अमित शाह का यह पश्चिम बंगाल दौरा इसलिए भी विशेष है क्योंकि इसे अनेक राजनीतिक विश्लेषक आगामी चुनाव के शंखनाद के रूप में भी देख रहे हैं। पिछले अनेक चुनावों में हमने देखा है कि अमित शाह ने जब भी कोई चुनावी लक्ष्य तय किया है, तो अधिकांश बार वे कामयाब रहे हैं।
बीते दिनों देश के गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह पश्चिम बंगाल के दो दिवसीय दौरे पर थे। इस दौरे पर उन्होंने कार्यकर्ताओं से आगामी विधानसभा चुनाव में कड़ी मेहनत करने का संकल्प करवाया। उनका दावा है कि राज्य में भाजपा 200 से अधिक सीटें लाएगी।
हालांकि अपने इस दौरे में वे कोरोना के कारण किसी जनसभा को संबोधित नहीं किए अपितु सिर्फ संगठनात्मक बैठकें की और पार्टी के कार्यों का जायजा लिया। इस दौरान उन्होंने बांकुरा में 5 नवंबर को विभिन्न वर्गों में पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं से मिलकर उनका हौसला भी बढ़ाया। बांकुरा में आदिवासी परिवारों और शरणार्थियों के साथ अमित शाह ने दोपहर का भोजन भी किया।
अमित शाह का यह पश्चिम बंगाल दौरा इसलिए भी विशेष है क्योंकि इसे अनेक राजनीतिक विश्लेषक आगामी चुनाव के शंखनाद के रूप में भी देख रहे हैं। पिछले अनेक चुनावों में हमने देखा है कि अमित शाह ने जब भी कोई चुनावी लक्ष्य तय किया है, तो अधिकांश बार वे कामयाब रहे हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से लेकर त्रिपुरा तक इसके अनेक उदाहरण मिल जाएंगे।
पिछले लोकसभा चुनाव में भी जब राजनीतिक विश्लेषक भाजपा की सीटें कम होने का अनुमान लगा रहे थे, तब अमित शाह ने 300+ सीटों का दावा किया था जो कि सही साबित हुआ। इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 43 प्रतिशत और भारतीय जनता पार्टी को उनसे थोड़ा ही कम 40 प्रतिशत वोट मिले थे। इसी लोकसभा चुनाव में बंगाल में भी भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा था।
बंगाल में भाजपा की बढ़ती ताकत से बौखलाए सत्तारूढ़ दल ने उसे चुप कराने के लिए अनोखी तरकीब निकाली है, जिसका परिणाम आज हम अनेक भाजपा कार्यकर्ताओं के राजनीतिक हत्या के रूप में देख रहे हैं।
ममता बनर्जी पर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि उन्होंने केंद्र सरकार की योजनाओं को राज्य में लागू करने में हमेशा ही अड़चन पैदा की है। यहां तक कि कोराना जैसी भयावह महामारी के दौरान भी वे इस गंदी राजनीति से बाज नहीं आईं। वर्तमान में वे केंद्र सरकार की 80 से ज्यादा योजनाओं के तहत मिलने वाली सहायता को जनता तक नहीं पहुंचने दे रही हैं।
पश्चिम बंगाल के आदिवासी समाज को केंद्र सरकार की हाउसिंग योजनाओं तो वहीं गरीबों को केंद्र की स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। किसानों को किसान सम्मान निधि के 6000₹ की वार्षिक सहायता भी नहीं मिल पा रही है। इस प्रकार केन्द्र सरकार की अन्य अनेक योजनाओं का भी लाभ राज्य सरकार के गतिरोध के चलते पश्चिम बंगाल की जनता को नहीं मिल पा रहा है।
पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था का हाल ऐसा है कि भाजपा कार्यकर्ता की हत्या होती है और परिवार वाले प्राथमिकी दर्ज कराने जाते है तो वह दर्ज नहीं की जाती, अंततः न्यायालय की शरण में जाना पड़ता है। वहां से प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश होता है तो भी न्यायालय की अवमानना की जाती है। इस तरह के अनेक मामले पश्चिम बंगाल में देखे जा सकते है।
राज्य में सत्ताधारी दल का आतंक ऐसा है कि 2018 में हुए पंचायत चुनाव में उसके 34.2 प्रतिशत सदस्य निर्विरोध निर्वाचित हुए, क्योंकि विपक्षी दलों के कार्यकर्ता पर्चा दाखिल करने तक का साहस नहीं कर सके या राजनीतिक हिंसा के कारण उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया।
पश्चिम बंगाल की इस यात्रा में अमित शाह ने कहा कि वे आगामी चुनाव में दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाने जा रहे हैं। अमित शाह का चुनावी गणित पूरा देश जानता है। विगत लोकसभा चुनाव में उन्होंने पश्चिम बंगाल में जितनी सीटों का अनुमान लगाया था, लगभग उतनी ही सीटें आई। कुछ एक सीटें कम भी हुईं तो वहां 2-4 हजार के अंतर से हार हुई; जो लोकसभा चुनाव के हिसाब से बहुत कम है।
अमित शाह ने अपने इस दौरे में पश्चिम बंगाल में माटुआ आदिवासी समाज के बूथ और जिला स्तर के कार्यकर्ताओं तक के साथ सांगठनिक बैठक की। उनका यह दौरा मुख्यतः आदिवासी समाज पर ही केन्द्रित था, चाहे वह आदिवासी आइकॉन और स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की मूर्ति पर माल्यार्पण का कार्यक्रम रहा हो चाहे आदिवासी समाज के लोगों के साथ दोपहर का भोजन हो या उनके मंदिर में जाना हो।
माटुआ समाज पारम्परिक रूप से तृणमूल कांग्रेस के समर्थक रहे हैं लेकिन सीएए कानून आने के बाद से और तृणमूल कांग्रेस के आतंक से त्रस्त होकर वे भारतीय जनता पार्टी के साथ आए हैं। माटुआ समाज पश्चिम बंगाल में इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वहां यह दूसरा सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है।
8 जिलों की 70 से ज्यादा विधानसभा सीटों में इस आदिवासी समाज के वोट अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। अतः यदि अमित शाह दो तिहाई बहुमत की बात कह रहे हैं तो उसके लिए उनकी तैयारी भी दिख रही है। वैसे भी इतिहास गवाह है कि शाह कोई भी दावा करने से पूर्व उसको फलीभूत करने का पूरा रोडमैप तैयार कर चुके होते हैं। बंगाल को लेकर भी उन्होंने निश्चित रूप से अपनी रणनीति बना ली होगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)