जीएसटी परिषद द्वारा कंपोज़ीशन सीमा के मामले में दी गई रियायत कारोबारियों के लिये उत्साहवर्धक है। ऐसा लगता है कि जीएसटी का फिजूल भय कारोबारियों के दिलों-दिमाग से निकल गया है और वे स्वेच्छा से कर जमा कर रहे हैं, जिसकी झलक जीएसटी रिटर्न के बढ़े मासिक आंकड़ों में देखने को मिल रही है।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में किये जा रहे सुधारों के कारण जीएसटी रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, जिसका पता वित्त मंत्रालय द्वारा संसद में पेश किये गये आंकड़ों से चलता है। आंकड़ों के अनुसार पंजीकृत कंपनियों/कारोबारियों में से 71.25 प्रतिशत ने नवंबर, 2018 में जीएसटी मासिक रिटर्न दाखिल किया था, जबकि जुलाई, 2018 में यह 80 प्रतिशत था।
आंकड़ों को सीधे तौर पर देखने से ऐसा लगता है कि अनुपालन में पहले से कमी आई है, लेकिन विश्लेषण से पता चलता है कि तत्काल मासिक अनुपालन में सुधार आ रहा है। उदाहरण के तौर पर नवंबर, 2018 में 71.25 प्रतिशत कंपनियों ने अपना मासिक रिटर्न दाखिल किया था, जिसमें पिछले महीनों में रिटर्न नहीं दाखिल करने वाले लोगों की संख्या भी शामिल थी। इस तरह जीएसटी मासिक रिटर्न के आंकड़ों में उस महीने में दाखिल किये गये रिटर्न के अलावा पहले के महीनों के आंकड़े भी शामिल हैं, पर बीते कुछ महीनों से हर महीने रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।
रिटर्न दाखिल करने को दो तरीकों से परिभाषित किया जा सकता है। पहला, “तय तिथि तक दाखिल किया जाने वाला रिटर्न” और दूसरा “आगामी महीनों में दाखिल किया जाने वाला रिटर्न”। “तय तिथि तक दाखिल किये गये रिटर्न” के आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पहले कुछ महीनों में अनुपालन बेहतर रहा। हाल के महीनों में भी इसमें बढ़ोतरी हुई।
नवंबर में अनुपालन प्रतिशत सबसे बेहतर रहा। दिसंबर में योग्य करदाताओं में से 73.6 प्रतिशत ने रिटर्न दाखिल किया। यहां अनुपालन को जीएसटीआर-3 बी रिटर्न के रूप में परिभाषित किया गया है, जो योग्य जीएसटी करदाताओं के प्रतिशत के रूप में दिखाया गया है।
दरअसल, किसी भी महीने में देरी से रिटर्न दाखिल करने का विकल्प फिलहाल कारोबारियों के पास है। चूँकि, विलंब से रिटर्न दाखिल करने पर कारोबारियों को जुर्माना की जगह न्यून ब्याज देना होता है, इसलिये, कुछ कारोबारी हर महीने रिटर्न दाखिल नहीं करते हैं। उदाहरण के लिये जीएसटीआर-3 बी के तहत जुलाई, 2017 का मासिक रिटर्न दिसंबर, 2018 में भी दाखिल किया जा सकता है। इतना ही नहीं इसे मार्च, 2019 के पहले तक भी दाखिल किया जा सकता है।
हालाँकि, ऐसी सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद, कारोबारी अब हर महीने रिटर्न दाखिल करने लगे हैं, ताकि सरकार का उनपर भरोसा बना रहे और बेहतर कर जमा करने के उम्दा ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर बैंक उन्हें कर्ज देने में प्राथमिकता दे। साथ ही, बेवजह ब्याज के भुगतान से भी बचा जाये। वैसे, इसका सबसे बड़ा कारण जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया का विगत कुछ महीनों से सरल होना है।
गौरतलब है कि फिलवक्त मासिक रिटर्न के आंकड़ों में कंपोजिशन डीलरों द्वारा दाखिल किये जा रहे रिटर्न को भी शामिल नहीं किया जा रहा है। अगर इनके द्वारा दाखिल किये जा रहे रिटर्न के आंकड़े को भी मासिक रिटर्न के आंकड़ों में शामिल किया जाता है तो रिटर्न दाखिल करने के मासिक आंकड़ों के प्रतिशत में और भी बेहतरी आयेगी।
हालांकि, जीएसटी रिटर्न के आंकड़ों से यह साफ नहीं है कि छोटे करदाता ज्यादा रिटर्न दाखिल कर रहे हैं या बड़े करदाता, लेकिन इन आंकड़ों से इतना तो साफ है कि कर चोरी की घटनायें कम हो रही हैं। साथ ही, बढ़े हुए रिटर्न की संख्या से यह भी संकेत मिलता है कि शून्य कर या कम मूल्य वाले रिटर्न ज्यादा दाखिल किये जा रहे हैं। सरकार के लिये ये आंकड़े कर चोरी के वारदातों को पकड़ने में सहायक हो सकते हैं, क्योंकि मामले में कारोबार के टर्नओवर की गणना में गड़बड़ी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
जीएसटी परिषद ने हाल ही में पंजीकरण की सीमा के साथ-साथ कंपोजिशन योजना की सीमा को भी बढ़ाया है, जिससे छोटे व मझौले कारोबारियों को राहत मिलने की उम्मीद है। करोड़ों की तादाद में छोटे कारोबारी रिटर्न दाखिल करने के अनुपालन से बच सकते हैं। सरकार के अनुमानों के मुताबिक इस छूट से कम से कम दो करोड़ करदाताओं को फायदा हो सकता है। ऐसे सकारात्मक माहौल में कारोबारियों को चाहिए कि वे सरकार द्वारा दी जा रही रियायत का फायदा उठायेँ, लेकिन इसके साथ-साथ उनकी यह भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वे कर चोरी करने या गलत कार्य करने से बचें।
छोटे कारोबारियों को अब टर्नओवर की सटीक गणना करनी चाहिये, ताकि यह पता लगाया जा सके कि पंजीकरण और कंपोजिशन सीमा के मामले में उनकी क्या स्थिति है। कर राजस्व के नुकसान को कम करने के लिये सरकार को कर चोरी रोकने के लिये ज्यादा सतर्क रहना होगा। हालांकि, करदाता कम होने से कर अधिकारी बड़े करदाताओं पर बेहतर नजर रख सकेंगे और उन्हें बड़ी चोरी पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। माना जा रहा है कि जब लोगों के लिये कानून का अनुपालन करना आसान होगा तो कर चोरी के मामलों में कमी आयेगी।
बहरहाल, कहा जा सकता है कि जीएसटी परिषद द्वारा कंपोज़ीशन सीमा के मामले में दी गई रियायत कारोबारियों के लिये उत्साहवर्धक है। ऐसा लगता है कि जीएसटी का फिजूल भय कारोबारियों के दिलों-दिमाग से निकल गया है और वे स्वेच्छा से कर जमा कर रहे हैं, जिसकी झलक जीएसटी रिटर्न के बढ़े मासिक आंकड़ों में देखने को मिल रही है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)