राहुल गांधी का कहना था कि हर आदमी के खाते में 25 हजार रुपए डाले जाएं। असल में यह केवल राहुल गांधी की भाषा नहीं है, बल्कि यह तो सदा से कांग्रेस की राजनीति का चरित्र ही रहा है। देश की अर्थव्यवस्था की कीमत पर लोकलुभावन राजनीति के अव्यावहारिक विचार को वे योजना कहते हैं। कांग्रेस की राजनीति का ढंग शुरू से यही रहा है कि लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत करने की बजाय उन्हें प्रलोभन दिए जाएं और उनकी बेबसी को वोट बैंक में तब्दील किया जाए।
कोरोना महामारी के संक्रमण के बढ़ते दायरे के साथ सरकार के प्रयासों और योजनाओं का भी दायरा बढ़ा है। मौजूदा आर्थिक, औद्योगिक और स्वास्थ्यगत संकट को देखते हुए केंद्र सहित राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर अधिक से अधिक काम करने का प्रयास कर रही हैं। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत सप्ताह राष्ट्र के नाम संबोधन में 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की। वित्त मंत्री द्वारा इस पैकेज के जिन प्रावधानों की जानकारी दी गयी है, उससे स्पष्ट है कि इसमें देश के सभी वर्गों के हितों को साधते हुए आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने की दृष्टि रखी गयी है।
सरकार के इस कदम की जनता ने सराहना की है लेकिन अफसोस है कि संकट के इस काल में भी विपक्ष अपनी सतही राजनीति से बाज नहीं आ रहा है। सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर महामारी से निपटने की दिशा में काम करने की बजाय विपक्षी दल ऐसे समय में भी आधारहीन बयानबाजी कर रहे हैं और सरकार के कार्यों में हमेशा की तरह मीनमेख निकालने में लगे हैं।
जब प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संबोधन देने जा रहे थे, उसके पहले ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने वीडियो संदेश जारी करके आर्थिक मदद की बिना मांगी सलाह दे डाली थी। लेकिन बाद में जब पीएम मोदी ने बड़ा पैकेज घोषित करके विपक्ष की बोलती बंद कर दी तो अब राहुल गांधी इस पैकेज की कमियां निकालने में समय बरबाद कर रहे हैं।
वायनाड सांसद राहुल गांधी ने मीडिया के ज़रिये यह मांग उठाई कि सरकार आर्थिक पैकेज की बजाय सीधे लोगों के खाते में पैसे भेजें। यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि लोकसभा चुनाव के समय राहुल गांधी जिस प्रकार से अपने प्रचार में न्याय योजना का ढोल पीट रहे थे, उसी निरर्थक और विचारहीन योजना को अब वे दोबारा भुनाने की फिराक में हैं। यह न्याय योजना कहीं से कहीं तक आम आदमी को स्वावलंबी बनाने का संदेश नहीं देती।
राहुल गांधी का कहना था कि हर आदमी के खाते में 25 हजार रुपए डाले जाएं। असल में यह केवल राहुल गांधी की भाषा नहीं है, बल्कि यह तो सदा से कांग्रेस का चरित्र ही रहा है। देश की अर्थव्यवस्था की कीमत पर लोकलुभावन राजनीति के अव्यावहारिक विचार को वे योजना कहते हैं। कांग्रेस की राजनीति का ढंग शुरू से यही रहा है कि लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत करने की बजाय उन्हें प्रलोभन दिए जाएं और उनकी बेबसी को वोट बैंक में तब्दील किया जाए।
यह दरी व कंबल बांटने की फितरत से प्रेरित फिरका परस्ती कांग्रेस की परंपरा रही है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि राहुल गांधी भी घूम फिरकर उसी बिंदु पर आकर लोगों के खातों में पैसा डलवाने की वकालत कर रहे हैं। मोदी को यह बेमतलब की सलाह देने की बजाय राहुल को यह बताना चाहिए कि उनकी पार्टी ने देश में 70 वर्षों तक राज किया लेकिन वह देश से बेरेाजगारी क्यों नहीं मिटा पाई? आखिर क्यों इतने समय में ना देश में आधारभूत ढांचा विकसित हुआ ना ही लोग आत्मनिर्भर बन पाए?
