आम बजट में भारतीय रिजर्व बैंक को एनबीएफसी को विनियमित करने का अधिकार दिया गया है। इससे बैंक और एनबीएफसी एक नियामक के दायरे में आ गये हैं। अब केंद्रीय बैंक, एनबीएफसी के किसी निदेशक को हटाकर निदेशक मंडल की शक्ति अपने हाथ में ले सकता है। एनबीएफसी के अंकेक्षक को भी रिजर्व बैंक के नियामकीय दायरे में रखा गया है। साथ ही, अब रिजर्व बैंक एक एनबीएफसी का दूसरे के साथ एकीकरण, पुनर्गठन या उन्हें कई इकाइयों में बांट सकता है। इन सुधारों से एनबीएफसी के लेनदार और जमाकर्ता दोनों को राहत मिलेगी और उनके वित्तीय स्थायित्व में बढ़ोतरी होगी।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अनुमान जताया है कि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की नकदी की समस्या जल्दी ही खत्म हो जायेगी, क्योंकि केंद्रीय बैंक, बैंकिंग प्रणाली में भारी मात्रा में पूंजी डाल रहा है। दास के अनुसार मामले में बैंकों के सकारात्मक रुख अपनाने से भी एनबीएफसी पर मंडरा रहा नकदी संकट का खतरा कम होने लगा है। दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक शीर्ष 50 एनबीएफसी पर बारीक नजर रख रहा है, ताकि जरूरत पड़ने उन्हें मदद उपलब्ध कराई जा सके।
भारतीय रिजर्व बैंक, परिसंपत्तियों की खरीद के लिए और एनबीएफसी को कर्ज देने के लिए बैंकों को अतिरिक्त नकदी प्रदान करेगा। गौरतलब है कि आम बजट में आंशिक तौर पर एनबीएफसी की उच्च गुणवत्ता वाली परिसंपत्तियों की गारंटी दी गई है और भारतीय रिजर्व बैंक ने इस क्षेत्र के लिए नकदी उपलब्ध कराने के लिये एक अप्रत्यक्ष खिड़की खोली है, जिसके तहत, बैंक, वैसे एनबीएफसी को पूंजी मुहैया करायेँगे, जो डूबने के कगार पर हैं। मौजूदा समय में छोटे व मध्यम औद्योगिक क्षेत्र में स्थायी उपभोग मांग और पूंजी निर्माण में एनबीएफसी अहम भूमिका निभाती हैं। इसलिए, अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए इन्हें सुचारु रूप से पूँजी देना जरूरी है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अच्छी वित्तीय स्थिति वाली एनबीएफसी की 1 लाख करोड़ रुपये की उच्च रेटिंग वाली परिसंपत्तियों को खरीदें, इसके लिये सरकार उन्हें प्रोत्साहित करेगी। वित्त वर्ष 2020 में विभिन्न बैंक एनबीएफसी की 1 लाख करोड़ रुपये की परिसंपत्तियां खरीद सकेंगे। हालाँकि, बैंक पहले से ही एनबीएफसी की परिसंपत्तियां खरीद रहे हैं, ताकि नकदी संकट झेल रही एनबीएफसी को कारोबार में बने रहने के लिए तरलता की कमी नहीं हो।
बैंकों के बॉन्ड होल्डिंग नियमों में बदलाव करते हुए कहा गया है कि जमा आधार के एक प्रतिशत के बराबर सरकारी प्रतिभूतियों को अब बेसल-3 नियम के तहत उच्च गुणवत्ता वाली परिसंपत्तियां मानी जायेंगी। इससे बैंकों के पास उधार देने के लिए 1,34,000 करोड़ रुपये होंगे, जिसका इस्तेमाल बैंक एनबीएफसी क्षेत्र को कर्ज देने के लिये कर सकेंगे।
आम बजट में भारतीय रिजर्व बैंक को एनबीएफसी को विनियमित करने का अधिकार दिया गया है। इससे बैंक और एनबीएफसी एक नियामक के दायरे में आ गये हैं। अब केंद्रीय बैंक, एनबीएफसी के किसी निदेशक को हटाकर निदेशक मंडल की शक्ति अपने हाथ में ले सकता है। एनबीएफसी के अंकेक्षक को भी रिजर्व बैंक के नियामकीय दायरे में रखा गया है। साथ ही, अब रिजर्व बैंक एक एनबीएफसी का दूसरे के साथ एकीकरण, पुनर्गठन या उन्हें कई इकाइयों में बांट सकता है। इन सुधारों से एनबीएफसी के लेनदार और जमाकर्ता दोनों को राहत मिलेगी और उनके वित्तीय स्थायित्व में बढ़ोतरी होगी।
लब्बोलुबाव के रूप में कहा जा सकता है कि एनबीएफसी की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में अहम भूमिका है। मौजूदा समय में एनबीएफसी छोटे, मध्यम एवं बड़े स्तर के कारोबारियों को कर्ज उपलब्ध कराने का काम कर रहा है। एनबीएफसी को मजबूत करने से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती तो मिलेगी ही, साथ ही साथ उन कारोबारियों को भी बड़ी राहत मिलेगी, जिन्हें कड़ी शर्तों की वजह से बैंक से कर्ज नहीं मिल पा रहा है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)