नकारा बाबुओं पर सरकार हल्ला बोल रही है। हाल ही में केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने राज्यसभा में बताया था कि पिछले दो वर्षों में सरकार ने 130 कामचोर बाबुओं की सेवाएं समाप्त कर दीं। ग्रुप ‘ए’ सेवा के 11, 828 और ग्रुप ‘बी’ सेवा के 19,714 अफसरों के सर्विस रिकॉर्ड को खंगाला गया है। यानी अब चुन-चुनकर सामने आ रहे हैं कामचोर सरकारी अफसर। इसके साथ ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ बाबुओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
सरकार ने छतीसगढ़ कैडर के दो आईपीएस अफसरों की सेवाएं समाप्त करके ये स्पष्ट संकेत दिया है कि काहिल अफसरों की खैर नहीं। सरकार भ्रष्ट और संदिग्ध छवि वाले अफसरों को बख्शने के लिए कतई तैयार नहीं है। सत्ता पर काबिज होते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सख्त अंदाज में भ्रष्ट सरकारी बाबुओं को चेतावनी दी थी कि न मैं खाऊंगा और न ही किसी को खाने दूंगा व ‘न चैन से बैठूंगा, न चैन से बैठने दूंगा’। उन्होंने सरकारी दफ्तरों में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने की अपनी सरकार की प्रतिबद्धता को साफ कर दिया था। मोदी सरकार सत्तासीन होने के बाद से ही जिस तरह से सरकारी बाबुओं पर सख्त हो रही है, उससे बहुत से बाबू तो सुधरने भी लगे हैं।
अब करप्ट बैंक अफसरों के मौज के दिन खत्म हो गए हैं। अब तो एक के बाद एक कई सरकारी बैंकों के शिखर के भ्रष्ट अफसर फंस रहे हैं। उनके काले कारनामों के कच्चे चिट्ठे सामने आ रहे है। बीते 15 सितंबर को सीबीआई ने यूनाइटेड बैंक आफ इंडिया (यूबीआई) की पूर्व चेयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर (सीएमडी) अर्चना भार्गव के खिलाफ करप्शन का केस दर्ज किया। सीबीआई ने उनके ठिकानों पर छापों के दौरान कैश, आभूषण और 10 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के ब्यौरे बरामद किए हैं जो कथित तौर पर भार्गव और उनके परिवार के सदस्यों के नाम हैं।
रिटायरमेंट की उम्र आने से पहले ही बैंक की नौकरी को खराब सेहत का बहाना बनाकर छोड़ने वाली अर्चना भार्गव पर ये भी आरोप है कि वर्ष 2011 में केनरा बैंक की कार्यकारी निदेशक रहते हुए और 2013 में यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की सीएमडी के तौर पर उन्होंने उन कंपनियों को लोन दिलवाने में अतिरिक्त उदारता बरती जो उनके पति-पुत्र के स्वामित्व वाली कंपनियों से डील कर रही थीं। इससे पहले सीबीआई ने अगस्त, 2014 में सिंडिकेट बैंक के सीएमडी एस.के.जैन को 50 लाख रुपये की घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उन्होंने एक कंपनी को मोटा लोन दिलवाया था। बदले में 50 लाख रुपये बेशर्मी से ले रहे थे। वे गिरफ्तारी से बचने के लिए सीबीआई को चकमा देने की कोशिश कर रहे थे।
बेशक, सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने में सरकारी बाबुओं की अहम भूमिका रहती है। यदि वे ही लुंज-पुंज साबित होंगे तो फिर काम कौन करेगा? सरकार की जनकल्याकारी नीतियों और कार्यक्रमों को कौन लागू करेगा। किसे नहीं मालूम कि सरकारी विभागों में घोर अव्यवस्था और अराजकता व्याप्त है। वहां पर काम करना शान के खिलाफ समझा जाता है। सारा दिन अगली छुट्टियों पर व्यर्थ की बहस में निकाल देते हैं अधिकतर कर्मी। इस मानसिकता को जड़ से मिटाने के लिए कठोर कार्रवाई लंबे समय से अपेक्षित थी। इस सरकार ने चाबुक चलानी शुरू कर दी है निकम्मे बाबुओं पर।
