योगी सरकार जिस गति से काम कर रही है, यदि ऐसे ही करती रही तो वह दिन दूर नहीं जब देश के बीमारू राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश की हालत में बड़ा सुधार आएगा। चूंकि अब योगी के रूप में एक ऐसा व्यक्ति मुख्यमंत्री है, जिस पर जनता को अटूट विश्वास है और योगी की कार्य गति तथा दृढ इच्छाशक्ति दिखाती है कि वे जनता के विश्वास पर शत-प्रतिशत खरा उतरने के लिए कृतसंकल्पित हैं। अगर यह कार्यगति अवरुद्ध न हुई तो आशा और विश्वास किया जा सकता है कि भविष्य में उत्तर प्रदेश का ‘उत्तम-प्रदेश’ बनना निश्चित है।
भारतीय राजनीति के इतिहास में संभवतः योगी ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जिनके कार्यकाल के पहले 24 घंटे के फैसलों की भी चर्चा हुई। फिर एक हफ्ते के कार्य की समीक्षा हुई। फिर 10 दिन की, फिर 20 दिन और अब जब उनकी सरकार को पूरे एक महीने हो गए हैं, तो हर जगह उनके फैसलों की चर्चा हो रही है। योगी जिस दिन से मुख्यमंत्री बने हैं, उसके बाद से अब तक यदि कुछ छिट-पुट घटनाओं को छोड़ दें तो उत्तर प्रदेश में कोई भी अप्रिय घटना नहीं हुई है। महज 30 दिन के कार्यकाल में सीएम योगी ने एक के बाद एक तमाम फैसले लिये हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख फैसले निम्नवत हैं :
1. किसानों का 1 लाख तक का कर्ज माफ किया गया है।
2. सभी जिला मुख्यालयों पर 24 घंटे बिजली देने के लिए केंद्र से ‘पावर फॉर ऑल’ करार हुआ है।
3. 15 जून तक यूपी की सभी सड़कों को गड्ढामुक्त बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
4. कानून-व्यवस्था में सुधार के वादे के साथ लड़कियों को छेड़छाड़ से बचाने के लिए एंटी रोमियो स्क्वॉड बनाया गया है| शुरुआत में इस फैसले को लेकर मीडिया के एक खास धड़े ने इसका इतना विरोध किया किया कि लग रहा था कहीं मीडिया यह न कह दे कि छेड़छाड़ व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है ! वास्तव में यह बीजेपी के घोषणापत्र का एक महत्वपूर्ण बिंदु था। इसके गठन का वास्तविक उद्देश्य सिर्फ उन मनचलों से लड़कियों और औरतों की सुरक्षा करना है जो किसी भी चौराहे या नाके में बैठकर महिलाओं फब्तियां कसते और तरह-तरह से उन्हें परेशान करते रहते हैं।
5. घोषणापत्र के वादे के अनुसार अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई का निर्णय लिया गया जिससे किसी को कोई आपत्ति नहीं थी, बल्कि समाज का एक बड़ा तबका इस फैसले से खुश था। लेकिन मीडिया के कुछ पत्रकार यह सिद्ध करने पर तुले थे कि यदि ‘टुंडा कबाब’ न खाया गया तो उससे समाज में क्या-क्या विकृतियां आ जायेगी। यह सब उनके लिए रोना रो रहे थे, जिनकी दुकानें अवैध थीं। इससे ही पता लगाया जा सकता है कि उनकी खबरों में कितना सच था और कितना बनावटीपन। कुछ लोगों ने मीडिया के उकसावे में आकर कुछ दिनों तक धरना इत्यादि भी दिया, लेकिन जल्दी-ही सब ठीक हो गया।
6. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सरकार की शुरुआत अधिकारियों को स्वच्छता का संकल्प दिलाते और मंत्रियों-अधिकारियों को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का निर्देश देते हुए की। अक्सर हम देखते हैं कि व्यक्ति जब मंत्री बनता है, तब तक उसके पास कुछ नहीं होता, लेकिन पांच साल बाद वह अचानक धन्नासेठ हो जाता है। ऐसे कई उदाहरण है भारतीय राजनीति के इतिहास में। इसलिए मुख्यमंत्री योगी का यह कदम भी साहसी एवं पारदर्शी कहा जा सकता है।
7. सुशासन के लिए फाइलों के जल्द निबटारे, समस्याओं को सुलझाने के लिए सिटीजन चार्टर बनाने और दफ्तरों में कर्मचारियों के अटेंडेंस के लिए बायोमीट्रिक सिस्टम लगाने के निर्देश दी गए हैं। इस फैसले के पहले हिस्से से किसी को कोई समस्या नहीं है, समस्या है दूसरे वाले हिस्से से। क्यों ? क्योंकि ज्यादातर सरकारी कर्मचारी कभी समय पर न आते हैं, ना ही जाते हैं। इस फैसले से इस तरह की चीजों पर रोक लगेगी, ऐसी आशा की जा सकती है।
8. इलाहाबाद, मेरठ, आगरा, गोरखपुर और झांसी में मेट्रो रेल चलाने का ऐलान।
9. किसानों से 100 फीसदी गेहूं खरीदने का ऐलान किया जा चुका है।
10. गन्ना मिलों को 14 दिनों में गन्ने की कीमत का भुगतान करने को कहा गया है। आये दिन हम सुनते थे गन्ना किसानों का बकाया नहीं मिला। योगी सरकार के इस फैसले से गन्ना किसानों को निश्चित ही राहत मिलेगी।
