वोटबैंक की राजनीति ने तमाम राजनीतिक दलों व नेताओं के चिंतन के दायरे को बहुत सीमित कर दिया है। केवल चुनावी चिंता से समाज का भला नही हो सकता। नरेंद्र मोदी भी चुनावी राजनीति में हैं। वह भी अपनी पार्टी को विजयी बनाने का प्रयास करते हैं। लेकिन इसी को समाज जीवन की सिद्धि नही मानते। वह इससे आगे तक की सोचते हैं। भावी पीढ़ियों और समाज के भविष्य के बारे में सोचते हैं। पंचतीर्थ से लेकर कबीर स्मारक तक उनके सभी प्रयास सामाजिक समरसता की प्रेरणा देने वाले हैं।
डॉ भीमराव राम जी आंबेडकर समरस समाज व शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण चाहते थे। इसके प्रति आजीवन समर्पित रहे। उनके नाम पर राजनीति खूब होती रही है। अनेक राजनीतिक दलों व नेताओं ने उनके नाम का खूब लाभ उठाया। किंतु अंततः ऐसे लोग एक सीमित दायरे से बाहर नहीं निकल सके। राजनीति में इनकी यात्रा ज्यादा लंबी नहीं रही।
सामाजिक समरसता के नाम से शुरू हुई इनकी यात्रा परिवार व जातिवाद पर आकर रुक गई। ऐसे नेता व राजनीतिक दल ज्यादा समय तक अपना प्रभाव कायम नहीं रख सके। ये जन अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रहे क्योंकि सबको साथ लेकर चलने की क्षमता इनमें नहीं थी।
नरेंद्र मोदी सरकार ने सबको लेकर चलने के महत्व को समझा। उन्होंने सबका साथ व सबका विकास का नारा दिया। इसको सरकार की नीति में प्रमुख स्थान दिया। इसके अनुरूप कार्य योजना बनाई गई। विगत आठ-नौ वर्षों में इनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया गया है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार भी पिछले पांच वर्षों से इस नीति पर अमल कर रही है। दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने अधिक तेजी से कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर बल दिया है।
‘सबका साथ, सबका विकास’ वस्तुतः डॉ आंबेडकर के विचारों की अभिव्यक्ति है। इस पर हुए अमल ने एक नया आयाम जोड़ा है। अब ‘सबका साथ, सबका विकास’ के साथ सबका विश्वास और सबका प्रयास भी जुड़ गया है।
डॉ आंबेडकर की प्रतिष्ठा में सर्वाधिक कार्य वर्तमान केंद्र सरकार ने किए हैं। इसमें उनके जीवन से संबंधित स्थलों का भव्य निर्माण भी शामिल है। इसके साथ ही दलित वर्ग के लोगों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ वंचित वर्ग को तक पहुंच रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर के जीवन से जुड़े पांच स्थानों को भव्य स्मारक का रूप प्रदान किया। इसमे लंदन स्थित आवास, उनके जन्मस्थान, दीक्षा स्थल, इंदुमिल मुम्बई और नई दिल्ली का अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान शामिल हैं। यह अपने ढंग का अद्भुत संस्थान है, जिसमें एक ही छत के नीचे डॉ आंबेडकर के जीवन को आधुनिक तकनीक के माध्यम से देखा-समझा जा सकता है।
गत वर्ष मोदी ने यह संस्थान राष्ट्र को समर्पित किया था। संयोग देखिये, इसकी कल्पना अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी और इसे पूरा नरेंद्र मोदी ने किया। बसपा के समर्थन से दस वर्ष चली यूपीए सरकार ने एक ईंट भी नहीं लगाई। वहीं मोदी ने अपने कार्यकाल में निर्धारित समयसीमा में इसका निर्माण कार्य पूरा कर दिया।
