आज जिस हिंदू शब्द को लेकर सोनिया, राहुल और प्रियंका एक ही मंच पर आ जमे और तमाम बातें कीं, उनकी ही सरकार कभी हिंदुओं के आराध्य प्रभु श्रीराम को काल्पनिक बताकर करोड़ों धर्मालुओं की आस्था का उपहास उड़ा चुकी है। अब ये ही कांग्रेसी चुनावी मौसम में गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं और खुद को हिंदू बताते नहीं थक रहे हैं, लेकिन जनता जानती है कि इनका मूल चरित्र क्या है और इनकी निष्ठा कहां नियोजित होती रही है।
अपने ऊटपटांग बयानों के लिए मशहूर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर से नया शिगूफा छेड़ा है। चूंकि राहुल गांधी से परिपक्वता की अपेक्षा तो की नहीं जा सकती इसलिए उनका अर्नगल प्रलाप ही उनके व्यक्तित्व का सच्चा प्रतिनिधि मालूम होता है।
पिछले दिनों जयपुर में कांग्रेस ने तथाकथित महंगाई विरोधी रैली का आयोजन किया। हालांकि पार्टी इसे दिल्ली में करना चाहती थी लेकिन अनुमति ना मिलने से इसे जयपुर में किया गया। इस मंच पर राहुल, सोनिया और प्रियंका गांधी तीनों मौजूद थे। तीनों ने बारी-बारी से बेसिर पैर की बातें कीं और यह जताने की कोशिश की कि उन्हें जनता की बहुत फिक्र है।
बाकी सब तो ठीक है लेकिन राहुल गांधी ने अपनी अपरिपक्व समझ को दिखाने के लिए इस बार हिंदू एवं हिंदुत्व जैसे शब्दों को चुना। उन्होंने अपनी अधकचरी समझ के अनुसार हिंदू एवं हिंदुत्व शब्द की व्याख्या कर डाली और कहा कि इस देश की राजनीति में दो शब्दों के बीच स्पर्धा है। हिंदू और हिंदुत्व। दोनों का अंतर समझने की जरूरत है। मैं हिंदू हूं, हिंदुत्ववादी नहीं हूं। आप सभी हिंदू हैं, हिंदुत्ववादी नहीं। महात्मा गांधी हिंदू थे और उनकी हत्या करने वाला गोडसे हिंदुत्ववादी था। गांधी को हिंदुत्ववादियों ने गोली मारी थी।
इसके बार राहुल गांधी ने अतिउत्साह में आकर कह डाला कि 2014 से इस देश में हिंदुत्ववादियों की सरकार है। हमें इस सरकार को हटाना है और हिंदुओं की सरकार बनाना है। हिंदुत्ववादियों के कारण ही देश में महंगाई है। हिंदुत्ववादियों को सच से नहीं, सत्ता से मतलब होता है, जबकि गांधी हिंदू थे और उन्हें सिर्फ सच से मतलब था।
यहां यह गौर करना उल्लेखनीय होगा कि आखिर राहुल गांधी को हिंदुओं की इतनी चिंता अचानक क्यों होने लगी। यह वही नेहरू-गांधी परिवार है जिसे हिंदू शब्द फूटे आंख नहीं सुहाता है। जो राहुल गांधी आज हिंदुत्व पर बढ़-चढ़कर शोरगुल मचा रहे हैं, वे खुद ही हिंदू मंदिरों के बारे में सार्वजनिक मंचों से अभद्र टिप्पणी कर चुके हैं।
आज जिस हिंदू शब्द को लेकर सोनिया, राहुल और प्रियंका एक ही मंच पर आ जमे और तमाम बातें कीं, उनकी ही सरकार हिंदुओं के आराध्य प्रभु श्रीराम को काल्पनिक बनाकर करोड़ों धर्मालुओं की आस्था का उपहास उड़ा चुकी है। अब ये ही कांग्रेसी चुनावी मौसम में गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं और खुद को हिंदू बताते नहीं थक रहे हैं, लेकिन जनता जानती है कि इनका मूल चरित्र क्या है और इनकी निष्ठा कहां नियोजित होती रही है।
बहरहाल, राहुल गांधी ने जो भी कहा उससे आश्चर्य इसलिए भी नहीं है क्योंकि यही कांग्रेस की मूल नीति सदा से रही है। स्वयं हिंदू विरोधी होकर भी चुनाव के समय पर ये हिंदू बनने का स्वांग रचते हैं। कभी मंदिर-मंदिर दौड़ते हैं, तो कभी जनेऊधारी हिन्दू होने का दावा करते हैं। ऐसा करके ये केवल जनता को गच्चा देने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं।
असल में देखा जाए तो राहुल गांधी ने जिस ढंग से हिंदुत्व को हिंदू से अलग करके स्वयं की परिभाषा थोपने की जो कोशिश की है, वह विचित्र है। जैसे पिता से पितृत्व, माता से मातृत्व होता है, उसी तरह हिन्दू से हिंदुत्व की व्युत्पत्ति होती है। इनमें भाषा और व्यवहार दोनों ही मामलों में कोई भेद नहीं है। हिन्दू और हिंदुत्व में भेद करने की कोशिश हिन्दू विरोधी राजनीति का हिस्सा है, जो कि राहुल गाँधी कर रहे हैं।
सलमान खुर्शीद भी इसी तरह की हिन्दू विरोधी हरकत बीते दिनों अपनी किताब को लेकर कर चुके हैं। उन्होंने तो सीमाएं पार करते हुए हिंदूवादी संगठनों की तुलना आईएसआईएस एवं बोको हराम जैसे आतंकी संगठनों तक से कर डाली थी।
खैर, राहुल के हालिया बयान से इतना तो यह है कि वे हिंदुत्व को लांछित करते हुए बीजेपी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ ही समस्त हिंदुओं को भी देश के लिए खतरे के रूप में स्थापित कर रहे हैं। और ऐसा करते हुए उन्होंने पूरी तरह से शातिराना अंदाज में गांधी का नाम बार-बार लिया और इसे गांधी के साथ जोड़कर अपनी बात को बड़ा करने की व्यर्थ कोशिश भी की।
यूपीए सरकार के दौर में तो कांग्रेसी नेता, मंत्री येन केन प्रकारेण हिंदू आतंकवाद, भगवा आतंकवाद जैसे शब्द गढ़ रहे थे, जनमानस में इसे स्थापित करने की कवायद कर रहे थे और इस तरह का माहौल बना रहे थे कि मानो देश में हिंदुओं का होना आतंक से कम नहीं है।
राहुल गांधी का उक्त कथन स्पष्ट करता है कि उन्हें ना तो हिंदू धर्म की कोई जानकारी है, ना उन्होंने कभी हिंदू धर्म शास्त्र उठाकर देखे हैं और ना ही उन्हें रामायण, महाभारत या उपनिषद की कोई जानकारी है। उन्हें हिंदू धर्म के बारे में रंच मात्र भी पता नहीं है। पता होता तो हिन्दू और हिंदुत्व की ऐसी मनमानी और बचकानी व्याख्या नहीं करते।
खैर, इसी बहाने कांग्रेस की मुख्य विचारधारा भी उजागर हो गई है। आज यह समझना कठिन नहीं रह गया है कि इस देश के लिए कांग्रेस की मुख्य सोच क्या है। यह सोच बहुत घातक है, विषाक्त है और इससे सचेत रहने की आवश्यकता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)