादि ।’

परन्तु, मोदी सरकार को तीन साल होने को हैं, लेकिन कुछ एक ‘आयातित’ घटनाओं (जिसमें कि असहिष्णुता, अभिव्यक्ति के नाम पर देशद्रोह और छात्रों की मौत तक का फायदा उठाने की घृणित कोशिश शामिल है) को यदि छोड़ दें, तो कुछ भी ऐसा नही हुआ जैसा कि इन्होंने बताया था । यह घटनाएं भी इन्हीं की रची हुई साजिशें थीं । कई बार सोचकर दया आती है कि जो साहित्यकार और विचारक  एक साल या दो साल तक आगे का नही देख पाते हैं, वह भविष्य देखने का दम्भ कैसे भर लेते  हैं ।

खैर, अब मसला योगी के ऊपर जनता के विश्वास का है । अब धीरे -धीरे जनता यह जान रही है कि योगी की छवि वह नहीं है, जो कि गढ़ी गई है । उनकी छवि वह भी है, जो पिछले दिनों उनके ‘परिवार’ के रूप में पूरे देश ने टीवी पर देखा । साधारण माँ-बाप, औसत दर्जे का गाँव, एकदम सामान्य घर, घास काटती हुई बहन आदि । यह सभी दृश्य यह बताते हैं कि यह किसी पाँच बार के सांसद के परिवार के तो नहीं हो सकते ! इसके अलावा उनके गोरखपुर आश्रम में ‘दलित, वंचित और सवर्णों को एक साथ भोजन कराकर उनमें एक दूजे के प्रति सम्मान का भाव उपजाने का प्रयास हो’ या फिर वहीँ पर आश्रम में स्थापित ‘हॉस्पिटल में सबके लिए इलाज की एकसमान व्यवस्था हो ।’ यह बातें दर्शाती हैं कि योगी का चेहरा सिर्फ वह नही है, जो उनके प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर मीडिया ने गढ़ा है, बल्कि वास्तविकता उससे बहुत अलग है ।

मुसलामानों से अब तक तमाम पार्टियाँ इस बात के लिए वोट मांगती रहीं  कि तुम हमें वोट दोहम तुम्हें मनमानी करने का अभयदान देंगे अगर देखा जाये तो अपनी कुछ जायज-नाजायज मांगों को वोट के दम पर मनवा लेने के अलावा सत्तर साल के इतिहास में और क्या मिला मुसलामानों को ? अगर 2011 की जनगणना की माने तो देश में हर चौथा ‘गरीब’ मुसलमान है और तलाकशुदा महिलाओं की बात करें तो देश में अस्सी फीसदी तलाकशुदा महिलायें मुसलमान हैं ।

इसी तरह यूपी में हर क्षेत्र की अपनी समस्याएं है । लेकिन, पिछली सरकारों ने पीड़ितों, वंचितों, दलितों, शोषितों और हासिये पे खड़े आदमी के नाम पर ऐसे-ऐसे लोगों को पदारूढ़ किया, जो गुंडे, मवाली, दस्यु सरगना आदि थे । जिस कारण नई पीढ़ी अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक न बनकर इनके जैसा बनना चाहती थी; क्योंकि प्रदेश के हर वर्ग में उन्हीं की इज्जत थी, मांग थी, पूछ थी ।

उम्मीद है, अब यह मिथक टूटेगा और योगी उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी को दूर करने के लिए सुरक्षित माहौल बनाएंगे ।  लोगों की सुरक्षा के प्रति उत्तरदायी बनेंगे एवं सुशासन कायम करेंगे । जैसा कि कहावत है कि “पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं।” योगी ने भी चंद दिनों में ही अपनी कार्यशैली से सबको प्रभावित किया है । उन्होंने अब तक जिन बड़ी समस्याओं पर गौर किया है, वह हैं – उत्तर प्रदेश के शिक्षा तंत्र की एक बड़ी समस्या, 10-12वीं की परीक्षा में अब तक होती आई बेतहाशा नक़ल को रोकना । कार्यस्थलों पर गुटखा, तंबाकू पर प्रतिबंध एवं सभी मंत्रियों एवं अधिकारियों के संपत्ति का ब्यौरा माँगना। इसके अलावा उनका यह आदेश है कि ‘उत्सव के नाम पर उपद्रव बर्दाश्त नहीं किया जायेगा ।’ उनका यह  तेवर दर्शाता है कि पुरानी कार्यसंस्कृति के दिन अब लद गए हैं । उनके कुछ ही दिनों के कार्यों को देखकर यह साफ़ है कि यूपी के ‘अच्छे नहीं’ बल्कि “बहुत अच्छे दिन आने वाले हैं ।”

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं। लेख में प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)