अदालत के लिए यह सिर्फ़ हिन्दू आस्था का ही प्रश्न नहीं था अपितु उन गलतियों को भी दुरुस्त करने का वक़्त था जिसके लिए मौजूदा दौर में अब किसी को भी बाबरी मस्जिद विवाद के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। एक ऐसा फैसला जिससे एक सुनहरे भारत का निर्माण होगा। एक बड़ा सत्य अब सबके सामने है कि अब इतिहास से आगे बढ़कर भविष्य के निर्माण करने का समय है।
भगवान श्रीराम देश के अधिसंख्य लोगों के दिलों में वास करते हैं, इसके लिए किसी प्रमाण की ज़रुरत नहीं थी, लेकिन प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या ही है, इस बात को प्रमाणित करने में सदियाँ साल लग गईं। इस फैसले की सबसे खूबसूरत बात यह रही कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व में बनी बेंच में सभी पांच जजों ने सर्वसम्मति से फैसला लिया। सुप्रीम कोर्ट में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार यह बात स्थापित हुई कि राम लला ही विवादित भूमि के अधिपति हैं और वहां एक भव्य मंदिर बन कर ही रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने अपने सुप्रीम आदेश में पूरी दुनिया को बता दिया कि अयोध्या में विवादित स्थल पर 1528 में बनाई गई मस्जिद वाकई किसी ऐसे ढांचे पर ही बनाई गई थी, जो मंदिर जैसा था।
ऐसा माना जाता था कि पहले मुग़ल शासक बाबर ने किसी मंदिर का विध्वंस करके ही मस्जिद का निर्माण करवाया था। मुस्लिम पक्षकारों का मानना था कि बाबर के कमांडर इन चीफ मीर बाकी ने मस्जिद का निर्माण करवाया था, बाबर ने नहीं, और इसके लिए किसी मंदिर को नहीं तोड़ा गया था।
1885 में महंत रघुवर दास ने विवादित मस्जिद के बार चबूतरे पर मंदिर बनाने के लिए संघर्ष शुरू किया था। भले ही फैजाबाद के सब डीविजनल जज ने रघुवर दास की प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया लेकिन चबूतरा और उसके बाहर हजारों, लाखों लोग पूजा अर्चना करते रहे।
1950 से लेकर अब तक अदालत के अन्दर और बाहर राष्ट्रीय स्तर पर कई जन आन्दोलन हुए। राम मंदिर आन्दोलन के प्रादुर्भाव के साथ ही बीजेपी का राजनीतिक सितारा भी चमका। लाल कृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, उमा भारती, कल्याण सिंह जैसे कई नेताओं के अथक संघर्ष ने राम मंदिर आन्दोलन को देश का मुख्य चुनावी मुद्दा बना दिया। यह तो संघर्ष का इतिहास रहा। इसी क्रम में बहुत से कार सेवकों ने अपने जान की बलि भी दी।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के सम्मानित जजों ने पिछले 300-400 वर्षों के कालखंड में अयोध्या में हुए बदलाव को इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा, समझा और परखा।
कई इतिहासकारों ने अपनी लेखनी में इस बात का ज़िक्र किया था कि 1766-71 के बीच औरंगजेब ने राममंदिर के राम कोटे को तोड़कर उसकी जगह पर मस्जिद का निर्माण करवाया था।
वर्ष 1608 के आस पास विलियम फिंच ने लिखा कि इस विवादित मस्जिद के बाहर हजारों हिन्दू तब भी भगवन राम की अर्चना कर रहे थे। इतिहासकारों के लिखित उल्लेखों का सुप्रीम कोर्ट के जजों ने अध्ययन-मनन किया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा किये उत्खनन में मिले प्रमाण को भी सामने रखा।
अदालत के लिए यह सिर्फ़ हिन्दू आस्था का ही प्रश्न नहीं था अपितु उन गलतियों को भी दुरुस्त करने का वक़्त था जिसके लिए मौजूदा दौर में अब किसी को भी बाबरी मस्जिद विवाद के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। एक ऐसा फैसला जिससे एक सुनहरे भारत का निर्माण होगा। एक बड़ा सत्य अब सबके सामने है कि अब इतिहास से आगे बढ़कर भविष्य के निर्माण करने का समय है।
अदालत ने विवादित भूमि हिन्दू पक्षकारों को सौंप कर ऐसा न्याय किया जिसका इंतजार पिछले कई सौ सालों से राम भक्त कर रहे थे। वहीं अयोध्या के अन्दर मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ ज़मीन देकर यह जताया है कि अयोध्या में हर धर्म के लोगों के रहने के लिए काफी जगह है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह भी बताया है कि एक तरफ जहाँ राम भक्त सरयू नदी के जल से अर्घ्य करेंगे वहीं इस्लाम धर्म पालन करने वाले भी उसी सरयू के जल से वुजू कर पाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)