वित्त वर्ष 2018-19 में मासिक जीएसटी राजस्व 981 अरब रुपये रहा, जो वित्त वर्ष 2017-18 की तुलना में 9.2 प्रतिशत अधिक है। इससे संकेत मिलता है कि हाल के महीनों में राजस्व वृद्धि ने जोर पकड़ा है। मार्च में कुल जीएसटी संग्रह पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 16 प्रतिशत अधिक है, जिसमें केंद्रीय जीएसटी 203 अरब रुपये, एसजीएसटी 275 अरब रुपये और आईजीएसटी 504 अरब रुपये रहा। इसके अलावा केंद्र सरकार को उपकर मद में 82 अरब रुपये मिले। जानकारों के अनुसार जीएसटी संग्रह में वृद्धि की मुख्य वजह कारोबार में सुगमता, कर चोरी में कमी और कारोबारियों द्वारा निरंतर जीएसटी भुगतान करना है।
उम्मीद से ज्यादा प्रत्यक्ष कर संग्रह के बाद सरकार ने मार्च में अब तक का सबसे अधिक वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह किया। मार्च में जीएसटी संग्रह 1.06 लाख करोड़ रुपये रहा। पूरे साल में यह चौथा महीना था, जब जीएसटी संग्रह 1 लाख करोड़ रुपये पार कर गया। वित्त वर्ष 2018-19 के लिये सरकार ने हर महीने 1 लाख करोड़ रुपये जीएसटी वसूली का लक्ष्य रखा था।
वित्त मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में मासिक जीएसटी राजस्व 981 अरब रुपये रहा, जो वित्त वर्ष 2017-18 की तुलना में 9.2 प्रतिशत अधिक है। इससे संकेत मिलता है कि हाल के महीनों में राजस्व वृद्धि ने जोर पकड़ा है। मार्च में कुल जीएसटी संग्रह पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 16 प्रतिशत अधिक है, जिसमें केंद्रीय जीएसटी 203 अरब रुपये, एसजीएसटी 275 अरब रुपये और आईजीएसटी 504 अरब रुपये रहा। इसके अलावा केंद्र सरकार को उपकर मद में 82 अरब रुपये मिले। जानकारों के अनुसार जीएसटी संग्रह में वृद्धि की मुख्य वजह कारोबार में सुगमता, कर चोरी में कमी और कारोबारियों द्वारा निरंतर जीएसटी भुगतान करना है।
राज्यों में हर साल जीएसटी राजस्व में 14 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया है। हालाँकि, इसमें अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं होने पर उपकर मद से आमतौर पर इसकी भरपाई की जाती है। सरकार ने मुआवजा कानून में बीते महीनों में संशोधन किया है, जिसके आधार पर अवितरित मुआवजा उपकर मद की 50 प्रतिशत राशि पांच साल की अवधि समाप्त होने तक किसी भी समय केंद्र को हस्तांतरित की जा सकती है।
राजस्व में हुई उल्लेखनीय वृद्धि से राजकोषीय घाटे के 3.4 प्रतिशत लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। जीएसटी संग्रह के आंकड़े उत्साहजनक हैं। सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में सीजीएसटी संग्रह का लक्ष्य 6.1 लाख करोड़ रुपये रखा है, जो वित्त वर्ष 2019 के संशोधित लक्ष्य से 21 प्रतिशत अधिक है।
इसके लिये कर आधार को बढ़ाने और कर चोरी को रोकने के उपाय करने होंगे, क्योंकि कर वृद्धि की संभावना अब सीमित हो गई है। इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार के अनुसार वित्त वर्ष 2019 की तीसरी और चौथी तिमाही में बढ़े जीएसटी संग्रह में और तेजी आने पर ही वित्त वर्ष 2020 में इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि जीएसटी संग्रह के मामले में अप्रैल, 2019 लगातार दूसरा ऐसा महीना रहा है, जब कर संग्रह एक लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है। इससे पहले मार्च 2019 में भी जीएसटी संग्रह 1.06 लाख करोड़ रुपये रहा था।
अप्रैल, 2019 में जीएसटी राजस्व 1,13,865 करोड़ रुपये रहा, जिसमें केंद्रीय जीएसटी संग्रह 21,163 करोड़ रुपये, राज्य जीएसटी (एसजीएसटी) 28,801 करोड़ रुपये, एकीकृत जीएसटी 54,733 करोड़ रुपये और उपकर संग्रह 9,168 करोड़ रुपये रहा। इसके अलावा केंद्र के पास अस्थायी आधार पर बचे 12,000 करोड़ रुपये के आईजीएसटी का 50:50 अनुपात में केंद्र और राज्यों के बीच निपटान किया गया। नियमित और अस्थायी आधार पर किये गये निपटान के बाद अप्रैल, 2019 में केंद्र और राज्य सरकारों को 47,533 करोड़ रुपये का सीजीएसटी राजस्व मिला, जबकि एसजीएसटी राजस्व 50,776 करोड़ रुपये रहा।
वित्त वर्ष 2019-20 में सरकार ने सीजीएसटी से 6.10 लाख करोड़ रुपये और मुआवजा उपकर से 1.01 लाख करोड़ रुपये जुटाने का अनुमान रखा है। आईजीएसटी के 50,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2018-19 में सीजीएसटी संग्रह 4.25 लाख करोड़ रुपये और मुआवजा उपकर 97,000 करोड़ रुपये रहा।
पिछले महीने माल एवं सेवा कर संग्रह वित्त वर्ष 2018-19 के औसत मासिक जीएसटी संग्रह 98,114 करोड़ रुपये के मुकाबले 16.05 प्रतिशत ज्यादा रहा। कर संग्रह में भारी बढ़ोतरी कई वजहों से रही, जिसका एक प्रमुख कारण कर अनुपालन को मजबूत करना था। ई-वे बिल, रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए कराधान में बदलाव और सरकार द्वारा आम चुनाव से पहले खर्च बढ़ाने से कर संग्रह में बढ़ोतरी हुई है। इस वृद्धि का एक कारण साल के अंत में किया जाने वाला समायोजन भी है। कहा जा रहा है कि अगर कर संग्रह में यही रुझान बना रहा तो वित्त वर्ष 2019-20 के लिये रखे गये कर प्राप्ति के लक्ष्य को बिना कोई अतिरिक्त उपाय के हासिल किया जा सकता है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)