बैंकिंग उद्योग किसी भी देश में अर्थ जगत की रीढ़ माना जाता है। बैंकिंग उद्योग में आ रही परेशानियों का निदान यदि समय पर नहीं किया जाता है तो आगे चलकर यह समस्या उस देश के अन्य उद्योगों को प्रभावित कर, उस देश के आर्थिक विकास की गति को कम कर सकती है। इसलिए पिछले 8 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने बैंकों की लगभग हर तरह की समस्याओं के समाधान हेतु कई ईमानदार प्रयास किए हैं।
वैश्विक स्तर पर कई विकसित देशों में मुद्रा स्फीति में हो रही लगातार वृद्धि एवं इन देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार की जा रही वृद्धि के कारण इन देशों में आने वाली सम्भावित मंदी के बीच भारतीय रिजर्व बैंक ने 26वां वित्तीय स्थिरता प्रतिवेदन 29 दिसम्बर 2022 को जारी किया। इस प्रतिवेदन में भारतीय बैंकों की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ बताई गई है। केंद्र सरकार द्वारा लिए गए कई आर्थिक निर्णयों के चलते देश में न केवल आर्थिक गतिविधियों में तेजी से सुधार होता दिख रहा है बल्कि वित्तीय स्थिरिता की स्थिति में भी लगातार सुधार दृष्टिगोचर है।
दरअसल, बैंकिंग उद्योग किसी भी देश में अर्थ जगत की रीढ़ माना जाता है। बैंकिंग उद्योग में आ रही परेशानियों का निदान यदि समय पर नहीं किया जाता है तो आगे चलकर यह समस्या उस देश के अन्य उद्योगों को प्रभावित कर, उस देश के आर्थिक विकास की गति को कम कर सकती है। इसलिए पिछले 8 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने बैंकों की लगभग हर तरह की समस्याओं के समाधान हेतु कई ईमानदार प्रयास किए हैं।
गैरनिष्पादनकारी आस्तियों से निपटने के लिए दिवाला एवं दिवालियापन संहिता लागू की गई है। देश में सही ब्याज दरों को लागू करने के उद्देश्य से मौद्रिक नीति समिति बनायी गई है। साथ ही, केंद्र सरकार ने इंद्रधनुष योजना को लागू करते हुए, सरकारी क्षेत्र के बैंकों को 3.10 लाख करोड़ रुपए से अधिक की पूंजी उपलब्ध करायी है।
साथ ही, दिनांक 30 अगस्त 2019 को देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने बैंकिंग क्षेत्र को और अधिक मज़बूत बनाए जाने के उद्देश्य से सरकारी क्षेत्र के बैंकों के आपस में विलय की घोषणा की थी। सरकारी क्षेत्र के बैकों की, समेकन के माध्यम से, क्षमता अनवरोधित (अनलाक) करने के उद्देश्य से ही सरकारी क्षेत्र के बैंकों के आपस में विलय की घोषणा की गई थी।
इन बैंकों के विलय में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि इनके विलय से किसी भी ग्राहक को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना हो, ये तकनीक के लिहाज से एक ही प्लैट्फ़ॉर्म पर हों, इन बैंकों की संस्कृति एक ही हो तथा इन बैंकों के व्यवसाय में वृद्धि दृष्टिगोचर हो।
वर्ष 2017 में भारत में सरकारी क्षेत्र के 27 बैंक थे लेकिन इनके आपस में विलय के बाद अब केवल 12 सरकारी क्षेत्र के बैंक रह जाएंगे। इस प्रकार देश में सरकारी क्षेत्र के बैंकों को अगली पीढ़ी के बैंकों का रूप दिया जा रहा है। उक्त विलय के बाद इन सरकारी क्षेत्र के बैंकों के बड़े हुए आकार ने इन बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि की है।
इन बैंकों की राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत उपस्थिति के साथ ही इनकी अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहुंच बन गई है। विलय के बाद इन बैंकों की परिचालन लागत में कमी आई है जिससे इनके द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों की लागत में भी सुधार हुआ है। इन बैंकों द्वारा बैंकिंग व्यवसाय हेतु, नई तकनीकी के अपनाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है जिससे इनकी उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार होता दिखाई दे रहा है। इन बैंकों की बाजार से संसाधनों को जुटाने की क्षमता में भी सुधार हुआ है।
उक्त 26वें वित्तीय स्थिरता प्रतिवेदन के अनुसार, भारत में समस्त वर्गीकृत वाणिज्यिक बैंकों में पूंजी पर्याप्तता अनुपात 31 मार्च 2022 को समाप्त अवधि में 16.7 प्रतिशत के सराहनीय स्तर पर पहुंच गया है। जबकि अंतरराष्ट्रीय मानदंडो के अनुसार, बैंकों में पूंजी पर्याप्तता अनुपात न्यूनतम 8 प्रतिशत (एवं 2.5 प्रतिशत के पूंजी कंज़र्वेटिव बफर को मिलाकर 10.5 प्रतिशत) होना बैंकों के लिए आवश्यक माना जाता है।