11. अखिलेश सरकार में शुरू हुई समाजवादी एंबुलेंस अब योगी कार्यकाल में समाजवादी नहीं रही। साथ ही, समाजवादी पेंशन स्कीम को भी रोका गया है। इसमें बहुत बड़ी धांधली के अंदेशे के चलते सरकार ने ऐसा किया है, क्योंकि सरकार को आशंका है कि इसका इस्तेमाल निजी लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है।
12. लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट की जांच के आदेश दिये गये हैं। वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार के मसले पर भी जांच होगी। जांच होनी ही चाहिए, क्योंकि खबरों में तो यह तक आ रहा है कि 2 मीटर तक की मिट्टी को भी बेंच लिया गया है। इसी तरह वफ्त बोर्ड की जमीन में भी ‘एक मंत्री’ विशेष को ध्यान में रखकर सारे कार्य किये जाने की बात सामने आई है।
13. कैलाश मानसरोवर यात्रियों को सरकार की ओर से 1-1 लाख की आर्थिक मदद का निर्णय भी योगी सरकार ने लिया है।
14. शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का दावा और स्कूलों में पढ़ाई का माहौल बनाने के लिए गैरजरूरी छुट्टियों का कल्चर खत्म करने का निर्णय भी योगी सरकार ने लिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 365 दिन में 192 दिनों की छुट्टी होती है। अगर यह सही है तो बच्चों की पढ़ाई और ऑफिस में काम का भगवान ही मालिक है। इतनी छुट्टियों का कोई जायज या नाजायज कारण नहीं है| ऐसे कौन महापुरुष थे, जिन्हें अकर्मण्यता पसंद रही हो ! इसलिए हमें चाहिए कि उनके जन्मदिवस या निर्वाण दिवस को काम करते हुए, पढ़ाई करते हुए बिताएं। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
इन सब निर्णयों के अलावा पिछली सरकारों के दौरान हुए भ्रष्टाचारों पर भी योगी सरकार की बराबर नज़र है। बता दें कि मायावती सरकार के दौरान बेची गयी 21 चीनी मिलों के फैसले पर जांच बैठायी गयी है। इस फैसले से मायावती के अलावा किसी को कोई दिक्कत नही है, होनी भी नहीं चाहिए। साथ ही, यूपी की योगी सरकार ने राज्य के सबसे बड़े ‘यश भारती’ पुरस्कारों की जांच के आदेश भी दिये हैं। गत दिनों संस्कृति विभाग का प्रेजेंटेशन देखने के बाद मुख्यमंत्री ने ये आदेश दिया कि पुरस्कार के मानदंडों की गहनता से समीक्षा की जाए; उनका कहना था कि पुरस्कार सिर्फ काबिल लोगों को मिलना चाहिए।
अखिलेश सरकार पर पुरस्कारों की बंदरबांट के आरोप लगते रहे हैं। एक दफा पिछले सीएम ने पुरस्कार समारोह का संचालन करने वाली महिला को मंच से ही पुरस्कार देने का ऐलान कर दिया था। एक खबरिया चैनल ने अपने एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि समाजवादी पार्टी के दफ्तर में काम करने वाले ऐसे 2 कर्मचारियों को भी पत्रकारिता के क्षेत्र में ‘यश भारती’ पुरस्कार दे दिया जिनका पत्रकारिता से कोई वास्ता ही नहीं था। कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी पर अपने करीबियों को ये पुरस्कार देने का आरोप लगता रहा है। अगर योगी सरकार की जांच में ये गड़बड़ियां साबित होती है, तो अब तक जिन लोगों को ये पुरस्कार मिला है, उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
इसके अतिरिक्त नोएडा विकास प्राधिकरण के भी जांच के आदेश दे दिए गए हैं, जिसके बाबत एक राष्ट्रीय अखबार ने अपनी खबर में लिखा था कि यह घोटाला 2 जी, 3 जी से बड़ा है और यादव सिंह तो बहुत छोटे से खिलाड़ी हैं, इसमें बहुत बड़े-बड़े लोगों का हाथ होने की आशंका है। यह मायावती सरकार में हुआ था। अखबार ने यह भी दावा किया है कि 2011-12 में इसकी जांच इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि केंद्र की कांग्रेस सरकार सपा और बसपा के सहयोग से चल रही थी। इससे यह सिद्ध होता है कि पिछली सरकारें भ्रष्टाचार को लेकर किस तरह का रवैया रखती थी। यही कारण है कि जनता ने उन्हें उनकी जगह पहुँचा दिया।
अतः यह सिद्ध है कि योगी सरकार को भले शासन में आए महिना भर हुआ हो, मगर निर्णयों की फेहरिश्त और कार्य की गति को देखकर लगता नहीं कि ये सरकार नयी-नयी आयी है। यदि योगी सरकार ऐसे ही काम करती रही तो वह दिन दूर नहीं जब देश के बीमारू राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश की हालत में सुधार आएगा। चूंकि अब योगी के रूप में एक ऐसा व्यक्ति मुख्यमंत्री है, जिस पर जनता को अटूट विश्वास है और योगी की कार्य गति तथा दृढ इच्छाशक्ति दिखाती है कि वे जनता के विश्वास पर शत-प्रतिशत खरा उतरने के लिए कृतसंकल्पित हैं। अगर यह कार्यगति अवरुद्ध न हुई तो आशा और विश्वास किया जा सकता है कि भविष्य में उत्तर प्रदेश को ‘उत्तम-प्रदेश’ बनने से कोई नहीं रोक सकता।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)