लोक कल्याणकारी राज्य में लोक की चिंता राज्य की चिंता होती है। लोक का सुख-दुःख, कष्ट, पीड़ा सरकार से सीधे जुड़ी होती है। पिछली सरकारों की तुलना में अगर वर्तमान सरकार का कार्यकाल देखें तो गत ढाई साल में इस देश ने कई बदलाव देखे हैं। लेकिन एक बड़ा बदलाव यह दिखा है कि अब सरकार के मंत्री और मंत्रालय जनता के ज्यादा करीब उपस्थिति बना पाने में सफल हुए हैं। डिजिटल इण्डिया के प्रसार और सोशल मीडिया पर सरकार की मजबूत उपस्थिति ने सरकार और जनता के बीच की खाई को कम करने का काम किया है। दोनों के बीच की यह खाई दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है।
भारत 125 करोड़ नागरिकों का लोकतंत्र है। यहाँ 125 करोड़ लोगों के माथे पर ताज है। 125 करोड़ लोग तंत्र के वाहक हैं। ऐसे में इस लोक द्वारा व्यवस्थित तंत्र में अगर चुनी हुई सरकार हर व्यक्ति के साथ खड़ी होने की अधिकतम गुंजाइश पर खरी उतरने का प्रयास कर रही है तो इसके पीछे सुषमा स्वराज जैसे कर्तव्यनिष्ठ नेताओं की इच्छा शक्ति भी काम कर रही है। इस सरकार की पहुँच जन-जन तक है अथवा जन-जन की पहुँच इस सरकार तक है, यह पिछले ढाई वर्षों में साबित होता दिख रहा है। निश्चित तौर पर बीमार अवस्था में भी अपने दायित्वों के प्रति विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जिस तरह से काम करती नजर आ रही हैं, वह उस शपथ के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है, जो उन्होंने पदभार ग्रहण करते हुए ली थी।
वैसे तो कई मंत्रालय अपने जन-हितैषी कामकाज के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं, लेकिन इस दिशा में सर्वाधिक चर्चित और लोकप्रिय हुए चंद मंत्रालयों में से एक है विदेश मंत्रालय। जी हाँ, सुषमा स्वराज इस विभाग की मंत्री हैं। ट्वीटर आदि के माध्यमों पर लोगों से सीधा संवाद करने के लिए सुषमा स्वराज काफी चर्चित रहती हैं। ट्वीटर पर मिली तमाम शिकायतों, समस्याओं को समाधान तक पहुंचाने के लिए सुषमा स्वराज द्वारा त्वरित पहल किए जाने और समाधान देने के तमाम उदाहरण मौजूद हैं। हाल का ही एक उदाहरण बेहद मौजू और रोचक है। दरअसल तामिलनाडू के रहने वाले 48 वर्षीय जगन्नाथन सेल्वराज दुबई के सोनापुर में काम करते थे। ख़बरों के अनुसार गत दिनों दुबई के किसी अखबार ने उनको लेकर यह खबर प्रकाशित की थी कि भारत में उनकी माँ का देहांत हो गया था लेकिन उन्हें भारत आने की इजाजत नहीं मिल पाई। इसके लिए वे लगातार कोर्ट के चक्कर लगा रहे थे। उनके निवास से कोर्ट की दूरी लगभग 22 किलोमीटर थी। पैसे न होने की वजह से वे पैदल कोर्ट आते और जाते थे। इस बात की सूचना किसी माध्यम से विदेश मंत्रालय को लगी और इसपर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अस्वस्थ होने के बावजूद संज्ञान लिया। सुषमा स्वराज के संज्ञान में आने के बाद उन्होंने वहां के दूतावास आदि के माध्यम से इसकी जानकारी ली और फिर जगन्नाथन सेल्वराज को उनके तामिलनाडू स्थित घर लाने का काम किया। छ: दिसंबर को एक ट्वीट के माध्यम से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बताया कि हम उन्हें भारत ले आए हैं और उनके गाँव पहुंचा दिया है। विदेश मंत्री के इस ट्वीट को काफी सराहा गया और बड़ी संख्या में री-ट्वीट भी किया गया।
