भाजपा ने बंगाल में ममता के किले में अपनी सेंध लगा दी है। इतना ही नहीं, बीते 8 महीनों में बंगाल में जो निकाय स्तर एवं पंचायत स्तर के चुनाव हुए हैं, वहां भी भाजपा ने बाजी मारी है। कुछ निकायों में तो भाजपा पूर्ण बहुमत से संपूर्ण बोर्ड जीतकर आई है। हालांकि इस जीत के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले भी हुए और मारपीट के अलावा कुछ कार्यकर्ताओं की जान भी जा चुकी है। भाजपा की जीत और उसके समानांतर हिंसा से यह बात तो तय होती है कि भाजपा के भय ने ममता को बौखलाहट से भर दिया है। इसीके परिणामस्वरूप हिंसा की घटनाएं हुई हैं।
पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इसके लिए राजनीतिक दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के बीच यहां मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बीते रविवार कोलकाता के शहीद मीनार मैदान से एक सभा को संबोधित करते हुए इस अभियान का औपचारिक आगाज भी कर दिया है।
अपने भाषण में उन्होंने यह दावा किया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी दो तिहाई बहुमत जुटा सकती है और इस आधार पर बंगाल में सत्ता का परचम लहराएगी। सवाल उठ सकता है कि शाह ने इतना बड़ा दावा इतनी सहजता के साथ कैसे कर दिया। अभी तो चुनाव में करीब पूरा एक साल बाकी है। सत्ता के गलियारों में समीकरण बदलते देर नहीं लगती और फिर पूर्ववर्ती कुछ विधानसभा चुनावों में भाजपा के पक्ष में परिणाम नहीं आए हैं। इन सब तथ्यों के बावजूद शाह ने भला किस आधार पर दो तिहाई बहुमत की बात कही है।
असल में, इस दावे को थोड़ा गहराई में जाकर समझना होगा। राजनीति में हर राज्य में मुद्दों की प्रकृति भिन्न होती है, इसके आधार पर ही मतदाता का मिजाज भी निर्धारित होता है। एक राज्य की स्थिति की दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि वहां स्थानीयता का पुट अधिक शामिल होता है।
जहां तक बंगाल की बात है, यदि हम लोकसभा चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो यहां की जनता ने बीजेपी को 42 में से 18 सीटें दी थीं। अब भाजपा जीत का यही फार्मूला और वृद्धि के साथ विधानसभा चुनाव में भी दोहरा सकती है। इसके पीछे कुछ निश्चित कारण हैं। सबसे पहली बात यह है कि बंगाल का पारंपरिक वोटर अब बदल रहा है। पांच साल पहले जिस तृणमूल कांग्रेस की बंगाल में तूती बोलती थी, आज वह विघटनकारी हो चली है। लोकसभा चुनाव के बाद बड़ी संख्या में नियमित रूप से टीएमसी कार्यकर्ताओं का दल बदलकर भाजपा में शामिल होना इस बात की तस्दीक करता है।
इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब भाजपा ने बंगाल के किले में अपनी सेंध लगा दी है। इतना ही नहीं, बीते 8 महीनों में बंगाल में जो निकाय स्तर एवं पंचायत स्तर के चुनाव हुए हैं, वहां भी भाजपा ने बाजी मारी है। कुछ निकायों में तो भाजपा पूर्ण बहुमत से संपूर्ण बोर्ड जीतकर आई है। हालांकि इस जीत के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले भी हुए और मारपीट के अलावा कुछ कार्यकर्ताओं की जान भी जा चुकी है। भाजपा की जीत और उसके समानांतर हिंसा से यह बात तो तय होती है कि भाजपा के भय ने ममता को बौखलाहट से भर दिया है। इसीके परिणामस्वरूप हिंसा की घटनाएं हुई हैं।