नोटबंदी में अवरोध
सब जानते हैं कि काले धन के कोढ़ के खिलाफ मोदी सरकार के नोटबंदी के कदम में जहां एक तरफ तमाम बैंक कर्मी पूर्ण प्रतिबद्धता से काम करते रहे, वहीं इसे असफल करने की हरचंद कोशिशें भी की थीं बहुत से बैंक कर्मियों ने। सेंट्रल विजिलेंस कमीशन के आंकड़ों के अनुसार, सरकारी क्षेत्र के बैंकों के रोज तीन मुलाजिमों की नौकरी जा रही करप्शन से लेकर घोटालों में लिप्त होने के कारण। अंदाजा लगा लें कि क्या हाल हो चुका है करप्शन का। बैंक कर्मियों ने नोटबंदी के अभियान को पलीता लगाने की भरपूर कोशिशें कीं। कई मामलों में फंसे और गिरफ्तार भी हुए।
कहते हैं कि जिस तरह से मछली के जल ग्रहण करने का किसी को पता नहीं चल पाता, उसी तरह से बैंकों से जुड़े भ्रष्ट पेशेवरों के बारे में कहा जाता है कि उनके करप्शन से जुड़े मामलों को सामने लाना भी शेर के मुंह से निवाला छीनने के समान होता है। कारण ये है कि इन्हें पैसे को ठिकाने लगाने का अंदाजा होता है। आखिर ये हमेशा नोटों के आसपास ही तो रहते हैं। इस नोटबंदी अभियान के दौरान इनकी पोल खुल गई।
नपते बाबू
नकारा बाबुओं पर सरकार हल्ला बोल रही है। हाल ही में केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने राज्यसभा में बताया था कि पिछले दो वर्षों में सरकार ने 130 कामचोर बाबुओं की सेवाएं समाप्त कर दीं। ग्रुप ‘ए’ सेवा के 11, 828 और ग्रुप ‘बी’ सेवा के 19,714 अफसरों के सर्विस रिकॉर्ड को खंगाला गया है। यानी अब चुन-चुनकर सामने आ रहे हैं कामचोर सरकारी अफसर। इसके साथ ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ बाबुओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद एक आशा जगी थी कि अब सरकारी कर्मी अपने को करप्शन से दूर रखेंगे। वे अपने दायित्वों का निर्वाह करेंगे। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से 50 लाख सरकारी कर्मचारियों और 58 लाख पेंशनधारियों के हाथों में ज्यादा पैसा आने लगा। इन्हें बेहतर पगार मिले और इन्हें बाकी भी सुविधाएं मिलें इसमें किसी को कोई एतराज क्यों होगा? लेकिन, अधिक पगार के बाद भी सरकारी कर्मियों का एक हिस्सा काहिली और करप्शन में डूबा हुआ है। अधिकारों और कर्तव्यों की एक साथ बातें नहीं हो रहीं। इस कारण भी सरकार ने सख्त रुख अपना लिया है।
ताजा स्थिति ये है कि बाबू अधिकार तो ले रहे हैं, पर कर्तव्यों के मोर्चे पर उस तरह से सक्षम साबित नहीं हो रहे। कोशिश भी नहीं कर रहे। बाबू इस अँदाज में बैठे होते हैं मानो उन्हें कोई सजा दी जा रही है। काम को करने को लेकर किसी तरह का विशेष आग्रह या उत्साह नहीं दिखता। इन घोर निराशाजनक स्थितियों की पृष्ठभूमि में भ्रष्ट कार्रवाई करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा है। सरकार के सख्त रुख अपनाने से स्थिति में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है और उम्मीद करते हैं कि आगे स्थिति बेहतर हो सकेगी।
(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)