तमाम सियासी दाँव-पेंचों के बावजूद 3 अगस्त, 2016 को राज्यसभा में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक पारित हुआ, जिसके साथ ही देश में लंबे समय तक उलझा हुआ एक महत्वपूर्ण निर्णय अपने मुकाम पर पहुँचा, जिसका श्रेय निश्चित तौर पर मोदी सरकार को जाता है। सरकार की सक्रियता ही इस आवश्यक आर्थिक सुधार के ऐतिहासिक कदम को उठाने के लिए जिम्मेदार है। विपक्ष द्वारा लगातार रुकावटें उत्पन्न करने के बावजूद सरकार ने इस विधेयक पर आम सहमति बनाकर इसे पारित करवाया है। जी एस टी के पारित होने के बाद सबके जहन में कई सवाल खड़े हो रहे थे, जिसमें सबसे बड़ा सवाल यह था कि जीएसटी को क्या राज्य सरकारें अपनी स्वीकृति प्रदान करेंगी ? दूसरा सवाल आम जनता के ऊपर जीएसटी के लागू होने से क्या प्रभाव पड़ेगा ?
विरोधियों द्वारा यह अफवाह उड़ाई गई थी कि जीएसटी लागू होने के बाद आम आदमी पर महंगाई की मार पड़ेगी। लेकिन, जब सरकार ने जीएसटी की दरें सामने लाई तो विपक्ष के इन अफवाहों की भी हवा निकल गई। वित्त मंत्री अरुण जेटली जो जी एस टी कॉउंसिल के अध्यक्ष भी हैं, ने जीएसटी की दरो को चार स्तर पर विभाजित किया है – 5%, 12% , 18% , 28%। साथ ही, ये दरें इस तरह से लागू की गई हैं कि इनका प्रभाव दैनिक इस्तेमाल की वस्तुओं पर बहुत नहीं पड़ेगा। खाद्यान्न और दैनिक इस्तेमाल की वस्तुओं को शून्य कर की श्रेणी में रखा गया है। इस कारण अधिकांश खाद्य और दैनिक इस्तेमाल की वस्तुएं महँगी नहीं, बल्कि सस्ती ही होंगी।
पहले सवाल पर गौर करे तो इसे अधिकांश राज्यों ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। देश में जी एस टी कानून अब तक के सबसे बड़े आर्थिक सुधार की पहल माना जा रहा है, जिसका सबसे बड़ा फायदा करदाताओं को इस रूप में मिलेगा कि जी एस टी से रेवेन्यू में सीधे सीधे 25-30% की छूट प्राप्त होगी, परंतु इसका इतने लम्बे समय तक लोकसभा और राज्यसभा में लटकते रहना विपक्षी दलों की संकुचित राजनीति का ही एक उदाहरण है।
अब दूसरे सवाल पर आते हुए अगर आम जनता की बात करे तो जीएसटी के तहत केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सेवा कर, विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क, काउंटरवेलिंग ड्यूटी जैसे अप्रत्यक्ष कर शामिल होंगे। वहीं राज्यों में लगाए जाने वाले विक्रय कर/ मूल्यवर्धन कर, मनोरंजन कर, चुंगी तथा प्रवेश शुल्क, विलासिता कर, केंद्रीय विक्रय कर (जो केंद्र द्वारा लगाये और राज्य द्वारा वसूले जाते है) लॉटरी तथा सट्टेबाजी पर कर इत्यादि भी जीएसटी के अंतर्गत सम्मिलित हो जाएंगे। कर के ऊपर कर लगने से कही न कहीं जो लागत में वृद्धि होती रही है, अब जी एस टी की एक कर प्रणाली के कारण उसमें कमी आएगी।
इसका फायदा आम जनता को भी मिलेगा कि उनको कर के ऊपर कर देने से निजात मिलेगी। साथ ही, अलग-अलग तरह के अप्रत्यक्ष करों से देश को निजात मिलेगी। पूरे देश में एक ही तरह के कर और समान दर पर कर अदा करने की सुविधा भी मुहैय्या होगी, जिससे न केवल भारतीय बाज़ारो को मजबूती मिलेगी बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की आर्थिक पकड़ मजबूत बनेगी। पूरे देश में कर संरचना और दरों की समानता भी इसका एक सकारात्मक पहलू है साथ ही वर्तमान कर प्रणाली की अपेक्षा जीएसटी के अनुपालन में जटिलताओं का सामना कम करना पड़ेगा।
हालांकि विरोधियों द्वारा यह अफवाह भी उड़ाई गई कि जीएसटी लागू होने के बाद आम आदमी पर महंगाई की मार पड़ेगी। लेकिन, जब सरकार ने जीएसटी की दरें सामने लाई तो विपक्ष के इन अफवाहों की भी हवा निकल गई। वित्त मंत्री अरुण जेटली जो जी एस टी कॉउंसिल के अध्यक्ष भी हैं, ने जीएसटी की दरो को चार स्तर पर विभाजित किया है – 5%, 12% , 18% , 28%। साथ ही, ये दरें इस तरह से लागू की गई हैं कि इनका प्रभाव दैनिक इस्तेमाल की वस्तुओं को पर बहुत नहीं पड़ेगा। खाद्यान्न और दैनिक इस्तेमाल की वस्तुओं को करमुक्त रखते हुए शून्य कर की श्रेणी में रखा गया है। इस कारण अधिकांश खाद्य और दैनिक इस्तेमाल की वस्तुएं महँगी नहीं, बल्कि सस्ती ही होंगी। कर की सबसे ऊंची 28 प्रतिशत की दर विलासिता की वस्तुओं जैसे तम्बाकू, कार आदि पर लगाईं गई है, इसलिए इन उत्पादों की कीमतों में कुछ वृद्धि होगी। कहने की जरूरत नहीं कि ये चीजें दैनिक इस्तेमाल की नहीं हैं, अतः इनके दाम बढ़ने आम आदमी पर कोई विशेष असर नहीं पड़ने वाला। स्पष्ट है कि जीएसटी से न केवल देश में एकीकृत कर प्रणाली से कर व्यवस्था दुरुस्त होगी, बल्कि इसका फायदा आम जान को भी मिलेगा। यह एक ऐतिहासिक आर्थिक सुधार का कदम है, जो हर तरह से देश के आम जन और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)