यहां इस बात उल्लेख करना भी प्रासंगिक एवं अहम होगा कि भाजपा ने अपने कोर वोटर को पहचान लिया है। इसमें हिंदू तो हैं ही, अल्पसंख्यक भी शामिल हैं, क्योंकि भाजपा के विकासवादी एजेंडे से सभी को सरोकार है। मतदाता को उथली राजनीति से नहीं, विकास से मतलब है और भाजपा ने यह काम बखूबी किया है।
हां, यह बात अलग है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा पर केवल हिंदूवादी ही होने का आरोप मढ़ रखा है। अपने इस दुराग्रह के चलते ममता ने विगत कुछ समय में भाषायी मर्यादा की हदें तो लांघी ही हैं, उनका आचरण भी अशोभनीय रहा है। वे यह आरोप लगाती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना हिंदूवादी एजेंडा चला रहे हैं। उन्हें लगा कि बंगाल में वे हिंदू गतिविधियों का दमन करके अपना लक्ष्य पूरा कर लेंगी। इसके चलते उन्होंने बंगाल में दुर्गा पूजा, दशहरा उत्सव आदि आयोजनों में बाधाएं खड़ी करना शुरू कीं, यह भूलते हुए कि बंगाल उत्सवप्रिय राज्य है और काली की उपासना का गढ़ है।
ममता ने बंगाल में कानून एवं न्याय व्यवस्था का मजाक बनाकर रख दिया। ममता की जो पुलिस राज्य में हिंसा और दंगे रोकने में नाकाम रही, उसने बहुचर्चित सारदा घोटाले की जांच करने पहुंचे सीबीआई के दल को बंधक बनाकर अपनी ताकत दिखाई। यह पूरे सिस्टम को हिलाकर रख देने वाली घटना थी।
इसी क्रम में ममता ने लोकसभा चुनाव के समय अमित शाह एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बंगाल में नहीं आने दिया। इनका हेलीकॉप्टर तक लैंड नहीं होने दिया गया ताकि ये शीर्ष नेता यहां सभा ना कर सकें। अमित शाह के रोड शो में टीएमसी कार्यकताओं द्वारा उत्पात मचाया गया। हमला व पथराव किया गया।
आए दिन पैदल मार्च निकालना और हंगामे खड़े करना ममता का प्रिय शगल बन चुका है। दरअसल वे बखूबी समझ रही हैं कि अब बंगाल में उनके पैरों से जनाधार की जमीन खिसकती जा रही है। बंगाल का पारंपरिक वोट अब बदल रहा है। इस अनिश्चिता और असुरक्षा के भाव ने उनके पहले से उग्र स्वभाव में ईंधन का काम किया है और वे बौखलाकर अनर्गल बयानबाजी व आचरण करने लगी हैं।
नरेंद्र मोदी, जो कि देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं, उन्हें प्रधानमंत्री मानने से इंकार कर देना, उनके खिलाफ नारेबाजी करना आदि हरकतों का बंगाल के जनमानस पर प्रभाव पड़ा है। यही कारण है कि जिस टीमएसी की बदौलत ममता आज सत्ता की कुर्सी पर काबिज हैं, वही उनके हाथ से फिसलती मालूम पड़ रही है। टीएमसी से लोग भाजपा में आ रहे हैं।
इस देश में सच्चाई बस यही है कि कहीं भी, किसी भी राज्य में बहुतायत मतदाता धर्म या विचारधारा को नहीं, बल्कि काम को देखकर वोट देते हैं। ममता बंगाल में नफरत की राजनीति की इस चक्कर में विकास के मुद्दों से कट गईं। इसके उलट, भाजपा अखिल भारतीय रूप से उत्तरोत्तर विकास कार्य करती जा रही है जिसकी झांकी लोकसभा चुनाव में दिखी थी। निश्चित ही इसका सुखद परिणाम विधानसभा चुनाव में भी निकलकर सामने आएगा।
गृहमंत्री अमित शाह ने तो महज दो तिहाई बहुमत का दावा किया है लेकिन राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा यह समय बताएगा। हो सकता है, भाजपा इससे भी अधिक संख्याबल के साथ बंगाल की सत्ता की चाबी हासिल कर ले। इन सारे सवालों व अटकलों का जवाब 2021 में मिल जाएगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)