ग्राहकों की समस्याओं को देखते हुए सरकार ने ई-कॉमर्स नीति बनाने का फैसला किया है। इस नीति का मसौदा 6 महीनों के अंदर लागू कर दिया जायेगा। माना जा रहा है कि ऑनलाइन ई-कॉमर्स कारोबार और उपभोक्ताओं से जुड़ी विविध समस्याओं से जुड़े हर पहलू पर नीति बनाई जाएगी। सरकार चाहती है कि नई नीति में ई-कॉमर्स कारोबार और ग्राहकों के हितों का पूरा ध्यान रखा जाये। डाटा प्राइवेसी, कराधान, ऑनलाइन कारोबार से जुड़े तकनीकी पहलूओं, जैसे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, सर्वर को देश में ही रखने और कनेक्टिविटी आदि को इस नीति में जगह दी जायेगी।
निस्संदेह बीते सालों में ऑनलाइन खरीददारी की लोकप्रियता बढ़ी है, लेकिन इसके साथ ही इससे जुड़े खतरों में भी अभूतपूर्व इजाफा हुआ है। हाल के महीनों में ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा ग्राहकों को नकली या खराब उत्पादों की आपूर्ति करने की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इसमें दो राय नहीं है कि आज देश के दूर-दराज इलाकों में ग्राहक ऑनलाइन खरीददारी कर रहे हैं। खरीदे गये उत्पाद के ठीक होने पर कोई समस्या नहीं आती है, लेकिन उत्पाद के खराब या डिफ़ेक्टिव होने पर ग्राहक ठगा सा महसूस करते हैं, क्योंकि ई-कॉमर्स कंपनियां ऐसे उत्पादों को वापिस लेने में आना-कानी करती हैं या वापिस नहीं लेती हैं।
ग्राहकों की समस्याओं को देखते हुए सरकार ने ई-कॉमर्स नीति बनाने का फैसला किया है। इस नीति का मसौदा 6 महीनों के अंदर लागू कर दिया जायेगा। माना जा रहा है कि ऑनलाइन ई-कॉमर्स कारोबार और उपभोक्ताओं से जुड़ी विविध समस्याओं से जुड़े हर पहलू पर नीति बनाई जाएगी। सरकार चाहती है कि नई नीति में ई-कॉमर्स कारोबार और ग्राहकों के हितों का पूरा ध्यान रखा जाये। डाटा प्राइवेसी, कराधान, ऑनलाइन कारोबार से जुड़े तकनीकी पहलूओं, जैसे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, सर्वर को देश में ही रखने और कनेक्टिविटी आदि को इस नीति में जगह दी जायेगी।
इस संदर्भ में हुई पहली बैठक में फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, पेटीएम और मेकमाईट्रिप जैसे बड़े कारोबारी शामिल हुए। नीति बनाने के लिये एक समिति का गठन किया गया है, जो 5 महीने में अपनी रिपोर्ट देगी। उसके बाद एक महीने के अंदर समिति की सिफ़ारिशों को अमलीजामा पहनाया जायेगा।
देशी ई-कॉमर्स कंपनियाँ नई नीति को बनाने को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। उन्हें लग रहा है कि नये नियमों से विदेशी कंपनियों के लिये बाजार खुल जायेगा। पेटीएम का कहना है कि सरकार डब्ल्यूटीओ के दबाव में आकर ऐसी नीति बनाने की बात कह रही है। ई-कॉमर्स कंपनियों का कहना है कि भारत का खुला बाजार वैश्विक कंपनियों के लिए काफी फायदेमंद है, लेकिन देशी कंपनियों के लिये नहीं।
भले ही ई-कॉमर्स कंपनियाँ प्रस्तावित कानून का विरोध कर रही हैं, लेकिन इसमें दो राय नहीं है कि ई-कॉमर्स कंपनियों के द्वारा धोखाधड़ी करने के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में ई-कॉमर्स कंपनियों पर लगाम लगाने के लिये कड़े कानून बनाने की जरूरत है। वैसे, ई-कॉमर्स कंपनियाँ ग्राहकों को धोखा देने के अलावा कर की चोरी एवं ग्राहकों के निजी डाटा का दुरुपयोग करने का काम भी कर रही हैं। इन कंपनियों की संलिप्तता दूसरे गैरकानूनी कार्यों में भी है।
बहरहाल, अब तक भारत में इस संबंध में कोई स्पष्ट कानून नहीं होने के कारण ई-कॉमर्स कंपनियाँ अपने गुनाह की सजा पाने से बच जा रही थीं, लेकिन अब जब सरकार ने इस सम्बन्ध में क़ानून लाने की पहल की है, तो उनकी तकलीफ समझी जा सकती है। ई-कॉमर्स कंपनियाँ अपने फायदे के लिये ही यह कह रही हैं कि नये कानून बनने से विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों को फायदा होगा, जबकि देशी ई-कॉमर्स कंपनियों को नुकसान।
देखा जाए तो ई-कॉमर्स का खुदरा बाजार वर्ष 2026 तक 200 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जो कुल खुदरा बाजार का 12% होगा। गौरतलब है कि अभी कुल बाजार में इसकी हिस्सेदारी महज 2% है। ई-कॉमर्स कंपनियों का देश में होना जरूरी नहीं होता है। मसलन, विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियाँ भी भारत में विविध उत्पाद बेच रहे हैं। ऐसे में समस्याएँ बढ़ने पर आम आदमी का सरकार पर से भरोसा निश्चित रूप से कम होगा। साथ ही, सरकार को राजस्व नुकसान और नियामकीय समस्याओं का भी सामना करना पड़ेगा। कहा जा सकता है कि ई-कॉमर्स कंपनियों पर लगाम लगाने के लिये सरकार द्वारा कानून बनाने की ताजा पहल का स्वागत किया जाना चाहिए।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)