वे विपक्षी दल जो जब तक सरकार को बिना आधार कोसने से नहीं चूकते थे, आईएमएफ के आंकड़ों से उन्हें करारा जवाब मिला है। सरकार के खिलाफ उनके इस दुष्प्रचार की हवा निकल गयी है कि देश की अर्थव्यवस्था बदहाली का शिकार है।
पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने एक वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत दर्शाए गए हैं। रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि इस वर्ष यानी 2021-22 में भारत विश्व में सबसे तेजी से प्रगति करेगा। विकास की यह रफ्तार 11.5 फीसदी आंकी गई है जो कि उन्नत आर्थिक राष्ट्र का प्रतीक है।
कोविड-19 महामारी के बीच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी आर्थिक विकास दर इस साल दहाई अंक में रहेगी। आपको याद होगा पिछले साल अक्टूबर में भी आईएमएफ ने रिपोर्ट जारी करके भारत की ग्रोथ रेट को 8 फीसदी आंका था।
इन सब बातों का जो मोटा-मोटा अर्थ निकलकर सामने आ रहा है वह यह है कि भारत वैश्विक फलक पर तेज गति से आगे बढ़ रहा है और आगामी एक दशक में हम विश्व परिदृश्य में बतौर राष्ट्र एक अहम इकाई बनने की दिशा में अग्रसर है। यह बात इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस प्रकार के अनुमान एवं आंकड़े वर्ष 2020 की कोरोना विभीषिका के बावजूद उभरकर सामने आए हैं।
बीता साल देश ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए संकट भरा रहा। कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते लाखों लोगों की जान तो गई ही, अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हुई। कहीं कारोबार चौपट हुए तो कहीं नौकरियां जाने का सिलसिला जारी रहा। इस कठिन दौर का भारत ने पूरे साहस और सूझबूझ के साथ सामना किया।
इसका ही परिणाम है कि गत वर्ष भारत में जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ उसमें 13 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बात यहां करना इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि तुलनात्मक रूप से ब्रिटेन, अमेरिका एवं रूस जैसे बड़े देशों में गत वर्ष इसका प्रतिशत बहुत घट गया है। इस मोर्चे पर भारत यदि आगे रहा है तो यह एक पुख्ता अर्थव्यवस्था का प्रतीक है। इसी बात को संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपनी रिपोर्ट में दर्शाया है।
इतना ही नहीं, विदेशी निवेशकों के लिए भारत आज एक आकर्षण का केंद्र बन गया है। यह निवेश बताता है कि आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से ग्रोथ देखने को मिलेगी। यदि इस सफलता के कारण टटोले जाएं तो सीधे तौर पर कोरोना काल में भारत सरकार द्वारा किया गया कुशल वित्तीय प्रबंधन ही निकलकर सामने आता है। मार्च के आखिरी सप्ताह में जब देशव्यापी लॉकडाउन घोषित किया गया था तब सरकार के सामने एक नहीं, कई चुनौतियां थीं।
कोरोना महामारी के संक्रमण के तेजी से फैलने के भय के बीच ठप हो रही आर्थिक गतिविधियों को संभालना, कामगारों को नौकरी, आजीविका के इंतजाम और देश के निर्धन तबके को ऐसे में राशन उपलब्ध कराना सर्वोच्च प्राथमिकता थी। कहना ना होगा कि केंद्र की मोदी सरकार इन सभी अपेक्षाओं पर सौ फीसदी खरी उतरी। ना केवल खरी उतरी बल्कि अन्य देशों के लिए मिसाल भी कायम की।
यह सरकार की दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि विराट जनसंख्या होने के बावजूद भारत में कोरोना का संक्रमण बहुत अधिक नहीं फैला। संक्रमण दर एवं मृत्यु दर घटी तो रिकवरी रेट भी सुधरा। आज देश में सक्रिय मामले बहुत कम रह गए हैं। कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन आने के बाद अब पूरा देश स्वयं को सुरक्षित एवं खतरे से बाहर महसूस कर रहा है।
लॉकडाउन के आरंभिक दिनों में सरकार ने कई जनकल्याकारी सरकारी योजनाओं के जरिये सुविधाओं का पिटारा खोल दिया। कर्मचारी वर्ग को सबसे बड़ी राहत भविष्य निधि की जमा राशि के अग्रिम निकासी सुविधा के रूप में मिली। ग्रामीण क्षेत्र की निर्धन महिलाओं के लिए उज्जवला योजना के तहत 3 निशुल्क गैस सिलेंडर की सौगात मिली।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के चलते जन धन खातों में प्रतिमाह 500 रुपए जमा कराए गए वहीं किसानों को पीएम किसान योजना के तहत निश्चित अंतराल से 2 हजार रुपए की किश्त सीधे खातों में ट्रांसफर की गई। इतना ही नहीं, मध्यम एवं लघु उद्योगों के लिए वित्त मंत्री ने 20 हजार करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया।
गरीबों को अन्नपूर्णा योजना के तहत निशुल्क राशन उपलब्ध कराया गया। ये तमाम सुविधाएं अनलॉक के दौर में भी जारी रहीं। इन सब कवायद के जरिये सरकार ने देश की जनता को असुविधा और अवसाद से बचा लिया।
चूंकि कोरोना के कारण देश में महीनों तक आर्थिक गतिविधियां ठप थीं, ऐसे में राजस्व पर असर पड़ना स्वाभाविक था। रेल एवं बस यातायात बंद रहने से यात्राओं के जरिये प्राप्त होने वाला राजस्व पूरी तरह बाधित रहा। जहां तक वित्तीय प्रबंधन की बात है, सरकार ने समय पड़ने पर अपने सांसद, विधायकों के वेतन में, मंत्रियों के भत्तों में कटौती की लेकिन आम जनता को कोई परेशानी नहीं आने दी।
इतना कुशल आपदा प्रबंधन देखकर विश्व के कई देशों ने भारत का लोहा माना। यह देख विपक्षी दलों के मुंह सिल गए। वे विपक्षी दल जो जब तक सरकार को बिना आधार के कोसने से नहीं चूकते थे, आईएमएफ के आंकड़ों से उन्हें करारा जवाब मिला है। सरकार के खिलाफ उनके इस दुष्प्रचार की हवा निकल गयी है कि देश की अर्थव्यवस्था बदहाली का शिकार है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट असल में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता एवं द्वेष के चलते केंद्र सरकार की उपलब्धियों को रेखांकित नहीं कर रहे हैं और केवल विरोध में लगे हैं।
मगर इससे इतर सरकार देश की अर्थव्यवस्था की बेहतर रिकवरी को आगे ले जाने में जुटी हुई है। दो दिन पहले ही उन्होंने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) के डावोस समिट को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए कहा कि भारत आत्मनिर्भर बनने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा कि आर्थिक मोर्चे पर हालात बेहतर हो रहे हैं। आगामी एक फरवरी को आम बजट भी पेश किया जाना है। यह पूरी उम्मीद है कि इस बजट में देश की अर्थव्यवस्था को उत्तरोत्तर प्रगति एवं गति देने की दिशा में निर्णय लिए जा सकते हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)