बाजार पर नियंत्रण के अभाव में सरकार अबतक चाइनीज उत्पादों के खरीद-फरोख्त पर रोक नहीं लगा पा रही थी, लेकिन जीएसटी के आने के बाद चाइनीज उत्पादों के वितरण नेटवर्क के टूटने की उम्मीद की जा सकती है। भारत में अगर चीनी उत्पादों की बिक्री का ग्राफ गिरा तो इससे चीन का तकलीफ में आना तय है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत के प्रति चीन की बदमाशियों का जवाब हमारे जवानों से पहले जीएसटी देगा।
भारत में 1 जुलाई, 2017 से वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) को लागू कर दिया गया है। जीएसटी के प्रावधानों को देखते हुए माना जा रहा है कि इससे चीन के निर्यात पर लगाम लगेगा, क्योंकि जीएसटी के कुछ प्रावधानों के कारण चाइनीज उत्पादों का अंतर्राजीय वितरण आसानी से नहीं किया जा सकेगा, जिससे चाइनीज उत्पाद देश के दूर-दराज इलाकों तक नहीं पहुँच सकेंगे। इनकी पहुँच केवल एक राज्य के स्थानीय बाज़ारों तक सीमित होकर रह जायेगी।
गौरतलब है कि भारत के कारोबारी चाइनीज उत्पादों की आपूर्ति के लिये चीनी उत्पादकों को ऑर्डर देते हैं, जिसके आधार पर मांगे हुए चीनी उत्पाद कंटेनर में भारत भेजे जाते हैं। वैसे, सस्ते चाइनीज उत्पादों को हतोत्साहित करने के लिये भारत सरकार इनपर 14 से 28 प्रतिशत आयात कर एवं 0 से 150 प्रतिशत तक प्रतिकारी शुल्क आरोपित करती है। हालाँकि प्रतिकारी शुल्क भारत में औसतन 12 प्रतिशत की दर से ही आरोपित किया जा रहा है। इस शुल्क को बाजार में प्रतिस्पर्धा बनाये रखने के लिये विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के निर्देश पर लगाया जाता है।
ज्ञात हो कि डब्ल्यूटीओ ने किसी भी देश के आयात व निर्यात में संतुलन बनाये रखने के लिये सस्ते उत्पादों पर प्रतिकारी शुल्क एवं एंटी विरोधी डंपिंग ड्यूटी लगाने का प्रावधान किया है। फिर भी, चीन में सस्ती दर पर उपलब्ध मानव संसाधन और विनिर्माण पर दी जा रही भारी-भरकम सब्सिडी के कारण उनके उत्पाद ऐसे शुल्क लगाने के बाद भी बहुत ही सस्ते हैं।
आयातित चाइनीज उत्पादों के भारत आने के बाद करोल बाग, नेहरू प्लेस, गफ्फार मार्केट आदि के कारोबारियों द्वारा इन्हें खरीदा जाता है और उसके बाद ये एक शहर से दूसरे शहर होते हुए देश के हर इलाके तक पहुँच जाते हैं। ग्रामीण एवं कस्बाई इलाकों के कारोबारी आमतौर पर इन उत्पादों की खरीददारी थोक में करते हैं, क्योंकि सस्ती होने की वजह से इन इलाकों में इनकी बहुत ज्यादा माँग है।
जीएसटी से चाइनीज उत्पादों के वितरण के इस नेटवर्क का टूटना निश्चित है, क्योंकि जीएसटी के तहत गैर पंजीकृत कारोबारी इन्हें एक राज्य से दूसरे राज्य में नहीं ले जा सकेंगे, क्योंकि इसके तहत बिना पंजीकृत या 75 लाख रूपये तक की बिक्री करने वाले कारोबारी अंतर्राजीय कारोबार करने की पात्रता नहीं रखते हैं। जाहिर है, ऐसे में चाइनीज उत्पादों का एक राज्य से दूसरे राज्य तक पहुँचना मुश्किल हो जायेगा।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि चाइनीज उत्पादों के लेन-देन में इजाफा का एक बहुत बड़ा कारण गैरकानूनी तरीके से सीमावर्ती इलाकों के रास्ते से व्यापक पैमाने पर इनका भारत आना है। चूँकि, जीएसटी के प्रावधान इस तरह के कारोबार के मामले में बहुत ही सख्त हैं, इसलिए पूरी संभावना है कि गैर कानूनी तरीके से कारोबार करने वाले कारोबारी डर की वजह से ऐसा करने से परहेज करेंगे। अगर कारोबारी जीएसटी के प्रावधानों को पूरा करते हुए दूसरे राज्यों में इनका कारोबार करना भी चाहते हैं, तो चाइनीज उत्पादों पर जीएसटी आरोपित करने के बाद उनके सस्ते नहीं रहने से वे ऐसा नहीं कर सकेंगे, क्योंकि महँगे चाइनीज उत्पादों को कोई नहीं खरीदेगा।
सच कहा जाये तो सरकार चाइनीज उत्पादों से छुटकारा पाने के लिये मानसिक रूप से तैयार हो चुकी है। इसीलिये जीएसटी के अंतर्गत सेरामिक, प्लास्टिक, सेनेटरी वेयर, सेनेटरी नैपकिन आदि को अधिकतम टैक्स स्लैब में रखा गया है, क्योंकि इन उत्पादों का चीन से व्यापक पैमाने पर आयात किया जाता है।
देखा गया है कि कारोबारी चाइनीज उत्पादों को खरीदने पर कोई बिल नहीं देते हैं या फिर ग्राहकों को कच्चा बिल देते हैं और उपभोक्ता भी थोड़ा-सा कर बचाने के लिए इसका विरोध नहीं करते हैं। कहा जा सकता है कि बाजार पर नियंत्रण के अभाव में सरकार अबतक चाइनीज उत्पादों के खरीद-फरोख्त पर रोक नहीं लगा पा रही थी, लेकिन जीएसटी के आने के बाद चाइनीज उत्पादों के वितरण नेटवर्क के टूटने की उम्मीद की जा सकती है। भारत में अगर चीनी उत्पादों की बिक्री का ग्राफ गिरा तो इससे चीन का तकलीफ में आना तय है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत के प्रति चीन की बदमाशियों का जवाब हमारे जवानों से पहले जीएसटी देगा।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)