कृषि उपज के भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन संबंधी बुनियादी ढांचा विकास के लिए प्रधानमंत्री ने एक लाख करोड़ रूपये के कृषि अवसंरचना कोष का गठन किया है। इस कोष में पहले साल 1300 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है। 2021-22 और उसके बाद सरकार का लक्ष्य अगले तीन साल तक हर साल 30,000 करोड़ रूपये कर्ज देने का है। योजना की अवधि 2020 से 2029 तक दस साल के लिए है।
भारत में खेती की बदहाली का एक बड़ा कारण यह रहा कि यहां उत्पादन पर फोकस किया गया लेकिन उपज के भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन की ओर ध्यान नहीं दिया गया। दूसरे, भंडारण-विपणन का ढांचा केवल गेहूं और धान को केंद्र में रखकर बना।
यही कारण है कि हम खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के बावजूद दालों और खाद्य तेल के लिए आयात पर निर्भर होते गए। इतना ही नहीं, प्रसंस्करण-भंडारण की समुचित सुविधा न होने के कारण लगभग एक-तिहाई उपज नष्ट हो जाती है। आलू, प्याज, टमाटर के साथ तो यह अक्सर होता है।
हरित क्रांति के अगुआ माने जाने वाले पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूं भंडारण की समुचित सुविधा नहीं है जिससे लाखों टन अनाज खुले में पड़ा रहता। इसी तरह बिहार, पश्चिम बंगाल में धान के प्रसंस्करण-भंडारण संबंधी बुनियादी ढांचे की घोर कमी है।
लंबे अरसे की उपेक्षा के बाद मोदी सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम उठाया है। कृषि उपज के भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन संबंधी बुनियादी ढांचा विकास के लिए प्रधानमंत्री ने एक लाख करोड़ रूपये के कृषि अवसंरचना कोष का गठन किया है।
इस कोष में पहले साल 1300 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है। 2021-22 और उसके बाद सरकार का लक्ष्य अगले तीन साल तक हर साल 30,000 करोड़ रूपये कर्ज देने का है। योजना की अवधि 2020 से 2029 तक दस साल के लिए है।
इस कोष से कृषिगत बुनियादी ढांचे से जुड़े किसानों, कृषि उद्यमियों, स्टार्ट-अप, कृषि प्रौद्योगिकी कंपनियों और किसान समूहों के लिए ऋण दिया जाएगा। योजना के तहत 3 प्रतिशत ब्याज छूट पर सात साल के लिए उद्यमियों को दो करोड़ रूपये तक कर्ज मुहैया कराया जाएगा। इस कर्ज के किस्त की भुगतान को टालने की छूट मिलेगी जो छह महीने से 2 साल तक के लिए होगी।
मोदी सरकार पहले ही अध्यादेश के जरिए कृषि विपणन को मुक्त कर चुकी है। अब किसान देश की किसी भी मंडी में उपज बेचने के लिए आजाद हैं। इसके साथ–साथ आवश्यक जिंस अधिनियम और ठेके पर कृषि के संबंध में भी अध्यादेश जारी किया जा चुका है।
इससे निजी कंपनियां फसल तैयार होने के बाद के प्रबंधन जैसे गोदाम, कोल्ड चेन, खाद्य प्रसंस्करण, आर्गनिक और फोर्टीफाइड फूड जैसे क्षेत्रों में निवेश के लिए आगे आएंगी। इतना ही नहीं, छोटे किसान समूह बनाकर अपने उत्पादों के लिए खुद का गोदाम, कोल्ड स्टोरेज बनाएंगे।
बढ़ती बीमारियों, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आदि के चलते दुनिया भर में जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि जैविक उत्पादों के लिए उपभोक्ता कोई भी कीमत देने को तैयार हैं। कृषि अवसंरचना कोष से जैविक उत्पादों के भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन के लिए बुनियादी ढांचा बनाने और निर्यात में सहायता मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार देश के विभिन्न हिस्सों में क्लस्टर बनाकर जैविक खेती को प्रोत्साहित कर रही है ताकि 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी करने में सहायता मिले। देश में 40,000 क्लस्टर चिन्हित कर लिए गए हैं। इसी तरह 150 से अधिक किसान उत्पाद संगठनों (एफपीओ) ने 80,000 हेक्टेयर में उत्पादन शुरू कर दिया है।
समग्रत: मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी करने के लिए बहुआयामी उपाय कर रही है। कृषि अवसंरचना कोष से ग्रामीण इलाकों में उद्यमशीलता का विकास होगा जिससे न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी बल्कि गांवों में रोजगार के नए अवसर भी निकलेंगे।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)