यह भी उल्लेखनीय है कि इन स्मारकों के निर्माण में भ्रष्टाचार आदि का कोई आरोप नहीं लगा न मोदी ने कहीं भी अपना नाम या मूर्ति लगवाने का प्रयास किया। वे चाहते हैं कि भावी पीढ़ी महापुरुषों और सन्तो से प्रेरणा ले, जिन्होंने पूरा जीवन समाज के कल्याण में लगा दिया। नरेन्द्र मोदी ने अपने शासन में भी, बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर की भावनाओं के अनुरूप भारत के निर्माण के लिए बिना भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने का कार्य किया है। मोदी सरकार ने अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक शासन की योजनाओं का लाभ पहुंचाया है।
यूपी की योगी सरकार भी नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में इसी तरह से कार्य कर रही है। लखनऊ में डॉ भीमराव आंबेडकर स्मारक एवं सांस्कृतिक केन्द्र का निर्मांण चल रहा है। इस सांस्कृतिक केंद्र में साढ़े सात सौ व्यक्ति की क्षमता के प्रेक्षागृह पुस्तकालय व शोध केंद्र, छायाचित्र दीर्घा व संग्रहालय, बैठकों व आख्यान के लिए बहुद्देशीय सभागार व कार्यालय का निर्माण किया जाएगा। साथ ही लैंडस्केपिंग डॉरमेट्री, कैफेटेरिया, पार्किंग व अन्य जनसुविधाएं विकसित की जाएंगी।
यह स्मारक एवं सांस्कृतिक केन्द्र डॉ भीमराव आंबेडकर के आदर्शों के अनुरूप स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य करेगा। उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से जुड़े हुए विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति समय पर भेजी जा रही है।
वर्तमान सरकार ने कार्यभार ग्रहण करने के बाद तय किया कि ग्राम पंचायत में जहां पर जिसका मकान बना है, उसको वहां पर उस जमीन का अधिकार दिलाएंगे। स्वामित्व योजना के तहत घरौनी के माध्यम से ग्राम पंचायत में हर व्यक्ति को उसके मकान अथवा झोपड़ी का अधिकार प्राप्त हो रहा है। इसके लिए ड्रोन सर्वे किया जा रहा है। स्वामित्व योजना के तहत सभी गांवों में अभियान चलाकर कार्य किया जा रहा है।
वोटबैंक की राजनीति ने तमाम राजनीतिक दलों व नेताओं के चिंतन के दायरे को बहुत सीमित कर दिया है। केवल चुनावी चिंता से समाज का भला नही हो सकता। नरेंद्र मोदी भी चुनावी राजनीति में हैं। वह भी अपनी पार्टी को विजयी बनाने का प्रयास करते हैं। लेकिन इसी को समाज जीवन की सिद्धि नही मानते। वह इससे आगे तक की सोचते हैं। भावी पीढ़ियों और समाज के भविष्य के बारे में सोचते हैं। पंचतीर्थ से लेकर कबीर स्मारक तक उनके सभी प्रयास सामाजिक समरसता की प्रेरणा देने वाले हैं।
नरेंद्र मोदी ने मार्क्सवादियों के ‘वर्ग संघर्ष’ की जगह ‘वर्ग सहयोग’ का सिद्धांत प्रतिपादित किया। मार्क्स ने केवल विचार प्रस्तुत किये थे। उन पर अमल नहीं किया था, स्वयं उनका क्रियान्वयन नहीं किया था। जबकि नरेंद्र मोदी ने वर्ग सहयोग का विचार बाद में प्रस्तुत किया, उसका क्रियान्वयन वह पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं। मोदी कहते हैं कि सक्षम वर्ग की जिम्मेदारी यह है कि वह वंचित वर्ग को गरीबी से ऊपर लाने में सहयोगी बने।
प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि सक्षम वर्ग की जिम्मेदारी यह है कि वह वंचित वर्ग को गरीबी से ऊपर लाने में सहयोगी बने। इस तरह वे सरकार, राजनीतिक पार्टियों और धनी वर्ग सभी की जिम्मेदारी तय करते हैं। नरेंद्र मोदी के शासन का यही आधार भी रहा है। सबका साथ सबका विकास की नीति को कथित धर्मनिरपेक्षता का विकल्प बनाया। यह बता दिया कि देश के मुसलमान वोटबैंक नहीं हैं। वह भी इंसान हैं। उनके जीवन की भी मूलभूत आवश्यकताएं है। सरकार का दायित्व है कि वह सभी का जीवन स्तर उठाने का प्रयास करे। मोदी की यह नीति प्रभावी और लोकप्रिय रही है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)