भारतीय खेती की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि कुदरत का प्रकोप हो या मेहरबानी दोनों ही दशाओं में किसान बदहाल रहता है। लेकिन अब यह स्थिति ज्यादा दिन रहने वाली नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फसल बीमा से लेकर उपज की बिक्री तक का मुकम्मल उपाय करने में जुट गए हैं। दरअसल प्रधानमंत्री आने वाले वर्षों में कृषि उपजों की संभावित मांग को देखते हुए आजादी की 75वीं सालगिरह तक खाद्यान्न उत्पादन दोगुना कर दुनिया के बाजार पर भारतीय खाद्य उत्पादों का कब्ज़ा जमा देना चाहते हैं। लेकिन यह तभी संभव होगा जब खेती-किसानी फायदे का सौदा बने। इसीलिए प्रधानमंत्री ने फसल बीमा के बाद राष्ट्रीय कृषि बाजार, वर्चुअल व डिजिटल प्लेटफार्म शुरू करने की घोषणा की है। कृषि प्लेटफार्म के तहत सरकार देश की सभी 585 थोक मंडियों को 2018 तक चरणबद्ध तरीके से एकीकरण कर देगी। इससे किसानों को देश की संभी मंडियों के भाव ऑनलाइन और मोबाइल पर मिलने लगेंगे और वे देश की किसी भी मंडी में अपनी उपज बेचने के लिए स्वतंत्र होंगे। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि कृषि उपजों की खरीद-बिक्री पर प्रभुत्व जमाए आढ़तियों-बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी।
खेती-किसानी की आउटसोर्सिंग ने 2007-08 में जोर पकड़ा जब अप्रत्याशित रूप से बढ़ी हुई कीमतों के कारण दुनिया के 37 देशों में खाद्य दंगे भड़क उठे थे। इसी मौके का फायदा उठाने के लिए निजी कपनियों, सट्टेबाजों और निवेश बैंकों ने “भूमि हड़प” के फार्मूले पर काम करना शुरू किया जिसका नतीजा यह है कि छोटे व सीमांत किसान तेजी से भूमिहीन श्रमिक बन रहे हैं। यह भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हो रहा है। आज यूरोप में तमाम तरह की सब्सिडी के बावजूद हर मिनट में एक किसान खेती-किसानी को अलविदा कह रहा है। भारत में भी स्थिति कमोबेश ऐसी ही है।
दरअसल प्रधानमंत्री आने वाले वर्षों में कृषि उपजों की संभावित मांग को देखते हुए आजादी की 75वीं सालगिरह तक खाद्यान्न उत्पादन दोगुना कर दुनिया के बाजार पर भारतीय खाद्य उत्पादों का कब्ज़ा जमा देना चाहते हैं। लेकिन यह तभी संभव होगा जब खेती-किसानी फायदे का सौदा बने। इसीलिए प्रधानमंत्री ने फसल बीमा के बाद राष्ट्रीय कृषि बाजार, वर्चुअल व डिजिटल प्लेटफार्म शुरू करने की घोषणा की है। कृषि प्लेटफार्म के तहत सरकार देश की सभी 585 थोक मंडियों को 2018 तक चरणबद्ध तरीके से एकीकरण कर देगी। इससे किसानों को देश की संभी मंडियों के भाव ऑनलाइन और मोबाइल पर मिलने लगेंगे और वे देश की किसी भी मंडी में अपनी उपज बेचने के लिए स्वतंत्र होंगे। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि कृषि उपजों की खरीद-बिक्री पर प्रभुत्व जमाए आढ़तियों-बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी।
इन समस्याओं के समाधान के मद्देनज़र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूर की सोच रहे हैं। खेती-किसानी को फायदे का सौदा बनाने से न केवल देश का समावेशी विकास होगा बल्कि कृषि उपजों के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय बाजार पर आसानी से कब्जा भी जमाया जा सकेगा। इससे उन आलोचकों को भी जवाब मिल गया है जो मोदी सरकार पर कार्पोरेट घराने के लिए काम कराने का आरोप लगाते रहे हैं। गौरतलब है कि जहां एक ओर उदारीकरण समर्थक किसानों के खेती छोड़ने को विकास प्रक्रिया का अभिन्न अंग बताते हैं, वहीं कई वैश्विक संस्थाओं का मानना है कि विकासशील देशों के करोड़ों ग्रामीणों का कल्याण कृषि क्षेत्र के विकास के बिना संभव नहीं है। विश्व बैंक के मुताबिक गरीब लोगों के लिए कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोत्तरी अन्य क्षेत्रों में निवेश के मुकाबले चार गुना अधिक कारगर है।
पूर्वी एशियाई देशों में पिछले 15 वर्षों में कृषि क्षेत्र का विकास गरीबी दूर करने में सहायक सिद्ध हुआ है। भारत के 85 फीसदी किसान छोटी जोत वाले हैं और अनुभवों से यह प्रमाणित हो चुका है कि छोटे किसानों की सहायता से आर्थिक विकास के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है। यहां वियतनाम का उदाहरण प्रासंगिक है। 1979 में यहां की 58 फीसदी जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे गुजर बसर कर रही थी, 2009 में यह अनुपात घट कर मात्र 15 फीसदी रह गया। इस उपलब्धि को वियतनाम ने अपने छोटे किसानों के बल पर हासिल किया है। गौरतलब है कि आज भी वियतनाम की 73 फीसदी जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में रहती है और कृषि आय का प्रमुख साधन है।
उपर्युक्त प्रकार से स्पष्ट है कि भारत की छोटी जोतों में वैश्विक खाद्यान्न आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता है। लेकिन यह तभी संभव होगा जब किसानों की भूमि, पानी, बीज, उर्वरक, कीटनाशक, मशीनरी तक पहुंच बने और स्थानीय स्तर पर वित्तीय सुविधाएं सुलभ हों। इसके अलावा परिवहन के साधनों के साथ-साथ किसानों तक नवीनतम तकनीक पहुंचाई जाए। इसी प्रकार कृषि विपणन ढांचे में सुधार किया जाए ताकि किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य मिल सके। सुखद यह है कि सरकार इस दिशा में दूरगामी सोच से युक्त होकर गंभीरतापूर्वक कदम बढ़ा रही है। इस दिशा में कई एक पहले की गई हैं, जिनका असर सामने आ रहा है और समय के साथ इनका पूरा प्रभाव जरूर दिखाई देगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)