दरअसल यह एकमात्र उदहारण है, ऐसा बिलकुल नहीं कहा जा सकता है। विदेश मंत्रालय, खासकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के निजी पहल पर ऐसे अनेक मामले हैं जिनमे समस्या में फंसे लोगों को राहत और समाधान देने का काम किया गया। एक और उदाहरण देखें तो सितंबर 2016 में एक महिला ने सुषमा स्वराज को जोड़ते हुए ट्वीट में लिखा कि उनके चचेरे भाई यमन में पोर्ट पर बेहद बीमार हैं और उन्हें मदद की जरुरत है। इस ट्वीट को संज्ञान में लेकर विदेश मंत्री ने रक्षा मंत्रालय और नौसेना को सूचना दी जिससे यमन में सेवारत उस भारतीय को मदद मिल सकी। ऐसे एक नहीं सैकड़ों उदाहरण हैं जहाँ सुषमा स्वराज सोशल मीडिया के माध्यम से आम जन के करीब पहुँचने, उन्हें मदद पहुंचाने और उनके सुख-दुःख में खड़े होने के लिए प्रतिबद्ध नजर आई हैं।
हालांकि यह अलग बात है कि सुषमा स्वराज जब यह सबकुछ कर रही होती हैं तो उसकी उतनी चर्चा नहीं होती जितनी होनी चाहिए। लेकिन चर्चा से इतर अपने दायित्वों के प्रति वो सदैव समर्पित नजर आती हैं। चूँकि, सुषमा स्वराज भाजपा की पुरानी नेता हैं और भाजपा की बुनियाद पंडित दीन दयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित उस वैचारिक सिद्धांत पर टिकी है, जिसमे अन्त्योदय की अवधारणा निहित है। अन्त्योदय का अर्थ है, कतार के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए संसाधन उसी तरह से पहुंचे जिस तरह से कतार के पहले व्यक्ति तक पहुँच रहे हों। सुषमा स्वराज द्वारा की जा रही यह पहल उसी वैचारिक निष्ठा की परिणिति है। दरअसल प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में काम कर रही यह सरकार एक गतिशील, नवोन्मेषी, नवाचारी एवं गरीब-असहाय के हितों के लिए चौबीस घंटे पूरी निष्ठा से खड़ी रहने वाली सरकार है। जब विचारधारा व्यवहारिक न होकर महज दर्शन और आदर्शलोक तक सीमित होती हैं, तो उसे सरकार की नीतियों में ढाल पाना असंभव जैसा हो जाता है। लेकिन जब विचारधारा युगानुकुल और व्यवहारिक होती है, तो उसे नीतिगत रूप से लागू करना बेहद सरल हो जाता है। एकात्म मानववाद और अन्त्योदय की विचारधारा विकास के लक्ष्य को नीतिगत रूप से सरकार के कार्यों में सहजता से लागू कराने के दृष्टिकोण से व्यवहारिक है। चाहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली हो अथवा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की कार्यप्रणाली हो, सबके बीच एक साम्य नजर आएगा। यह साम्य एक विचारधारा की वजह से ही है। साम्यवाद और समाजवाद आदि तमाम विचारधाराएँ दुनिया के अलग-अलग देशों में सत्ता में आई लेकिन अपने लक्ष्यों में कामयाब नहीं हुईं और जनता का विशवास खो बैठीं। इसके पीछे मूल कारण यही था कि उन विचारधाराओं की व्यावहारिकता बेहद न्यूनतम थी। उनको सरकार की नीतियों में लागू कर पाना बेहद कठिन अथवा अव्यवहारिक था। लेकिन वर्तमान में जिस विचारधारा की सरकार केंद्र में चल रही है, वह व्यवहारिक एवं लागू की जाने योग्य वैचारिक सोच के साथ काम कर रही है।
भारत 125 करोड़ नागरिकों का लोकतंत्र है। यहाँ 125 करोड़ लोगों के माथे पर ताज है। 125 करोड़ लोग तंत्र के वाहक हैं। ऐसे में इस लोक द्वारा व्यवस्थित तंत्र में अगर चुनी हुई सरकार हर व्यक्ति के साथ खड़ी होने की अधिकतम गुंजाइश पर खरी उतरने का प्रयास कर रही है तो इसके पीछे सुषमा स्वराज जैसे कर्तव्यनिष्ठ नेताओं की इच्छा शक्ति भी काम कर रही है। इस सरकार की पहुँच जन-जन तक है अथवा जन-जन की पहुँच इस सरकार तक है, यह पिछले ढाई वर्षों में साबित होता दिख रहा है। निश्चित तौर पर बीमार अवस्था में भी अपने दायित्वों के प्रति विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जिस तरह से काम करती नजर आ रही हैं, वह उस शपथ के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है, जो उन्होंने पदभार ग्रहण करते हुए ली थी।
(लेखक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउन्डेशन में रिसर्च फेलो हैं एवं नेशनलिस्ट ऑनलाइन में संपादक हैं।)