इसी प्रकार, भारत में वर्गीकृत वाणिज्यिक बैंकों की आस्तियों पर आय एवं इक्वटी पर आय भी इस अवधि में संतोषप्रद रही है, जिसके चलते पूंजी पर्याप्तता अनुपात में भी लगातार सुधार हो रहा है, जो मार्च 2020 में 14.7 प्रतिशत से बढ़कर सितम्बर 2020 में 15.8 प्रतिशत हो गया एवं मार्च 2021 में 16 प्रतिशत होकर मार्च 2022 में 16.7 प्रतिशत हो गया है।
वर्गीकृत वाणिज्यिक बैंकों में सकल गैरनिष्पादनकारी आस्तियों एवं शुद्ध गैरनिष्पादनकारी आस्तियों का प्रतिशत भी 30 सितम्बर 2022 को समाप्त तिमाही में कम होकर 5.0 प्रतिशत (पिछले 7 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर) एवं 1.3 प्रतिशत (पिछले 10 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर) क्रमशः हो गया है। सकल गैरनिष्पादनकारी आस्तियां मार्च 2020 में 8.4 प्रतिशत, मार्च 2021 में 7.3 प्रतिशत एवं मार्च 2022 में 5.9 प्रतिशत रही हैं।
साथ ही, शुद्ध गैरनिष्पादनकारी आस्तियां मार्च 2020 में 3.0 प्रतिशत, मार्च 2021 में 2.4 प्रतिशत एवं मार्च 2022 में 1.7 प्रतिशत की रही हैं। कोरोना महामारी के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रभावित हुए ऋण खातेदारों को उनके द्वारा अदा किया जाने वाले ब्याज एवं किश्त की अदायगी में छूट प्रदान की थी, जिसके कारण भी गैर निष्पादनकारी आस्तियों में कमी दृष्टिगोचर हुई है।
परंतु उक्त बैंकों के प्रोविजन कवरेज अनुपात में सुधार हुआ है और यह मार्च 2021 के 67.6 प्रतिशत से बढ़कर 31 मार्च 2022 को 70.9 प्रतिशत हो गया है। इसका आश्य यह है कि इन बैंकों ने अपने खातों में गैरनिष्पादनकारी आस्तियों के लिए पर्याप्त मात्रा में प्रोविजन कर लिया है। यदि आगे आने वाले समय में इन गैरनिष्पादनकारी आस्तियों में समस्या होती है तो बैंकों को इस प्रकार की समस्या से निपटने में आसानी होगी।
देश की आर्थिक गतिविधियों में हो रहे सुधार के चलते भारतीय बैकों के व्यवसाय में भी अब तेज वृद्धि हो रही है। व्यक्तिगत ऋणराशि में लगभग 21 प्रतिशत की वृद्धि एवं उद्योग क्षेत्र में दहाई आंकड़े में वृद्धि दर्ज की गई है। अब तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऋण की मांग बढ़ रही है। महानगर, शहरी, अर्द्धशहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गृह ऋण की मांग में भी भारी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है।
हालांकि, बैकों की जमाराशियों में तो लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि होती दिख रही है वहीं 02 दिसम्बर 2022 को समाप्त एक वर्ष के समय में बैकों की ऋणराशि में 17.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। बैकों की ऋण राशि का स्तर 131.06 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया है और ऋण:जमा अनुपात 75 प्रतिशत के ऊपर हो गया है। इसका आश्य यह है कि बैकों में हो रही तेज व्यवसाययिक गतिविधियों के कारण इन बैकों की लाभप्रदता में भी वृद्धि दर और अधिक तेज होगी।
आपको याद होगा कि कुछ समय पूर्व ही भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकारी क्षेत्र की 11 बैंकों को इन बैंकों में खराब कर्ज के खतरनाक स्तर तक बढ़ जाने के कारण त्वरित सुधारात्मक ढांचे के तहत रखा था। पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकारी क्षेत्र के बैंकों को कम पूंजी आधार, गैर-पेशेवर प्रबंधन, हताश कर्मचारियों और भारी अक्षमताओं सहित कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।
केंद्र सरकार ने पिछले पांच वित्त वर्षों के दौरान (वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2020-21 तक) सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 3,10,997 करोड़ रुपये का अभूतपूर्व निवेश किया। इससे इन बैंकों को आवश्यक मदद मिली और उनकी ओर से किसी भी चूक की आशंका खत्म हो गई। इस प्रकार सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने तो सचमुच एक लम्बी दूरी तय कर ली है।
वित्तीय वर्ष 2017-18 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने जहां 85,390 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा दर्शाया था, वहीं वित्तीय वर्ष 2021-22 में इन बैंकों ने 66,539 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया है, और अब भारतीय अर्थव्यवस्था में दिखाई दे रहे उक्त संकेतों के चलते यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत में सरकारी क्षेत्र की बैंकों का लाभ एक लाख करोड़ के आंकड़े को पार कर सकता है।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)