पंजाब में नई सरकार को बने अभी सिर्फ तीन महीने का वक़्त गुजरा है, लेकिन अभी से ही कैप्टन की कार्यक्षमता पर सवाल उठने शुर हो गए है। पंजाब में अकाली सरकार जाने के बाद अब लोग यह पूछ रहे हैं कि कांग्रेस सरकार क्या विकास कार्यों को जारी रख सकेगी? क्या कैप्टन में यह इच्छा शक्ति है कि वह भ्रष्ट नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा सकें। पंजाब में पार्टी की जीत का श्रेय कांग्रेस को कम और कैप्टन को ज्यादा दिया जाता है, ऐसे में कैप्टन क्या पंजाब के मतदाताओं के विश्वास पर खरे उतरेंगे। सवाल का जवाब कैप्टन को अब जल्द ही देना होगा।
पंजाब में सत्ता प्राप्त होते ही कांग्रेस अपने पुराने रंग-ढंग में ढलती हुई नज़र आ रही है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तो उम्मीद की जा रही थी कि वे वाकई पंजाब में कुछ अलग करेंगे। लेकिन, अब कुछ महीनों के अन्दर ही कैप्टन सरकार में भ्रष्टाचार के गुल खिलने शुरू हो गए हैं।
पंजाब में कांग्रेस पार्टी ने कहाँ तो चुनाव से पहले रेत माफिया के मकड़जाल को ख़त्म करने का प्रण लिया था और कहाँ अब खुद इस जंजाल में उलझ गई है। पंजाब की इस कांग्रेस सरकार के घोटाले की अजब-गज़ब कहानी से सभी चकित हैं। पंजाब के कैबिनेट मिनिस्टर राणा गुरजीत सिंह की हरकतों को देख और सुन सभी दांतों तले ऊँगलियाँ दबा ले रहे हैं। इनपर रेत खदानों की नीलामी में घोटाले का आरोप सामने आया है।
यह सबको चकित कर रहा है कि मंत्री जी के घर में काम करने वाला एक नेपाली रसोइया अमित बहादुर, जिसकी कमाई महज 5000 रूपये महीना है, कैसे रातों-रात 26 करोड़ के रेत खदान का मालिक बन जाता है। रसोइये को इतना बड़ा इनाम मिलना आपने आप में उस खतरे की तरफ संकेत करता है, जिसका पंजाब की जनता को इल्म भी नहीं है।
अमित बहादुर, मंत्री राणा गुरजीत की कंपनी राणा सुगर मिल में खाना बनाने का काम करता था, खदानों की नीलामी में बोली लगाने वालों में शामिल है। यहीं नहीं, रेत-बजरी की नीलामी में मंत्री के तीन और कर्मचारियों के नाम भी सामने आए हैं। 32 सफल बोलीदाताओं में से चार तो राणा गुरजीत के मुलाजिम ही हैं। कुल मिलाकर मंत्री के कर्मचारी और खानसामे ने 50 करोड़ के खदान की मालिकी हासिल की है।
पंजाब के कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत का कहना है कि कि उनकी कंपनियों का रेत खदानों की इस नीलामी से कोई लेना-देना नहीं है। मंत्री का इतना भर कह देना कि जिन कर्मचारियों को रेत खदान मिला है, वह कंपनी छोड़ चुके हैं, जनता को शायद ही हजम हो। यह हज़म होने वाली बात भी नहीं है।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कैसे पंजाब की जनता को यह यकीन दिलाएंगे कि वह न खुद खायेंगे और न ही अपने मंत्रियों को पंजाब को लूटने और खसोटने की इजाज़त देंगे। चुनाव के वक़्त यह कहना जितना आसान था, उससे कहीं ज्यादा कठिन है अब कहे पर अमल करना।
पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनने से ठीक पहले महंगे रेत-बजरी का मसला दूसरा सबसे पेचीदा चुनावी मुद्दा था। यहाँ यह जानना ज़रूरी है कि 19-20 मई को पंजाब में 89 रेत के खड्डों की नीलामी हुई थी, जिसमें 50 के करीब बोलीदाताओं ने पैसे जमा करवाए बाकियों ने नहीं। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मामले की न्यायिक आयोग से जांच कराने की बात कही है, मगर ये जांच कहीं सिर्फ मामले को टरकाने की कवायद भर होकर न रह जाए।
आरोपी मंत्री महोदय ने इस्तीफे की पेशकश भी की है, देखना दिलचस्प होगा कि कैप्टन इस पेशकश पर क्या करते हैं। उचित तो ये होता कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इस मंत्री महोदय को स्वतः जांच पूरी होने तक के लिए पद से निलंबित कर देते। लेकिन, अपने इस दबंग मंत्री पर कार्रवाई की हिम्मत क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह जुटा पाएंगे, यह देखने वाली बात होगी।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस नीलामी के पीछे हुए धांधली को सामने लाने के लिए जो न्यायिक जांच बिठाई है, उसपर अकाली दल के प्रवक्ता डॉक्टर दलजीत चीमा कहते हैं कि जांच से कुछ निकलेगा नहीं, यह तो जनता की आँखों में धुल झोंकने के लिए किया गया है।
पंजाब में नई सरकार को बने अभी सिर्फ तीन महीने का वक़्त गुजरा है, लेकिन अभी से ही कैप्टन की कार्यक्षमता पर सवाल उठने शुर हो गए है। पंजाब में अकाली सरकार जाने के बाद अब लोग यह पूछ रहे हैं कि कांग्रेस सरकार क्या विकास कार्यों को जारी रख सकेगी? क्या कैप्टन में यह इच्छा शक्ति है कि वह भ्रष्ट नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा सकें। पंजाब में पार्टी की जीत का श्रेय कांग्रेस को कम और कैप्टन को ज्यादा दिया जाता है, ऐसे में कैप्टन क्या पंजाब के मतदाताओं के विश्वास पर खरे उतरेंगे। सवाल का जवाब कैप्टन को अब जल्द ही देना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)