यह अच्छा है कि जय शाह ने न्यायपालिका में मानहानि का दावा किया है। उनका कहना है कि कंपनी में कोई भी अनियमित कार्य नही हुआ। इसके सभी दस्तावेज मौजूद हैं। वे मानहानि का दावा इसीलिए कर सके क्योंकि उन्हें अपनी सच्चाई पर यकीन है। अगर उन्होंने कुछ भी गलत किया होता तो वे यह दावा करने की हिम्मत नहीं दिखाते।
कांग्रेस को लगता है कि दूसरों पर भ्रष्टचार के आरोप लगाने से उसकी छवि निखर जाएगी। इस प्रयास में वह कई बार जल्दीबाजी कर देती है। इसके बाद उसे फजीहत उठानी पड़ती है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से वह ऐसा कर रही है। अनेक मुद्दे उठाए। नरेंद्र मोदी तक को घेरने का प्रयास किया। कई बार संसद में भी हंगामा किया। लेकिन, केजरीवाल की तरह किसी मसले को न्यायपालिका तक ले जाने की हिम्मत नहीं दिखाई। कभी कोई ठोस सबूत नहीं दे सकी।
अब इस बार उसने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर हमला बोला है। एक वेबसाइट ने अमित शाह के पुत्र की कम्पनी के मुनाफे में सोलह हजार प्रतिशत वृद्धि की खबर चलाई। कांग्रेस के छोटे नेता इस पर हंगामा करते तो नजरंदाज भी कर दिया जाता, लेकिन यहाँ तो बिना सोचे-विचारे शीर्ष नेताओं ने मोर्चा संभाल लिया। शीर्ष नेताओं को पहले इस खबर की विश्वसनीयता पर विचार करना चाहिए था, उनके पास पर्याप्त स्टाफ भी होता है। लेकिन, यहां तो दिग्गज ही तैयार बैठे थे। इधर पोर्टल पर खबर चली उधर राहुल गांधी, आनन्द शर्मा, राज बब्बर आदि लोग हमला बोलने के लिए मोर्चे पर आ गए।
संयोग से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस समय गुजरात दौरे पर थे। अपनी शैली में उन्होने सीधे नरेंद्र मोदी पर हमला बोला। कहा कि वह चौकीदार हैं या भागीदार। राहुल को ऐसे बयानों से नुकसान ही ज्यादा होता है। लेकिन, वह इस तथ्य पर विचार करने को तैयार नहीं हैं। इस पूरी आरोप-कथा का सबसे बड़ा झोल यह है कि इसमें टर्नओवर को प्रॉफिट की तरह कुप्रचारित किया जा रहा। इतना ही नहीं, कांग्रेस के नेता उस कम्पनी पर टिप्पणी कर रहे थे, जो पहले ही बंद हो चुकी है। 2015-16 में कम्पनी का टर्नओवर अस्सी करोड़ दिखाया गया। जबकि इसी वर्ष कम्पनी को करीब एक करोड़ अड़तालीस लाख का घाटा हुआ।
शुरुआती दौर में आम आदमी पार्टी आरोप लगाने में माहिर थी। उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल ने इससे खूब शोहरत बटोरी थी। वह किसी नेता पर भ्र्ष्टाचार का आरोप लगाते थे। आरोप लगाना और भाग निकलना उनकी फितरत थी। इसका कारण था कि अधिकांश मामलों में उनके पास पुख्ता सबूत नही होते थे। अरविंद केजरीवाल अन्य लोगो को भ्रष्ट और अपने को ईमानदार बताने के लिए ऐसा करते थे। लेकिन, अनेक मामले उनके गले की फांस बन गए थे।
कई नेताओं ने मानहानि का दावा किया। केजरीवाल को कई बार न्यायपालिका की फटकार लगी। धीरे-धीरे उनका इस रणनीति से मोहभंग हो गया। क्योंकि, यह दांव उल्टा पड़ने लगा था। यह अच्छा है कि जय शाह ने आपराधिक मानहानि का दावा किया है। उनका कहना है कि कंपनी में कोई भी अनियमित कार्य नही हुआ। इसके सभी दस्तावेज मौजूद हैं। वे मानहानि का दावा इसीलिए कर सके क्योंकि उन्हें अपनी सच्चाई पर यकीन है। अगर उन्होंने कुछ भी गलत किया होता तो वे यह दावा करने की हिम्मत नहीं दिखाते।
ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस को इस मामले में अरविंद केजरीवाल की तरह कदम पीछे समेटने पड़ेंगे। आम आदमी पार्टी जिस रणनीति को पीछे छोड़ आई है, कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी का उसे अपनाना अजीब लगता है। इस प्रकरण में संबंधित पोर्टल और विपक्ष की राजनीति दोनो पर सवाल उठे हैं। कोर्ट ने भी इसे विचार योग्य मसला माना है। इसकी विधिवत सुनवाई होगी। प्रजातन्त्र में अपनी बात कहने और सत्ता पक्ष के विरोध का अधिकार होता है। लेकिन, किसी पर आरोप लगाने से पहले प्राथमिक सबूतों पर ध्यान देना चाहिए। सनसनी फैलाने के लिए आरोप नही लगाने चाहिए।
इसके अलावा आर्थिक विषयो की पर्याप्त समझ भी होनी चाहिए। टर्नओवर और प्रॉफिट के फर्क की समझ जरूरी है। संबंधित कम्पनी के संबन्ध में पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। लेकिन, इन तथ्यों पर समुचित ध्यान नही दिया गया। विपक्ष के नेताओं को भी ऐसे मसले प्रमाणों के साथ ही उठाने चाहिए। कांग्रेस जैसी पार्टी को ऐसे विषयों पर खास एहतियात बरतनी चाहिए। उसके जैसी राष्ट्रीय पार्टी से इधर-उधर कहीं भी छपी ख़बरों के हिसाब से राजनीतिक स्टैंड लेने की अपेक्षा नहीं की जाती।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)