जहां तक खातों में पैसे जमा करने की बात है, इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन हर काम, हर क्रियान्वयन एक तयशुदा योजना के तहत होता है। राहुल गांधी इतने दिनों से नदारद थे और पीएम मोदी के संबोधन के समय अचानक कहीं से आकर ज्ञान बांटने लगे। उन्हें पता नहीं है कि मार्च में लॉकडाउन घोषित होने के बाद से ही मोदी सरकार देश के हर घर में महिलाओं के जन-धन खातों में 500 रुपए प्रति माह जमा करवा रही है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत भी लाभार्थियों को प्रति माह हजार रुपये के हिसाब से मई माह तक का पैसा खातों में प्राप्त हो रहा है। रसोई गैस की सब्सिडी भी सीधे खातों में ही आती है और किसान क्रेडिट योजना के तहत भी लाभांश खातों में ही आ रहा है।
ऐसा लगता है राहुल गांधी बिना किसी बात की जांच-पड़ताल, अध्ययन किए बिना अधकचरी जानकारी लेकर बोलना शुरू कर देते हैं। उनकी कोई तैयारी नज़र नहीं आती। राहुल गांधी यदि ऐसा सोचते हैं कि इस तरह एक ही बात की रट लगाकर वे सरकार पर दबाव बना लेंगे तो यह उनका बड़ा भ्रम है।
इसमें कोई शक नहीं कि इस समय देश मुश्किल दौर से गुज़र रहा है लेकिन ऐसे में सरकार को कोसने से काम नहीं चलेगा। विपक्ष को अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा। सरकार को सलाह देने से पहले राहुल गांधी को अपने सलाहकारों से यह पता करवा लेना चाहिये था कि पिछले दो महीनों में सरकार ने कितने जनहित के ऐलान किए हैं। जिस मनरेगा (महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी MGNREGA) का वे ठीक से नाम तक नहीं ले पाते हैं और संसद जैसी महत्वपूर्ण जगह इस योजना का गलत उच्चारण करके हंसी का पात्र बने थे, उसी मनरेगा को लेकर बीते सप्ताह दो बड़ी घोषणाएं सामने आईं हैं।
पहली घोषणा में केंद्र सरकार ने मनरेगा में मजदूरी बढ़ा दी। अब मजदूरों को रोज के हिसाब से 202 रुपये दिए जाएंगे, जो पहले 182 रुपये थे। इस संबंध में वित्त मंत्रालय अधिसूचना भी जारी कर चुका है। इस घोषणा से देश के करीब 14 करोड़ परिवार लाभान्वित होंगे। दूसरी घोषणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने करते हुए रोजगार का दायरा बढ़ा दिया है। इस योजना में उत्तर प्रदेश पूरे देश में अग्रणी है। यहां वर्तमान में प्रतिदिन 25 लाख लोगों को रोजगार मिलता है, अब यह संख्या बढ़कर 50 लाख होने वाली है। लेकिन इन सब घोषणाओं से बेखबर राहुल गांधी अपनी ढपली अपना राग अलापने में ही लगे हैं।
बीते शनिवार को दिल्ली के सुखदेव विहार क्षेत्र में उन्होंने प्रवासी मजदूरों से प्रायोजित बातचीत की और इसका प्रचार करके इसे भुनाना शुरू कर दिया। एक तरफ वे खुद कहते हैं कि कोरोना वायरस से रोकथाम के लिए सरकार अच्छा काम नहीं कर रही, दूसरी तरफ मजदूरों से बात करते हुए वे खुद ही नियमों की धज्जियां उड़ा रहे थे। वे मजदूरों के पास में बैठकर बात कर रहे थे और दूरी का ध्यान नहीं रखा।
राहुल की तरह ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अराजकता पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। पहले तो उन्होंने बंगाल में लॉकडाउन का सख्ती से पालन सुनिश्चित नहीं करवाया। लोगों की जांच करवाने में रुचि नहीं दिखाई। प्रधानमंत्री के साथ ऑनलाइन बैठक में वे मोबाइल चलाती नजर आईं। इतनी लापरवाही के बाद अब जब बंगाल में संक्रमण का दायरा बढ़ रहा है तो वह केंद्र के सिर पर ठीकरा फोड़ने में लग गईं हैं।
पीएम मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन के पहले उन्होंने भी केंद्र पर निशाना साधा और वित्तीय सहयोग ना मिलने की दुहाई दी। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि विपक्ष में राहुल गांधी, ममता बनर्जी जैसे लोग बैठे हैं जो महामारी के संकट में भी अपनी संकीर्ण मानसिकता से नहीं उबर पा रहे हैं और सतही राजनीति कर रहे हैं।
होना तो यह चाहिये कि आपदा के समय विपक्ष सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में सहयोग करे लेकिन यह विपक्ष संकट में भी सत्ता की चाबी की तलाश कर रहा है, जो कि बहुत घृणित व शर्मनाक है। जहां तक केंद्र सरकार की नीतियों की बात है, सरकार ने अपने 20 लाख करोड़ का पूरा हिसाब जनता के सामने खोलकर रख दिया है। जल्द ही कई क्षेत्रों के लिए घोषित राहत पैकेज का असर सामने आता दिखाई देगा और भारत न केवल इस महामारी से बाहर आएगा बल्कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनकर विश्व पटल पर उठ खड़ा होगा।
अंततः कहना गलत नहीं होगा कि सरकार जहां इस संकट में आम आदमी और अर्थव्यवस्था दोनों को बचाने में जुटी है, वहीं विपक्ष विशेषकर कांग्रेस इस समय भी अपनी राजनीति चमकाने में मशगूल है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)